AMIT KUMAR SINHA
@ 1001 FREE STORIES
अमित कुमार नयनन
मैं तुम्हें पाने के लिए किसी भी हद से गुजर जाउंगी
फलैशभवायस: इस जीवन में कभी-कभी ऐसे वाक्ये भी होते हैं जिसे अच्छा-बुरा सही-गलत की नजर से देखना मुश्किल होता है । यह ऐसे वाक्ये होते हैं जिनका होना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात होती है ।
विम्मी और सिम्मी एक बगीचे में एकांत में बैठी गुफत-गू कर रही हैं । गुफत-गू में विशेष कुछ भी नहीं लग रहा था । वह दोनो आपस में सहज वार्ता, सरल शैली में हंसी-मजाक भी कर रही थीं । इस क्रम में एक-दूसरे को हाथ से कंध्ेा पर थपकी वगैरह भी दे देतीं ।
भ्वायस ः कई बार या अक्सर कुछ विशिष्ट होने से पहले सबकुछ सामान्य ही चल रहा होता है ।
विम्मी ः ‘मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हंू ..।’
सिम्मी ः ‘बोल ..!’ ;फिर सेद्ध ‘सोच क्या रही है ? ..बोल !’
विम्मी ः ‘सोच रही हंू ..।’ - फिर से रूक-सा जाती है - ..मेरी बात को तू जाने किस तरह लेगी ?’
सिम्मी ः ..ऐसा क्या खास है ?’
सिम्मी विम्मी की ओर देखती है ।
सिम्मी ः ‘कोई ऐजुकेशनल बात ?’
विम्मी ः ‘उहंु ।’
सिम्मी ः ‘कोई फाइनेंशियल बात ?’
विम्मी ः ‘उहंु ।’
सिम्मी ः ‘कोई प्रोफेशनल बात ..?’
विम्मी ः ‘उहंु ।’
‘उहंु’ सिर के एक्सप्रेशन या चुप्पी द्वारा बारंबार कहा-दिखाया जाता है ।
सिम्मी ः ‘कोई पर्सनल बात ?’ - अचरज से जोर देकर तनिक आश्चर्य से -‘पर्सनल ! ऐसी कौन-सी पर्सनल बात है जिसके लिए तूने ..। - जोर देकर - ‘तेरे-मेरे बीच इतनी अच्छी दोस्ती है कि इसमे पर्सनल बात जैसी कोई बात ही नहीं है । तू और मैं एक ही हैं !’ --पर्सनल की तो इतनी समझ ले कि ..मेरा तो भाई भी नहीं है, कि तुझे उससे प्यार हो गया और कहने में हिचक रही है, अगर होता तो उससे भी बयाह देती
विम्मी मुस्कुराती है मगर कुछ कहती नहीं । चेहरे पर एक नपी-तुली हिचक भरी मुस्कुराहट है ।
विम्मी ः ‘मैं तुमसे प्यार करती हंू !’
सिम्मी ः ;सरलता सेद्ध ..वह तो मैं जानती हंू ..कि तू मुझसे बहुत प्यार करती है ।
विम्मी कुछ-कुछ हिचकते हुए कुछ हद तक लजाते-शर्माते ...
विम्मी ः ..‘तुम समझ नहीं रही ..मैं तुुुम्हे ..वो वाला प्यार करती हंू ।’
सिम्मी ः ‘हा-हा-हा-हा-हा ..।’
सिम्मी उसकी बातों पर जोर से हंसती है । बात को हंसी में उड़ाती है ।
सिम्मी ः अच्छा मजाक है ..यू आर जोकिंग ..।
सिम्मी उसकी बातों को हंसी में उड़ा रही है, हंसी में उड़ाने की कोशिश कर रही है, मगर विम्मी के चेहरे के भाव उसकी सोच से अलग हैं ।
सिम्मी ः आर यू सिरीयस !
विम्मी ः ;जोर देकर पूरी अधीरता सेद्ध ‘मैं तुमसे सचमुच बहुत प्यार करती हंू ।’
सिम्मी ः ‘आर यू मैड !’
