अमित कुमार नयनन
@ 1001 Free Stories
A Revengeless Justice
एक क्रिश्चियन फैमिली का घर !
एक बढ़ते हुए कदम उस घर के लॉन में घुसने से पहले लॉन के बाहर के छोटे से गेट को खोलते हैं और कदम उसी प्रकार सधे अंदाज में लॉन पर से होते घर के मुख्य दरवाजे तक पहंुच जाते हैं । उस शख्स के कदम जबतक मुख्य दरवाजे पर आकर रूकते हैं और दरवाजे पर जिस प्रकार दस्तक देते हैं उससे पता चलता है कि वह यहां किसी से मिलने या किसी कार्य विशेष से आया है ।
उसके हावभाव में कोई हड़बड़ाहट नहीं थी और न ही दिनचर्या वाली जैसी बात नजर आती है जिससे यह भी स्पष्ट होता है कि वह यहां अक्सर या रोज रोज आया जाया नहीं करता बल्कि पहले एकाद बार या काफी कम बार या हो सकता है शायद पहली बार आया हो तभी तो वह दरवाजे पर खड़ा होने से पहले अंदर आने से पहले अपने आपको संतुलित करता है । इस संतुलन का क्या अर्थ है बताना मुश्किल था । क्योंकि उसका मंतव्य क्या है अभी तक अज्ञात था । फिर भी इतना तो ज्ञात होता था कि वह किसी मंतव्य विशेष से आया है ।
कमरे का दरवाजा अंदर से कोई खोलता है जिसे देखकर वह मुस्कुराता है । दरवाजा खोलनेवाला शख्स उसे कुछ इस तरह और अंदाज में हाथ के इशारे से वेलकम करता अंदर आने का आमंत्रण देता है जैसे उसे अंदर आने का रास्ता दे रहा हो । इसमे कुछ हद तक स्वागत का पुट भी प्रतीत होता है । आंगतुक पूरे अदब के साथ सधे संतुलित तरीके से अंदर की ओर प्रवेश कर जाता है ।
रहस्य रोमांच, सस्पेंस, थ्रिल का अंदाज लिए आंगतुक के कदमो का घर में प्रवेश व आगमन होता है । उसे बुलानेवाले का चेहरा तो नहीं दीखता मगर हावभाव सेऐसा लगता है जैसे वह स्वयं उस घर का हिस्सा हो एवम् घर व से आगंतुक का परिचय करा रहा हो ।
उस घर के मेनहॉल में समस्त परिवारगण बैठे मंत्रणा कर रहे हैं । यह एक फुल फैमिली है । इस फैमिली में माता, पिता, भाई, बहन, बच्चे सभी हैं । माता, पिता, भाई, बहन किसी बात पर सरल तरीके से परिचर्चा कर रहे हैं तो बच्चे भी वहीं कभी सोफासेट कभी कुर्सी कभी टेबल पर या उसके आसपास खेल रहे हैं मगर हैं वहीं पर मानो इस बैठक में वह भी शामिल हों । ऐसा लग रहा है जैसे सभी किसी मसले पर या यंू ही एक जमा इकट्ठे हों ।
तभी वहां आंगतुक का आगमन होता है । उस फैमिली की बेटी उसे अंदर तक लाती है । आगंतुक के आते ही सभी के चेहरे खिल जाते हैं और सबो के चेहरे पर खुशी छा जाती है ।
आगंतुक युवा है । सभी उसका इस प्रकार स्वागत करते हैं, मानो उसी का इंतजार कर रहे हों । उसे यथोचित तरीके से सम्मान दिया जाता है व बिठाया जाता है । आगंतुक युवा सम्मानजनक तरीके से अभिवादन कर स्थान ग्रहण करता है । आंगतुक के आने के बाद उनकी आपस में परिचर्चा शुरू होती है ।
लड़की की माता : आने में कोई परेशानी तो नहीं हुई बेटा । हम तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे । मेरी बेटी तुम्हारी बहुत तारीफ करती है ।
लड़की का पिता कुछ उत्साहित स्वर में प्रसन्नता से कहता है ।
लड़की का पिता : और करे भी क्युं नहीं ण्ण्तुम उसकी पसंद जो हो ।
लड़की की माता : हमारी भी पसंद हो ।
