FLAT : A SILENT STORY 2
TO BE CONTINUED*
उसने सर्वप्रथम टाइपराइटर में भर चुके पन्ने को हटाकर नया कागज डाल दिया । इसके पश्चात् अपनी बात उसपर स्पष्ट करनी शुरू कर दी - आज से कुछ वर्ष पहले की बात है । इसी पास के जंगल में कुछ वन्य कर्मचारी जब निरीक्षण हेतू भ्रमण को निकले तो वे एक घूमते-घूमते एक प्राचीन गुफा के निकट पहंुच गए । अन्य के लिए वह गुफा कोई विशेष महत्व न रखता था, मगर उनमे से एक के लिए वह जिज्ञासा का खास कारण रखता था । उस गुफा के बारे में आस-पास के लोगों में विभिन्न अवधरणाएं पफैली थीं, जैसे कोई इसे पुराने जमाने में लुटेरों की शरणस्थली बताता था तो कोई उसे राजाओं का महल से गुप्त द्वार बताता था तो कोई कुछ और ही बोलता था अर्थात् जितनी मंुह उतनी बातें । इन बातों में रहस्य का साया अध्कि था और जिज्ञासा का कम । अगर इसमे जिज्ञासा की कोई खास व सबसे विशेष बात थी तो वह यह थी कि इस गुपफा के अंदर एक गुप्त खजाने का होना, जिसके बारे में विभिन्न मान्यताओं के अनुसार भागते समय लुटेरे छोड़ गए या पिफर नए राजा के आक्रमण पर जब पुराना राजा यह राज छोड़ गया तो खजाना इसी गुफा में छोड़ गया, जैसी विभिन्न अपफवाहें पफैली थीं । इतने पर भी सभी ओर से यह कॉमन बात थी कि इसमे खजाना है । और साथ में था गुफा के मुख्य द्वार पर स्थापित वह शिलालेख जिसमे खजाने का संकेत मात्रा छुपा था । इस संकेतों के पीछे न जाने कितने लोग पागल हुए और जान तक गंवा बैठे, लेकिन खजाना किसी को हासिल न हुआ । अंततः प्रारंभिक उत्सुकता का जोश ठंडा पड़ने लगा और यह खजाना एक किवदंती बनकर रह गया । उसपर जंगल में हुए सामयिक परिवर्तनों ने उस अप्रयुक्त गुफा के क्षेत्र और भी घना कर दिया । इस प्रकार वह पूर्णतः जंगल का हिस्सा बन गया और इसी कारण क्षेत्राीय लोग वहां न के बराबर ही जाते थे । अब यह सिपर्फ वन्य कर्मचारियों की पहंुच तक रह गया । इन कर्मचारियों को भी औरों की तरह यह बात पता होती औरों की तरह ये भी इसे कहानियों - घटनाओं की तरह व्यवहार करते ।
इस दल के एक वन कर्मचारी के लिए वह सच जो कहानी व घटना बन चुका था सिपर्फ कहानी या घटना ही नहीं था वरन् अब भी पूर्ण सच ही था कि इसमे खजाना है और इसे पाना है । उसका भूत भी अन्य दीवानों की तरह था, मगर तकदीर उनसे जुदा थी । इस दुनिया में कौन-सा रहस्य कब खुलेगा कोई नहीं जानता और किसके द्वारा खुलेगा यह भी कोई नहीं जानता और जिसके द्वारा खुलेगा जब वह ही इस भावी को नहीं जानता तो दूसरे की क्या कही जाए । इसमें सबसे सच बात तो ये है कि’ भविष्य एक रहस्य है । इनके अर्थात् रहस्योद्घाटन के कर्ता तक के बारे में कोई रूप-रेखा नहीं खींची होती । अगर कोई रहस्य किसी ऐरे-गैरे, नत्थू-खैरे के हाथ से खुलना होगा तो पिफर वैसा ही होगा थी । आखिर कोहिनूर सबसे पहले किसके हाथ लगा था- एक रह चलते के हाथ इसके साथ भी वैसा ही होना था ।
