सूर्य को ज्योतिष में पिता का दर्जा प्राप्त है । सूर्य से आत्मा, पिता, पद, कीर्ति, राजनीति,दाएं नेत्र आदि का ज्ञान होता है।सूर्य को धर्म में पृथ्वी पर साक्षात् नजर आनेवाले देवता के रूप में माना गया है । ज्योतिष में भी सूर्य को पृथ्वी पर सबसे ज्यादा प्रभाव प्रदान करनेवाले ग्रह के रूप में दर्जा प्राप्त है । जो कि सूर्य की प्रत्यक्ष भूमिका से मेल खाती है । सूर्य हमारा रक्षक, दाता, विधाता है ।।सूर्य एवं द्वितीय व द्वितीयेश जो कि दाएं आंख के प्रतिनिधि भाव हैं, पाप ग्रह से पूर्ण रूप से पीड़ित हों तो दाएं नेत्र में समस्या होगी अथवा वह अंधा भी हो सकता है । इसमे षष्ठ, अष्टम व द्वादश का प्रभाव ज्यादा हानिकारक है । ऐसी स्थिति में शुभ घर के मालिक पाप ग्रह भी नेत्र के संबंध् में ज्यादा शुभ फल नहीं देते । सूर्य, लग्न एवं चतुर्थ स्थान से आत्मा का ज्ञान होता है । अगर लग्नेश के साथ सूर्य व चतुर्थ स्थान पर केवल शुभ ग्रह का प्रभाव हों तो जातक संुदर आत्मा का होेगा, व पाप प्रभाव रहने से ग्रहों के अनुसार पापात्मा होगा । दोनो प्रभाव रहने से मिश्रित व ग्रहदशानुसार वृत्ति होगी ।इसमे यह बात दीगर है कि कर्म का स्थान दशम है । एक अच्छा इंसान भी बुरा व एक बुरा इंसान भी अच्छा कर्म कर सकता है इसलिए वृत्ति कैसी भी हो, उसके आत्मा में दशानुसार जो भी चल रहा हो, वह करेगा क्या यह दशम स्थान बनाम कर्म-भाव से ज्ञात होगा । अगर सूर्य पंचम से जुड़ा है तो एक कुलदीपक संतान को इंगित करता है । अगर वह स्वया पुरूष राशि में हो तो इस बात की संभावना बलवती हो जाती है व संतान पुत्रा होगा अन्यथा स्त्री राशि में रहने से संतान पुत्री । पंचमेश सूर्य की भी पुरूष या स्त्री राशि में बलवती स्थिति यही फल देता है ।सूर्य एवं दशम मतांतर से नवम स्थान से पिता का ज्ञान होता है । अगर दोनो पाप-प्रभाव में हों तो पिता का सुख अल्प या नहीं होता है । साथ में शुभ दृष्टि आदि का प्रभाव भी रहने से मतांतर अथवा पिता से दूर रहने का योग बनता है ।सूर्य एक राजसी स्वभाव के ग्रह हैं । दशम स्थान पद का है इसलिए यह राज-कार्य से जुड़े पद व कार्य के द्योतक हैं । सूर्य लग्न में स्थानबली तो दशम स्थान में दिग्बली होता है । इस तरह इस स्थान में वह अन्य ग्रहों की अपेक्षा ज्यादा मजबूत होता है । वैसे भी सूर्य अन्य ग्रहों की अपेक्षा पृथ्वी पर सबसे ज्यादा प्रभाव छोड़नेवाले ग्रहों में है, इसलिए इसकी किसी भी स्थान व भाव में स्थिति विशेष प्रभाव बनाती है ।सूर्य शरीर का कारक ग्रह है, इसलिए यह लग्न का कारक ग्रह भी है । अतः दशम में इसकी उपस्थिति स्वास्थ्य-कार्य या विभाग से भी जोड़ती है ।सूर्य सरकारी, अर्धसरकारी आदि तमाम कार्यों से भी जोड़ता है । सूर्य का एकादश से संपर्क राज्यलाभ कराता है । किसी ग्रह का शुभाशुभ फल उसपर शुभाशुभ ग्रह की स्थिति व उसके शुभकत्र्तरी व पापकत्र्तरी योग पर निर्भर करता है । किसी भाव का अध्ययन उसके अध्पिति से शुरू होता है । उस भाव में बैठे ग्रह तत् उसपर दृष्टि, कत्र्तरी आदि योग से होते हुए क्रमशः फल देता है । भाव व ग्रह के फल दशानुसार फलित होते हैं ।
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