वह लड़की जो उसे दरवाजे से अंदर तक लाई थीए स्वागत में खाने की कुछ मिठाइयां, बिस्कीट वगैरह लाकर सामने रख देती है । फिर कुछ सकचाकर अंदर कमरे की ओर चली जाती है । और कभी कमरे के अंदर तो कभी पर्दे की ओट से रह रहकर उनकी बातें सुनती या सुनने की कोशिश भी करती रहती है ।
थोड़ी देर में परिवाद के सभी सदस्य उससे परस्पर वार्ता करते हैं । बच्चे भी हिल मिल जाते हैं । कुछ देर बाद बच्चों को खेलने कूदने के लिए दूसरे कमरे की ओर भेज दिया जातार है कि शोर वगैरह न हो । बच्चे अपने आप में मग्न हो जाते हैं । लड़की के भाई बहन आगंतुक से बातचीत कर अपने अपने कमरे में बारी बारी से चले जाते हैं और घर के माहौल में पूर्ववत् मिल जाते हैं । बावजूद इसके आगंतुक को यह महसूस नहीं होने देते कि वह कई अन्यत्र गए हैं बल्कि यह महसूस कराते हैं कि आगंतुक भी परिवार का सदस्य है और फॉर्मैलिटी की जरूरत नहीं है । इसलिए आगंतुक कंफर्टेबल माहौल में पूरी तरह कंफर्ट हो आराम से बातचीत वगैरह कर सकता है मानो अपना घर हो । इसलिए परिवार के सदस्य बारी बारी से बीच बीच में आकर आगंतुक के सामने से गुजरते वार्ता भी करते जाते हैं तो बच्चे भी बीचबीच में खेलकूद करते पहंुचते फिर घर के अन्य हिस्सों की ओर भाग भी जाते हैं । इसी प्रकार उनकी बाल सुलभ धमाचौकड़ी चलती रहती है । इस प्रकार आगंतुक परिवार का एक हिस्सा सा प्रतीत होता है । आगंतुक को भी कंफर्ट मालूम पड़ने लगता है ।
इसी प्रकार जब काफी देर हो जाती है तो घर की महिलाएं अपने काम में व्यस्त हो जाती हैं सिर्फ लड़की के माता और पिता आगंतुक के पास रह जाते हैं । लड़की की मां भी उठकर कुछ देर बाद घर के काम वगैरह के लिए अंदर के कमरे की ओर चली जाती है । आगंतुक और लड़की के पिता मुख्य तौर पर हॉल में रह जाते हैं ।
पिता : बेटा ! तुमने अपना नाम तो बताया मगर अपना बैकग्राउंड नहीं ।
आगंतुक बड़ी सरलता से बात को टालने के अंदाज में कहता है ।
आगंतुक : आपकी बेटी से प्यार करता हंू, क्या यह काफी नहीं ?
आगंतुक की टालमटोल से संतुष्ट नहीं होते हुए लड़की का पिता सरस सौहार्दपूर्ण तरीके से अपनी बात कहने के अंदाज में सवाल पूछना जारी रखता है । उसके कई जवाबों में वही सवाल छिपे होते हैं ।
लड़की का पिता : ऐसे तो मुझे तुममे कोई कमी नहीं दीखती । तुम काफी सभ्य और सुशील भी हो ण्ण्फिर भी बार बार पूछने पर भी तुम्हारा अपने बैकग्राउंड के बारे मंे कुछ भी नहीं बताना ण्ण्थोड़ा शंकित करता है । मुझे तुमपर शंका कम तुम्हारे बैकग्राउंड पर ज्यादा हो रही है ।
लड़की के पिता के स्वर में कुछ हद तक दृढ़ता उभरती है मानो उसने आगंतुक की कोई कमजोरी पकड़ ली हो और वह उसे अस्त्र-शस्त्र बना उसपर हमले के लिए तैयार हो गया हो । हांलाकि यह हमला आगंतुक पर नहीं बल्कि उसकी टालमटोल और बहानेबाजी के रवैये को लेकर और उस रवैये के उपर था । फिर भी दोनो में सवाल और जवाब बनाम सच और झूठ के बीच की जद्दोहद तो चल ही रही होती है । यद्यपि फिर भी बातचीत में सौहार्द कायम रहता है मगर सवालजवाब जारी रहते हैं ।
लड़की का पिता : क्या तुम्हारा फैमिली बैकग्राउंड वाकई बहुत खराब है --तुम बता नहीं सकते !