एक वैसा रहस्य जो वर्षों ना सुलझ पाया, जिसे बड़े-बडे़ अंततः ज्ञानी, सूरमा न खोल सके उसने उस दिन खोल दिया । अंततः कई दिनों का परिश्रम रंग ला चुका था । उसके दिमाग में शिलालेख की बात उतर चुकी थी । अब इसे पूर्णतया गुप्त रखने की जरूरत थी, जो कि ज्यादा कठिन न था ।
इसके बावजूद एक अड़चन थी । उसकी अड़चन यह थी कि गुफा की गुह्यता भेदने में रास्ते में एक बड़ा पत्थर रूकावट था, जिसे हटाना अकेले आदमी के बस की बात कहीं से भी नहीं थी । उसने बहुत सोचकर इसके बारे में अपने अतिप्रिय सह-कर्मचारी को बताने का निर्णय लिया । उसने अपनी बात अपने दोस्त के समक्ष रखी तथा साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि खजाने का मात्र दस प्रतिशत किस्सा ही वह उसे देगा । उसके दोस्त की मांग पिफफ्रटी की थी, जो उसे कहीं से भी स्वीकार्य न था । अंततः बात पच्चीस प्रतिशत पर तय हुई ।
इतने बडे़ खजाने का मात्र पच्चीस प्रतिशत, उसके दोस्त के मन में यह अब भी खटक रहा था । उध्र खजाने का रहस्य जान चुका वन कर्मचारी भी आतुरता न दीखलाते हुए उसके मुड को भांपने लगा । इसी क्रम में उसकी निकटता उसकी सुंदर बीवी से बढ़ने लगी । उस औरत का इसमे आकर्षण भी खजाने ने बढ़ा दिया था । उन दोनों की गुफ्रत-गू हद पार कर रही औरत के पति से कबतक छुपी रहती । औरत का पति यानि उसका सह-कर्मचारी जल्द-से-जल्द काम कर अपना हिस्सा ले अलग हो जाना चाहता था । इसलिए उसने उसपर दबाव बनाना शुरू किया । उस वन कर्मचारी ने भी ज्यादा देर करना उचित न समझा ।
एक दिन दोनो ने खजाना निकालने का फैसला कर लिया । अतिरिक्त सहयोग के लिए उस औरत को भी साथ ले लिया । उसके बाद उस वन-कर्मचारी का क्या हुआ, कोई नहीं जानता उसका सह-कर्मचारी और वह औरत दोनो सकुशल मगर खाली हाथ लौट आए । और इस खजाने की कथा का यहीं पटाक्षेप हो गया ।
आत्मा सारी कथा पर नजर रखे हुई थी । इस रात की गुह्यता में विचित्रता और असमंजसता हावी थी । अगल पन्ना टाइपराइटर में लग चुका था । आत्मा ने उसकी बात का इंतजार न किया - ..उस वन कर्मचारी का नाम क्या था ?
आपकी हर बात का जवाब मैं अवश्य ही दंूगा । इसके पहले आप मुझे मेरे कार्य के प्रति आश्वस्त कर दें । - आगंतुक साया अपने कार्य के प्रति पूर्ण सजग था - अबतक तो आप मेरी मंशा समझ ही चुके होंगे ।
इस कथा का आरंभ और अंत खजाना है । इससे ज्यादा कुछ कहने की जरूरत मुझे महसूस नहीं होती ।
कर्मचारी का हाल-पता बताएं ।
आप सही हैं मगर आपको खजाने का रहस्य क्या मालूम, मुझे सिर्फ उस वन-कर्मचारी का पता बताएं ।
आपकी मंशा के बारे में मैं अपना फैसला कुछ क्षण बाद सुनाउंगा ।
अभी तक मैं अपनी प्रगति क्या समझूं ?
