Thursday, 1 August 2024

THE GREAT GOD : RASS LEELA 2500



अमित कुमार नयनन


रास-लीला 2500


    

2500 ई0 ! इस वक्त तक हम बहुत आगे जा चुके हैं । बदलते समय व दौर के साथ कृष्ण और राधा भी माॅडीपफाई हो गए हैं ।

कृष्ण अपनी राधा के साथ होली मनाने के लिए टाइम मशीन का बटन दबा मैसेज पास कर रहे हैं । राधा है कि उनसे काल के कभी इस हिस्से तो कभी उस हिस्से में लुकती-छिपती भागती पिफर रही है ।

‘हरे रामा हरे कृष्णा’ का चतुर्दिक स्वर गंुजायमान है । इस स्वर में ‘राधे-राधे..बरसानेवाले आ गए’ का स्वर शामिल हो जाता है ।

राधा कृष्ण से भागते हुए बीसवीं सदी में पहंुच जाती है तो कृष्ण अपनी आवाज में उसे भ्वायस कमांड मैसेज पास करते हैं ।

‘राध्े ! आवारा, अनाड़ी, छलिया श्री 420 ..बीसवीं सदी में मुझे न जाने किन-किन उपाध्यिों से नवाजा गया इसलिए आज भी शो मैन राजकपूर की होली सबको याद है । वो इंडस्टी का शो मैन और मैं टाइम का ..।’

कृष्ण जोश में कुछ हद तक अपना ही महिमामंडन करने लगते हैं । और अपनी टाइमपास साॅरी टाइम मशीन बटन से बीसवीं-इक्कीसवीं सदी का डिस्प्ले दिखाने लगते हैं ।

‘बीसवीं सदी मे मेरे शिष्यगण जब ..।’

‘शिष्यगण !’ - राधा कुछ हद तक अकचका जाती है ।

‘हां ! मेरे शिष्यगण जब आंखों में गोगलस् लगाकर, शरीर पर टी-शर्ट चढ़ाकर और जींस पैंट पहनकर सीटी बजाते जब अपनी राधा की खोज में निकलते थे तो सारी गोपिकाएं मारे शर्म के घर में छिप जाती थीं ..।’ - कृष्ण उत्साह से बखान करने क ेस्टाइल में अंदाज-ए-ब्यां करते हैं - ‘..मगर अब जमाना बदल गया है । आज के आध्ुनिक दौर में जब महिलाएं पुरूषों से कंधे में कंधा मिलाकर चल रही हैं और किसी भी बात में खुद को पुरूषों से कम नहीं समझती हैं, वह भी यानि आज की राधा गोगलस्् लगाकर, टी-शर्ट चढ़ाकर, जींस पैंट पहनकर सीटी बजाते अपने कृष्ण की खोज में मिल जाएंगी ।’

राधा सकपका जाती है - ‘हाए कृष्ण ! ये क्या कह रहे हो ? तुम्हारा दिमाग तो सही है ? क्या आज की राधा ऐसी है ?’

कृष्ण माॅडीफाई स्टाइल व पोज में अचानक स्टाइलिश अंदाज में जोर देकर कहते हैं - ‘राधा ! तुम किस दुनिया में जी रही हो ? अब कृष्ण वो कृष्ण नहीं राधा वो राधा नहीं है । हमने होली में होली खेली है, इन्होंने बिन होली होली खेली है ..मानो बिन मौसम बरसात । इनकी हर दिन होली हर रात दीवाली है ।’ - कृष्ण राधा को समझाते हैं - ‘आज के राधा-कृष्ण के प्रेम के मायने अलग हैं !’