आगंतुक सरलता से मानो बात टालता दीखता है ।
आगंतुक : ऐसा नहीं है --ण्ण्जैसे आपकी फैमिली वैसी मेरी फैमिली ।
लड़की का पिता कुछ हद तक मुस्काता है, कुछ इस तरह मानो आगंतुक की कही गई बातो का कोई निहितार्थ उसकी बातो का कोई अर्थ न हो ।
आगंतुक द्वारा अपनी आइडेंटिटी पहचान बैकग्राउंड के बारे में न बताने पर लड़की का पिता कुुछ हद तक अपनी शिकायत छिपाते मुस्कान भरे लहजे में उसके चेहरे को सवालिया निगाहों से निहारते जवाब के अंदाज में छद्मभेदी सवाल करता है ।
लड़की का पिता : मुझे लगता है ण्ण्तुम्हारे पास मेरे सवाल का जवाब नहीं ।
आगंतुक सवालों में छिपे जवाब और जवाबों में छिपे सवाल का अर्थ खूब समझता था । शायद उसने जमाने के कई रंग देखे थे कई तंज सहे थे । यह तंज भी शायद उसी का एक हिस्सा था । शायद !
आगंतुक लड़की की पिता की आंखों में देखता है बल्कि झांकता है जिसमे नजर आ रही सवालिया निशान को वह भांप लेता है या कहा जाए बखूबी पहचान लेता है । आगंतुक एक क्षण स्थिरता से एक सांस लेता है जिसका पता वह सामनेवाले को नहीं चलने देता फिर भी बातों के लिए लिए गए अंतराल से लड़की का पिता भांप लेता है कि उसने इतने देर में जवाब के लिए खुद को तैयार किया है । शायद आगंतुक लड़की की पिता की अपेक्षा ज्यादा ही पूर्व जवाब के लिए तैयार था या फिर शायद वह लड़की के पिता के इसी सवाल का इंतजार कर रहा हो जिसका जवाब देने का समय आ गया हो । इसलिए वह सांस का अंतराल जो लिया हो उसमे इत्मीनान की सांस शामिल हो क्या पता ।
आगंतुक : कहीं ऐसा न हो कि ण्ण्शायद पास मेरे सवाल का जवाब नहीं (बोलना चाहता है मगर रूक जाता है)। क्या पता (थोड़ा रूककर अंदाज बदलते हुए) ण्ण्शायद । (विशेष अंदाज में) --आपके पास मेरे सवाल का जवाब नहीं ।
आगंतुक के इस जवाब के आगे लड़की के पिता के चेहरे की सवालिया मुस्कान प्रश्नवाचक मुस्कान में बदलती जाती है मानो आगंतुक की कही गई बात पहले उसे मजाक लग रही हो । मगर आगंतुक की स्थिर शांत सरल स्पष्ट दृढ़ता के आगे लड़की के पिता के चेहरे के भाव आगंतुक उसके चेहरे उसके बॉडी लैंग्वेज को घूरते हुए एक अजीब सी मुस्कान पर आकर ठहर जाते हैं जिसमे एक अजीब सी शंका और डर का अप्रत्यक्ष बोध सा उभर रहा हो । किसी इंसान का एक ही शॉट में इतने प्रकार के चेहरे के भाव और मुस्कान परिवर्तन का सामना बहुत कम ही होता है । इसमे एक कर्ता् और एक दर्शक दो प्रत्यक्षप्रमाण थे, इनमे एक कर्ता का एक दर्शक गवाह था ।