इसे सार्थक ही समझिए ।
अब आपके सारे और संपूर्ण प्रश्नों का उतर एक साथ दे रहा हंू । - अंगुलियां टाइपराइटर पर अनवरत भागी जा रही थीं । - उस वन कर्मचारी का नाम आदि था और वह सह-कर्मचारी आन था जबकि उसकी बीबी जैस्मिन थी । इनमे तीनो इस वन-क्षेत्रा के इन्हीं क्वार्टरों में रहते थे ।
अगर आपको इतना कुछ पता है तो यह भी पता ही होगा कि आदि इन्हीं नहीं इसी क्वार्टर में रहता था ।
आप सही हैं ।
इतना कुछ तोे मैं समझ गया । अब समझने की बात सिर्फ यह रह गई है कि आपको इन सब बातों की जानकारी कैसे हुई ? आत्मा का सवाल-जवाब भी उसकी भांति तो हर चुका है और खजाना यहां से मात्र बीस-पच्चीस फीट की दूरी पर है । इसलिए तुम सभी यहीं रहो, मैं खजाना देखकर आता हंू । उसके बाद ही उनकी बदली नीयत बदलने लगी । उन्हंे लगा कि बस दस-बीस फीट ..इसे तो हम भी पार कर लेंगे । अगर बात सचमुच दस-बीस फीट की होती तब तो खजाना मिलता ।
इसके बावजूद भी उन । टाइपिंग के द्वारा ही जारी थी ।
अमूमन यह तो बिल्कुल सत्य है कि इस खजाने का तो दूर मेरे लिए यह पता लगना तक असंभव था कि इसका रहस्य भी किसी ने जान लिया है । आज यदि इस सत्य तक पहंुचा भी हंू तो सिर्फ इस कारण कि आदि का मित्रा आन इस रहस्य की गुत्थी न सुलझा पाया तो उसने अपने बचपन के परम मित्र या लंगोटिया यार जो भी कह लिजीए जीन यानि मुझसे संपर्क किया । आदि और वो सह-कर्मचारी होने के नाते मित्रा बने जबकि मैं बचपन से ही इसका मित्र था । अंततः इस गुत्थी को सुलझाने के लिए उसने मुझसे मदद मांगी ।
आपका जब इतना लंगोटिया यार है तो उसने अवश्य ही आगे की कथा भी बताई होगी ।
आश्चर्य तो इसी बात का है कि उसने उसके आगे की घटना को बिल्कुल अविश्वसनीय तरीके से खत्म किया । इसी कारण आगे की बात कहना भी मैं व्यर्थ ही समझता हंू ।’
उसने क्या कहा ?
आदि हमारे साथ ही निकला था मगर बीच रास्ते में ही न जाने कहां गायब हो गया ।
आपका काम असंभव है । - अचानक आत्मा ने फैसला सुना दिया । आगंतुक को ऐसी उम्मीद कहीं से भी न थी । इसके बावजूद भी उसने संयमित तरीके से प्रश्न किया -आप कारण बता सकते हैं ?
आदि की हत्या हो चुकी है । - आत्मा ने स्पष्ट उत्तर दिया - ..और वह मैं हंू !
एकाएक टंकण रूक गया और आगंतुक साये के लिए यह स्थिति क्षण भर के लिए समय थम जाने ऐसी हो गई ।
आपकी हत्या हो चुकी है ! - उसने विस्मय से पूछा । उसका सवाल टाइप होते ही उतर भर पहले की तरह क्रमब( आने लगे - अगर मैं सतर्क न होता तो मेरी हत्या जो तय थी, वह तो होती ही सथ ही वह खजाना थी उन्हें हासिल हो जाता जिसके लिए मेरा कत्ल हुआ । उस रोज गुफा में प्रवेश के बारद आध्ी राह पर करने के पश्चात् मैंने उनसे कहा कि रास्ते का पत्थर उन दोनो ने मिलीभगत कर मेरी हत्या कर दी थी । उस जैस्मिन ने भी ..जिससे मेरा आकर्षण झूठा न था । उसने खजाने के लिए मेरा व्यवहार किया । उस फरेबी औरत ने न सिपर्फ अपने पति को घोखा दिया बल्कि मेरे साथ भी विश्वासघात किया ।
इसका मतलब......।
आपके गुम ..मतलब हत्या के सालभर बाद उसकी भर जहर देकर हत्या कर दी गई । - आत्मा को अपनी बात का संतोषजनक उत्तर मिला ।
आपका मतलब है कि हम दोनो की हत्या ही हुई ।
बिल्कुल !
उसकी हत्या किसने की ?
मुझे नहीं लगता कि ये प्रश्न आपको करना भी चाहिए । उस औरत ने संपूर्ण खजाने के लिए दो व्यक्तियों को घोखा दिया । एक उसमें से जिंदा था -
उसका पति अर्थात् आदि का यानि आपका मित्र ।
इस समय वह कहां है ?
इसी वन-विभाग में कार्यरत् है । - उत्तर मिला, मगर एक प्रश्न के साथ- आप मेरे कार्य के संबंध् में अपनी दुविध बताएं । आप मुझे इंकार क्यों कर रहे हैं ?
आप उसके मित्रा ही नहीं बल्कि परम मित्रा हैं । उसने भी तो मुझे तब ही याद किया जब वह असपफल हो गया । इसलिए वह मेरे लिए उतना ही परम है जितना मैं उसके लिए हंू ।
इन सब बातों को छोड़िये । आप सिर्फ इतना बताइए कि रास्ता क्या है ? - उसने आत्मा को अपने कार्य के प्रति झुकाने की चेष्टा की । इस बार तीर मारने की बारी आत्मा की थी - आपको मेरी हत्या का बदला लेना होगा । आन की हत्या करनी होगी, अभी और इसी वक्त ।
आप मुझसे हत्या करवाएंगे ?