‘हाए राम !’ - राधा दांतों तले अंगुली दबा लेती है ।

‘हाए कृष्ण कहो राधा ! ..कम-से-कम आज के दिन तो हाए राम कहने का काम सीताजी पर छोड़ दो ।’ - कृष्ण की शैली व अंदाज अब भी वही है - ‘आज की राधा व गोपियां एडवांस हो गई हैं । वह भी माॅडीलाइजेशन अंदाज मंे पुरूषोें से कंध्े में कंध मिलाकर, बांहों में बांहें डाल, कमर में हाथ डाल खुले आम कत्ल का फरमान ..मतलब खुले आम इश्क फरमा रही हैं - इश्क पर जोर नहीं ।’ - कृष्ण कुछ उंचे जोश भरे अंदाज मंे सुरमयी हो जाते हैं, तो राधा के मुख से एक ही शब्द निकलता है - ‘नहीं ...।’

‘आज के दौर में मेरे शिष्य कृष्ण मुरारी और उनकी गणिकाएं राधा-रूक्मिणी वगैरह सभी स्टाइलों में पारंगत हैं ।’

राधा कृष्ण की आध्ुनिक शैली देख घबरा जाती हैं - ‘हाए ! मेरे कृष्ण को क्या हो गया है ?’

‘कृष्ण को कुछ नहीं हुआ । ..समय बदल गया है राध्े !’ - कृष्ण अपने सुर में हैं, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता - ‘..बदलते दौर के साथ गोपियां भी माॅडीफाई हो गई हैं । अब कृष्ण भी उन्हीं से रास रचाते हैं ।’

‘हाए-हाए ! मेरे कृष्ण को क्या हो गया है ?’ - राधा हक्का-बक्का भौंचक्का-सा हो कृष्ण का चेहरा देखती है - ‘कृष्ण ! तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ?’

कृष्ण राधा के साथ डांडिया खेलने की कोशिश करते हैं तो वर्तमान समय का हिप-हाॅप स्टाइल उनपर हावी हो जाता है । कृष्ण के कदमताल डांडिया स्टाइल से भटककर उछल-कूद करने लगते हैं मानो पाॅप म्युजिक पर बे्रक डांस कर रहे हों । राधा का डांडिया स्टेप गड़बड़ा जाता है।

‘कृष्ण ! तुम डांडिया की जगह तांडव क्यों कर रहे हो ?’

‘शास्त्रीय और पाॅप में यही फर्क है राध्े । ..पाॅप से भी उपर है ब्रेक डांस ..जिसमे इतने सारे ब्रेक होते हैं कि दिमाग का ब्रेक फल हो जाता है । सुर टूटे ना टूटे, राग जुटे न जुटेे ..मंच ब्रेक कर जाता है और इसी में ब्रेक टाइम हो जाता है ।’

‘कृष्ण ! ..लगता है तुम्हे चढ गई है ।’

‘..कौन किसपर चढ गई है ?’

‘हे भगवान ! मेरे कृष्ण को क्या हो गया है ?’

‘राधे ..मेरी आधे ! ..क्या तुम जानती हो, मैं आधुनिक लवगुरू और तुम आधुनिक लवगुरूआइन हो । मैं हूं लवगुरू, बोलो कहां से करूं शुरू ..?’

‘कृष्ण ! ..तुम द्वापर से लेकर आजतक नहीं सुधरे ।’

‘राधे ! ..भला सुधरना कौन चाहता है ? ..'Constituation of Love' में राधा-कृष्ण नाम अमर है - हमारा प्रेम अमर प्रेम है !’

राधा कृष्ण का डायलागबाजी भरा अंदाज देखती रहती हैं ।

‘मैं तुम्हें अपना प्यार टाइम मशीन के जरिए फलाइंग किस् कर रहा हंू, क्योंकि मैं तुम्हें मिस् कर रहा हूं ..।’ - कृष्ण टाइम मशीन का उल्टा-सीधा बटन दबाते हैं - ‘..इसलिए 2500 ई0 के कृष्ण से द्वापर की राधा को ..।’

‘बस करो कृष्ण ! ..बस । अब सहा नहीं जाता ।’

तभी ‘कृष्ण मध्ुवन में गोपियों संग नाचे, राधा कैसे न जले’ का संगीत कहीं से चलता है, व सुनाई देता है । 