लड़की के पिता को इस प्रकार से उल्ट जवाब की आशा बिल्कुल न थी । आगंतुक के चेहरे को निहारते हुए लड़की के पिता को महसूस होता है कि अभी जो कुछ भी हो रहा है वह सामान्य नहीं है । आगंतुक के चेहरे के भाव और लड़की के पिता के चेहरे के भाव वार्ता में कई बार बदले मगर इस स्थान पर आकर ठहरे हैं । अंतर सिर्फ इतना था कि कुछ देर पहले आगंतुक से लड़की का पिता सवालों के घेरे में था इस वक्त लड़की का पिता आगंतुक के सवालों के घेरे में । लड़की के पिता को अपने सवालों के जवाब में जवाबों में सवाल मिल जाएंगे अनुमान न था । वह उन जवाबों के सवाल में छिपे मर्म को जानने पढ़ने की कोशिश कर रहा था । लड़की के पिता को समझ नहीं आ रहा कि वस्तुतः हो क्या रहा है उसे यह भी अंदेशा और शंका हो चली थी कि कुछ अप्रत्याशित सा होनेवाला है।
लड़की के पिता की मुस्कान ठहर गई थी । कुछ देर बाद गायब हो गई थी । लड़की का पिता के चेहरे के भाव शांत स्थिर हो गए थे । आगंतुक के व्यक्तित्व को वह निहार रहा था ।
सबकुछ बहुत कुछ पर्दे के पीछे चल रहा था मानो सबकुछ सामने आने को बेताब हो या आनेवाला हो । कुछ स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता था । मगर जो भी हो रहा था रहस्य नहीं तो रोमांच से सराबोर जरूर होता जा रहा था । मगर रोमांच ऐसा कि रहस्य भी उसके आगे फीका पड़ जाए । आमतौर पर रोमांच की पराकाष्ठा होती है तो रहस्य खुलने का समय आ जाता है ।
लड़की का पिता अबतक सबकुछ सोच.समझ ही रहा होता कि आगंतुक ने अपने कोट के अंदर हाथ डाला ऐसा लगा जैसे कोई चीज निकाल रहा हो ण्ण्कुछ इस प्रकार जैसे कोई रहस्यभेदन वस्तु या कहीं पिस्तौल वगैरह तो नहीं । लड़की का पिता ठीक से कुछ सोच.समझ भी नहीं पाया कि आगंतुक ने कोट के अंदर से एक पैकबंद लिफाफा निकाला । लड़की के पिता की नजरें आगंतुक के बाद करने के अंदाज के साथ उसकी ऐक्टिविटी पर तो थी ही कोर्ट से कोई वस्तु फिर लिफाफा निकालने के अंदाज को भी वह सोचने, समझने, पढ़ने की कोशिश कर रहा था । ऐसा लगता था आगंतुक पूरी तैयारी के साथ आया है । कुछ हद तक यह तो तय हो गया था । अन्यथा इस खुशनुमा माहौल में इस प्रकार बातें और इस लामबंद लिफाफा को लाने का क्या औचित्य है !
आगंतुक कोट की जेब से लिफाफा निकालकर लड़की पिता की आंखों के सामने टेबल पर रख देता है ।
आगंतुक : मेरे सवाल का जवाब आपके पास है । या नहीं ! फैसला आपपर है ।
लड़की का पिता पहले लिफाफा को आश्चर्य से देखता है और फिर आंगतुक को आश्चर्य से निहारता है ।
लड़की का पिता : क्या है ये ?
आगंतुक : मैरेज इन्वीटेशन कार्ड !
आगंतुक मुस्कुराता है ।
लड़की का पिता : क्या है ये सब ?