इस खजाने को पाने का यह एकमात्रा रास्ता है ।
और अगर उसपर भी खजाना हासिल न हुआ तो .......।
अगर मृत्यु हो जाए तो ध्न का क्या मोल रहता है ? ..इसे आप बताइए ।
इसके बावजूद भी विश्वास करना कठिन है, क्योंकि यह खजाना न जाने कितने वर्षों का रहस्य है । उसे आप उसके बाद भी यह सोचकर नहीं दे सकते हैं कि इतना बड़ा रहस्य जिसे बड़े-बड़े लोग न सुलझा सके, उसे दे दंू ।
अब इस रहस्य का भी मेरे लिए कोई मोल नहीं है । अगर किसी चीज का मोल है तो वह है बदले का । इसे पूरा करने पर ही मेरी आत्मा तृप्त हो सकती है । उस खजाने को पाकर भोगना मेरे जीवन में ही संभव था । उस समय यानि जिंदा में इसे पाना मेरी सबसे बड़ी आकांक्षा थी और मरने के बाद इन दोनों से बदला लेना मेरी सबसे बड़ी चाहत बन गई । उस आकांक्षा को तो पूरा न कर पाया, मगर इसे ..शायद आपकी मदद से ही पूरा होना है । - आत्मा पफैसले के रूप में ही सबकुछ टंकित कर रही थीऋ आप उस खजाने के बारे में शंका छोड़ दिजीए, वह मेरे लिए मिट्टी बन चुका है । आपके लिए जो मोल खजाने को है उससे भी बड़ा मोल मेरे लिए इस बदले का है ।
आपका काम आज ही होगा । - आत्मा की बात से वह संतुष्ट हो गया । आत्मा ने आक्षेप किया - अभी ही ..।
उसके पश्चात् ही मेरा आपसे संपर्क होगा -इसी के साथ में संबंध्-विच्छेद हो गया ।
अब सिर से पैर तक ढंका आगंतुक जीन उठ खड़ा हुआ और फ्रलैट के दरवाजे पर आ गया । उसने दूर स्थित र्क्वाटरों को निहारा जो कि अमावस के अंध्ेरे में नहीं ही दीख रहा था, मगर इसपर भी वह उसमें अपने लक्ष्य को महसूस कर रहा था । उसकी नजर एक ओर जाकर थम गई और कुछ क्षणों की सोच व अंतराल के बाद लक्ष्य की ओर कदम बढ़ा दिए ।
आदि से प्रभावित जीन के लिए आन अब उसका परम मित्र नहीं रह गया था । आन के क्वार्टर के पास वह जल्द ही पहंुच गया और साथ ही साथ ठिठक भी । अरे यह क्या, दरवाजा खुला हुआ था । इतनी रात गए दो पहर में दरवाजा खुला होना इस बात का संकेत था कि आन जागा हुआ था । अब बारी सचेत होकर अपने कार्य को अंजाम देखने की थी । एक समय के अंतराल के बाद मजबूत और वही हुआ जिसका डर था । प्रहार पीछे से हुआ । अगर जीन की छठी इन्द्री ने सेकेण्ड के सौवें हिस्से में सत्तर्कता का आभास न दिया होता तो वह मजबूत लट्ठ उसके सिर को तरबूजे की तरह पफाड़ चुकी होती । इतने पर भी दाहिने कंध्े पर चोट आ ही गई । एक चीख जो निकलती जरूर मगर घुटकर रह गई, क्योंकि इसके लिए भी जीन के पास वक्त नहीं था । उसे तुरंत उत्तर देना था और उसने दिया भी । एक खंजर जो कबसे प्रतिक्षा में था, हवा में लहराया और हमलावर पर झपटा । उसकी अंतड़ियों को पेसते हुए वह आर-पार हो गया । और जिस फुर्ती से पार हुआ था, उसी फुर्ती से लौटते हुए पुनः पेट में समा गया । इतनी तेज क्रिया-प्रतिक्रिया में चीख के लिए कोई समय तक नहीं था । अतः एकबारगी परिणम ही सामने आया । उस हमलावर का शरीर आंखें पफाड़े कटे वृक्ष की भांति गिर पड़ा ।
इसके बाद जीन ने रूकना उचित न समझा व वह वहां से लौट पड़ा, जो इस बात का परिचालक था कि जिस शिकार की उसे जरूरत थी, उसने उसी को मार गिराया है । आन का समाधन हो चुका था । अब खजाने का शेष रह गया था । एक दर एक डग भरते कदम पुनः फ्रलैट तक पहंुच गए ।
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