‘तुम घबराओ मत राधा । विज्ञान ने आज बहुत तरक्की कर ली है । तुम्हें डिवाइडेशन पंसद नहीं ..कोई बात नहीं, ..डाॅन्ट वरी ..।’ - कृष्ण फिकर नाॅट स्टाइल मे कहते हैं - ‘मैैं कृष्ण हंू ! एक ही समय में कई जगहों पर संपूर्ण रह सकता हंू, ..तुम्हारे पास भी संपूर्ण ही हंू । यू मे चेक इट ।’

‘कृष्ण ! ये तुम क्या बहकी-बहकी बातें कर रहे हो ?’

राधा की बात का कृष्ण पर कोई असर नहीं पड़ता । वह अपने ही सुर व अंदाज में बकते जाते हैं ‘राधे ! क्या तुम जानती हो कि हमारे लव वर्ड सुन कितने लव बर्ड तैयार हो चुके हैं और दुनिया के हर भाग में आशिकों की फौज का प्रतिनिध्त्वि कर रहे हैं ।’ - कृष्ण कृष्ण-लीला शैली में सुर अलापते हैं - ‘किसी का प्यार फोटोजेनिक होता है, किसी का हाइजेनिक ..हमारा प्यार सार्वजनिक है - आॅल टाइम सार्वजनिक ।’

‘हाए ! ये मैं क्या सुन रही हंू ?’

‘राधे ..मेरी आधे । याद करो द्वापर में प्रेम की वो रास-लीला, पिफर समय बदला और प्रेम गली-नुक्कड़-चैराहों से लेकर पार्क-स्कूल-काॅलेजों से होकर बस, रेल और वायुयान में होने लगा ..ओर अब यह टाइम मशीन के जरिए भी होने लगा है । आप एक समय काल में बैठ दूसरे समय काल के लोगो से प्यार कर सकते हैं ।’ - कृष्ण बंपरवाद शैली व जोशीले अंदाज में कहते हैं - ‘बोलो राध्े ! ..किस स्टाइल का प्यार चाहती हो, किस स्टाइल में तुमसे होली खेलूं ? टाइम मशीन का कौन-सा बटन दबाउं ? तुम जैसा चाहोगी, कृष्ण तुमसे उसी समय की उसी स्टाइल की होली खेलेगा । कृष्ण हाजिर है !’

राधा कृष्ण की सारी बात सुन स्थिर होकर कहती है ।

‘कृष्ण ! मैं नहीं जानती कि समय और परिस्थिति के अनुसार कृष्ण और राधा की कितनी परिभाषाएं बदल गई हैं । मैं बस इतना जानती हंू कि न मैं बदली हंू न तुम ..कृष्ण और राधा आज भी वही हैं । ..तुम आज भी मुझसे द्वापर की वही होली खेलो जो तुमने कभी मुझसे वृन्दावन मे खेली थी उसी पोज उसी स्टाइल में ..। ..जिसकी ध्ुन और ताल पर आज भी दुनिया थिरकती है । जिसकी बांसुरी की ध्ुन पर आज भी गोपियां और रूक्मिणियां मदमस्त हैं । कृष्ण ! मेरे कृष्ण । तुम मुझसे वही होली खेलो ।’ - राधा पुनः कहती है - ‘कृष्ण ! तुम भी वही हो, आज राधा भी वही है ..इसलिए हमारा प्रेम अमर है - राधाकृष्ण !’

कृष्ण राधा की बात सुन मुस्कुरा देते हैं ।

‘मैं तो तुम्हे छेड़ रहा था राधे !’

कृष्ण टाइम मशीन, लैपटाॅप, मोबाइल वगैरह को साइड कर पिचकारी में रंग भर राधा पर रंग उड़ेल देते हैं और बार-बार रंग उड़ेलते हुए रंग से बचने की कोशिश करती राधा को भीगोते ही जाते हैं । पार्श्व से ‘होली आई रे कन्हाई ..’ का मध्ुर संगीत चल रहा है ।। होली आई रे कन्हाई ---

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