लड़की के पिता को आगंतुक की यह हरकत ज्यादती लगती है ।
लड़की का पिता : यह ठीक है कि मेरी बेटी तुम्हे पसंद करती है तुम भी इसे पसंद करते हो । हमे भी यह रिश्ता मंजूर है । फिर इन सबका क्या मतलब है ? घ्आखिर तुम चाहते क्या हो ! क्या तुम ये समझते हो कि इस तरह की हरकत से मैं इस तरह जबरदस्ती शादी के लिए मान जाउंगा । तुम करना क्या चाहते हो ? तुम कहना क्या चाहते हो ?
आगंतुक : मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा । जबरदस्ती की बात ही कहां है ?
लड़की का पिता आगंतुक को जितना समझने की कोशिश करता हैए वह उतना ही उलझता जा रहा है । उसे समझ नहीं आ रहा आगंतुक आखिर चाहता क्या है ? लड़की का पिता असमजंस उहापोह की स्थिति से गुजरने लगता है ।
आगंतुक : मेरी एक रिक्वेस्ट है । यह इन्वेलप आप मेरे निकलने के बाद खोलिएगा ।
लड़की का पिता संदेह और संशय से भरे लहजे में प्रतिवाद की हल्की कोशिश करता है - किस बात का डर है ?
आगंतुक सरल मगर अर्थपूर्ण अंदाज में कहता है .- डर मुझे नहीं आपको है । मैं आपके भले के लिए ही कह रहा हंू ।
आगंतुक दूसरे कमरे से देख रही अपनी प्रेमिका को देखते हुए कहता है जिसे लड़की का पिता भी देखता है ।
आगंतुक : आपके बेटी के पेट के अंदर मेरे (रूककर) हमारे प्यार का बीज पनप रहा है । अगर आप चाहते हैं कि मैं उसे अपना नाम दंू तो आपको भी उस बीज को अपना नाम देना होगा जिस लड़की के पेट अंदर आपके प्यार का बीज पनप रहा था । वो और कोई नहीं मेरी मां थी --। जिसे आपने ण्ण्जिसके बच्चे को आपने --। वो बच्चा मैं हंू !
लड़की का पिता आगंतुक को देखता रह जाता है । आगंतुक के उतर ने उसे एक प्रश्न की तरह सामने खड़ा कर दिया था । लड़की का पिता आगंतुक को किसी प्रश्न की भांति देख रहा है । अवाक् !
आगंतुक : इसमे सारे डिटेल और प्रमाण पत्र हैं ।
आपके और मेरे बीच के उस संबंध के बारे में जिसे आपने मेरे जन्म से पहले मेरे साथ बनाया था ।
लड़की का पिता धीमे से लिफाफा खोलता है, देखता है कि लिफाफा के अंदर मैरेज कार्ड है जिसपर समस्त परिवार के नाम छपे हैं मगर लड़का और लड़की के पिता का नाम की जगह खाली है । मैरेज कार्ड के बीच में डीएनए रिपोर्ट है । उसकी एक नजर पहले डीएनए रिपोर्ट फिर आगंतुक पर जाती है ।
लड़की का पिता देखता है लिफाफा के अंदर एक पत्र भी है । वह उसे तत्काल नहीं खोलता ।
आगंतुक इसके बाद मेहमाननवाजी के तत्काल बाद वहां से निकल जाता है । लड़की का पिता एक प्रश्न की भांति खड़ा रहता है जो एक प्रश्न की भांति आगंतुक को देखता रह जाता है ।
आगंतुक के जाने के बाद लड़की के पिता के कानो में उसकी बात गंूजती रहती है ।
लड़की के पिता को याद आता है कि किस प्रकार वार्ताक्रम आगे की ओर बढ़ता है । वह चुपचाप उसे सुनता जा रहा था क्योंकि आगंतुक के खुलासे के बाद उसके पास कहने को कुछ रह नहीं गया था ।
आगंतुक के जाने केे बाद लड़की के पिता की आंखों के सामने अतीत की गहराइयों से होकर वर्तमान के वार्ता के चित्र चलचित्र की तरह सामने आ रहे हैं । वह उसकी आंखों के सामने से चलचित्र की तरह अब भी गुजर रहे हैं, कानों में किसी रेडियो की तरह अब भी गंूज रहे हैं ।
आगंतुक के मना करने के बावजूद धीमे से लिफाफा से पत्र निकालकर लड़की का पिता उस पत्र को पढ़ता है । पत्र का मजमून कुछ इस तरह लिखा होता है कि जैसे मानो आगंतुक को पता हो कि क्या प्रश्न होनेवाला हो और उसका उतर उसने पहले से उसमे लिखकर रख दिया हो । और हो भी क्यंु नहीं ऐसा कौनसा घर हो या फिर शायद ही कोई घर होगा जहां विवाह के दौरान लड़का-लड़की दोनो के अलावे उसकी फैमिली, बैकग्राउंड वगैरह के बारे में न पूछा जाता हो । आगंतुक का अनुमान सहज धारणा पर आधारित था और पूर्णतया सही था । इसलिए उस अनुसार उसने प्रश्नों के उतर पहले से ही सजाकर रख दिए थे । उनमे अनकही द्वंद की यह तस्वीर भी पत्र वार्ता के माध्यम से सामने आई जो भले प्रत्याशित थी मगर घटनाएं अप्रत्याशित थीं ।
आगंतुक-पत्र : आप ही बताइए । इस मैरेज इन्वीटेशन कार्ड को मैं कैसे पूरा करूं ?
लड़का के पिता और लड़की के पिता आप ष्ही हैं ! बताइए ! इस विवाह कार्ड को किस प्रकार पूरा करूं ! सच से या झूठ से । आप मेरा सच जानना चाहते थे । उस सच को जाने बगैर शायद हमारी शादी के लिए तैयार नहीं थे । सच जब सामने है तो क्या झूठ से मैरेज कार्ड पूरा किया जाएगा । मेरी बारी आई तो सच की जरूरत थी और आपकी बारी आई तो झूठ का सहारा लेंगे आप । सच और झूठ का जिंदगी में अच्छा उपयोग कर लेते हैं आप ! इस सच को आप किस झूठ से छिपाना चाहेंगे ? आपने मुझसे पिता का नाम पूछा ण्ण्आपने मुझसे फैमिली के बारे में पूछा आपने मुझसे फैमिली बैकग्राउंड पूछा । क्या कहता घ्ष्झठ ! पहले आप सच सुनना चाहते थे । अब सच से भागना चाहते हैं ।
आप मेरे हर जवाब पर अंगुली उठा रहे थे । मुझे प्रश्नों के घेरे में खड़ा कर रहे थे । मैं बचने की कोशिश कर रहा था और आप सवाल पर सवाल किए जा रहे थे । मेरे सारे सवालों का जवाब आप हैं । आपके सारे सवालों का जवाब भी आप ही हैं । मेरे पिताए फैमिली फैमिली बैकग्राउंड सब तो आप ही हो !
प्रेम और विवाह के लिए सिर्फ दो लोगो का आपस में रजामंद होना जरूरी है । मगर जब हम प्रैक्टिकल रूप से सोसाइटी में आते हैं तो हमारे मातापिता, फैमिली, फैमिली बैकग्राउंड के बारे में पूछा जाता है ।
इस बात का आपके पास क्या जवाब है ? कोई जवाब है !आपके पास होगा भी कैसे ? जिसने खुद तो सोसाइटी में जाकर शरण ले ली और एकसाथ दो लोगो को सोसाइटी से बाहर एक को कुल्टा, कुलक्षिणी, कलंकिनी और दूसरे को लावारिस, हरामी के नाम के साथ जीने को मजबूर कर दिया ।
लड़की का पिता अपने आपको नियंत्रित नहीं कर पा रहा । उसकी नजरें अपनी बेटी की ओर जाती है जो पेट से है । आगंतुक की आंखों में आंखें डालकर पूछने की कोशिश करता है ।
लड़की का पिता कुछ देर तक चुप्प रहता है फिर धीमे लहजे में कहता है क्योंकि सवाल करने की हिम्मत उसमे बची नहीं थी ।
लड़की का पिता : तुमने मेरा बदला मेरी बेटी से क्यंु लिया ? वह किसी की बहन है बेटी है तो किसी दिन किसी की मां भी बनेगी !
आंगतुक मुस्काता है मानो कह रहा हो वह आपकी बेटी मां तो बन चुकी है ।
लड़की का पिता आगंतुक की मुस्कान में जवाब पढ़ लेता है । स्वयं को संयत करने की कोशिश करता है । आगंतुक के लिए लड़की के पिता का निरूतर होना उसके लिए सवाल करने का समय था । वह कोई भी अवसर हाथ से जाने नहीं देना चाहता था । उसे अपने सवालों के जवाब भी चाहिए थे जिसके लिए वह यहां आया था ।
आगंतुक : आपने जिसके साथ ऐसा किया वह भी तो किसी की मां, बहन, बेटी थी ।
और प्यार तो आप दो लोगो ने किया था । ऐसे में उस बच्चे का क्या कसूर था जिसे जन्म से पहले ही हरामी बास्टर्ड का ट्रेडमार्क मिल गया । वो भी जन्म से पहले ।
एक लावारिस की जिंदगी और हरामी का तमगा लगाकर जिंदगी में किसी और की किए की सजा भुगतना और जीना कितना कठिन होता हैए यह सिर्फ जीनेवाला ही जानता है ।
आपने एक साथ दो लोगो की जिंदगी तबाह की ।
लड़की का पिता को मानो काठ् मार गया है । अंदर से हिल गया है । टूट गया है । उसके अंदर वाद प्रतिवाद की शक्ति जाती रही है ।
लड़की का पिता इतना ही कह पाता है ।
लड़की का पिता : एक भूल की तुमने मुझे इतनी बड़ी सजा दी ।
आगंतुक : भूल को भूल समझकर भूल जाना इंसान की पुरानी आदत है । अपने गुनाहों को गलती बताना दूसरे की गलतियों को गुनाह बताना इंसान की पुरानी फितरत हैं । यहां तो हम दोनो ने एक ही भूल एक ही गुनाह किए हैं । इसमे कम या ज्यादा बड़ा गुनहगार कौन है प्रश्न ही कहां उठता है हम ही सवाल हम ही जवाब हैं ।
हम सभी अपने द्वारा किए गए गुनाहों को जस्टीफाई करने की कोशिश करते हैं । मैं गुनाह नहीं कर रहा सिर्फ अपने अधिकार मांग रहा हंू न्याय कर रहा हंू।
अगर आप मुझे न्याय देंगे मैं आपको न्याय दंूगा । मैं बदला नहीं ले रहा न्याय कर रहा हंू । मैं कहीं नहीं जा रहा कहीं नहीं भाग रहा --हर समय हर वक्त हर जगह आपके आसपास आपके इर्दगिर्द आपके सामने हंू --जिस दिन मैं न्याय पा लंूगा उस दिन आपको न्याय मिल जाएगा ण्ण्। इंसान भूल सुधार कभी भी कर सकता है ण्गर सबो में इसका एकसमान साहस नहीं होता मैं तैयार हंू ! क्या आप तैयार हैं ?
आंगतुक युवा के जाते कदम, बेटी, बेटी के पेट में पल रहा बच्चाए पूरी फैमिली के साथ लड़की के पिता की आंखों के सामने से बारंबार गुजरते चित्र चलचित्र की तरह सबकुछ सामने से गुजर रहा है ।
आगंतुक स्वयं को निष्कर्ष की ओर ले जाते अंदाज में ब्यां करता है ।
आगंतुक : हमारे हम सबके अंदर एक शैतान बैठा हैए अवसर मिले तो हर पाप कर जाए । आगंतुक और लड़की के पिता की आंखें एकदूसरे को देख रही और एकदूसरे को पढ़ रही हैं । आंगतुक की आंखों में सवाल हैं तो लड़की के पिता की आंखों में उन सवालों से बचने की कातरता जद्दोहद और भी बहुत कुछ । लड़की का पिता सच में कहा जाए तो इन सवालों का सामना ही नहीं करना चाहता जिनके उतर शायद उसके पास नहीं थे ।
आगंतुक सरल स्पष्ट तरीके से अपनी बात रखता है ।
आगंतुक : मैं यहां आपको दोषी और खुद को निर्दोष साबित करने नहीं आया । सही है या गलत फैसला आपपर है । मेरे अंदर वही इंसान या शैतान बैठा है जो अरसों पहले आपके अंदर था । मैंने वही किया जो आपने किया । सही या गलत फैसला आपपर है ।अगर आपको अपना फैसला गलत लगता है तो क्या उसे सुधारने को तैयार हैं ?
मैं तैयार घ्ह, क्या आप तैयार हैं ?
लड़की का पिता के चेहरे के भाव में कई सारे भावों का मिश्रण हो जाता है । भय, क्रोध, विवशता, चिढ़, अपराध बोध, स्वयं से घृणा, धिक्कार ण्ण्जैसे कई मनोभावों का मिश्रण होता है ।
लड़की का पिता : तुमने मेरी जिंदगी में मुझे ही जज और मुझे ही कसूरवार बना दिया ।
आगंतुक, लड़की का पिता, लड़की सहित फैमिली, लड़की के पेट में पल रहे बच्चे --आगंतुक और अजन्मे बच्चे - लड़की का पिता आगंतुक अपनी बेटी और बेटी के पेट को देखता है, फिर आंगतुक की ओर । लड़की के पिता की नजर डीएनए रिपोर्ट फिर आगंतुक पर जाती है जो उसका अपना बेटा है ।
आगंतुक की बातें उसके कानो में अब भी गंूज रही हैें ।
आगंतुक : किसी अपराध के लिए कत्ल या कत्ल की सजा देना सदा जरूरी नहीं होता !
Every Crime Story nor every punishment doesn't need murder
लड़की का पिता : तुमने तो मुझे कत्ल से भी बड़ी सजा दी ।
आगंतुक : आपको हमने कभी कोई सजा नहीं दी ।
आपके कर्मों ने आपको सजा दी, आपके गुनाहों ने हमे सजा दी । एक ऐसी सजा जो आजतक चली आ रही है । खत्म होने का नाम ही नहीं लेती --।
आगंतुक और लड़का बनाम लड़की का पिता का संघर्ष चलता रहता है ।।
आगंतुक के बाहर की ओर जाते कदम और लड़की के पिता के अंदर चल रहे अंतर्द्वंद एक साथ चलते रहते हैं ।
लड़की का पिता आगंतुक के बाहर जाते कदमो के बावजूद उसकी अभिन्न कालजयी उपस्थिति को महसूस करता है जिससे वह चाहकर भी पीछा नहीं छुड़ा सकता । यह उसके अतीत का वह पन्ना है जिसकी कहानी उसने खुद लिखी है और चंूकि वह स्वयं इसका कहानीकार है इसलिए एक बार जो कहानी लिख दी सो उसमे चाहे कितना भी परिवर्तन कर लिया जाए उससे जाने कितनी भी नई कहानियां बना ली जाएं उस कहानी का वजूद कई नई कहानियों के बावजूद भी खत्म नहीं हो जाता । अलबता उसी कहानी के गुणसूत्र से लिखी गई नई कहानियां भी उसी कहानी की कड़ी शिरा ही होती हैं । इस कहानी के गुणसूत्र की कथा इनके अपने गुणसूत्र से लिखी थी । इसलिए यह कहानी अमिट अविभाज्य थी ।
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