विम्मी का प्यार का जुनून उसपर हावी हो रहा है ।
विम्मी ः मैं तुुुुम्हें किसी भी कीमत पर हासिल करके रहंूगी ।
मैं तुुुम्हें पाने के लिए किसी भी हद से गुजर जाउंगी ।
मैं तुम्हें पाने के लिए किसी हद से गुजर जाउंगी ।
सिम्मी ः ‘तुमपर तो जुनून सवार है ..यू हैव बिन ऑबशेस्ड ।’
विम्मी ः ‘कोई भी प्यार बिना जुनून नहीं होता ..प्यार एक जुनून ही है ..जिसे हो जाता है उसे कुछ और नजर नहीं आता ।’
विम्मी अपने आपको वश में नहीं रख पा रही ।।
विम्मी ः ‘मैं तुुुम्हें कैसे बताउं ..मैं तुमसे कितना प्यार करती हंू ?’
सिम्मी ः ‘मैं तुुुम्हें कैसे समझाउं ..?’
सिम्मी ः ऐसे असामाजिक फैसले कोई कैसे कर सकता है ?
सिम्मी विम्मी को देख रही है ।
सिम्मी ः ‘क्या मैंने कुछ गलत कह दिया ?’
सिम्मी ः ‘..सही नहीं कहा ।’
विम्मी सिम्मी से कभी नजरें मिला कभी नजरें चुरा रही है ।
सिम्मी ः ‘यह असामाजिक बात है ।’
विम्मी ः ‘हम जैसों का अपना समाज है । ..अपनी दुनिया है ।’
सिम्मी विम्मी को देखकर हतप्रभ है । बगीचे के एकांत में उनकी बात गंूजती रहती है जिसे वहां के समस्त फूल, पती वगैरह सुनते रहते हैं । ओट से मानो कोई कान लगाकर सुन रहा कोई झांक रहा है । लग रहा है जिस बात को छद्म तरीके से कहा जाना चाहिए वह इस प्रकार उन्मुक्त होकर कहा-सुना जा रहा है तो मानो प्रकृति के भी कान खड़े हो गए हैं ।
सिम्मी ः ‘मैं रूढ़िवादी नहीं हंू । ..मगर संस्कारवादी जरूर हंू । ..समाज और संस्कृति भी कोई चीज है ।’ मैं समाज के बने-बनाए मूल्यों से बाहर नहीं जा सकती ।’
‘मैं संस्कारवादी हंू रूढ़िवादी नहीं ..। ..मैं आधुनिकता के नाम पर समाज और कानून के मूल्यों के बाहर नहीं जा सकती ।
विम्मी ः ‘आज दुनिया में ऐसा हो रहा है ।’
सिम्मी ः ‘हमारे समाज में ऐसा नहीं हो रहा ।’
सिम्मी संतुलित सभ्य समाज की व्याख्या स्पष्ट रूप से करती है ...
सिम्मी ः ..कुछ लोग समाज की बनी-बनाई व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं, घटनाएं हो रही हैं ..मगर मैं समाज और कानून के दायरों से बाहर नहीं जा सकती ।
विम्मी ः ‘अपने दोस्त के लिए भी नहीं ..?’
सिम्मी ः ‘मगर फिर इस प्रकार का प्यार भी तो होना चाहिए मुझे ।’
मैं वैसी भावना कहां से लाउं ? ..इस तरह के जिस्मानी प्यार की भावना मैं कहां से लाउं ?’
मैं मानती हंू, तुम मेरी दोस्त हो ..मगर मेरे मन में इस तरह का कोई ख्याल ...।
‘आम जिंदगी में भी इंसान प्यार सोच-समझकर करता है ..फिर यह तो ..।
विम्मी ः प्यार पर कोई जोर नहीं ..।
सिम्मी ः इस बात का तो इतिहास गवाह है !
विम्मी अपने उपर वश खो रही है, बयां-अंदाजी में व्यग्रता बढ़ती है ।
विम्मी ः ‘क्या एक दोस्त किसी का प्यार नहीं बन सकता है ?’
सिम्मी को उसका वश खोना उसके होश खोने-सा प्रतीत हो रहा था ।
सिम्मी ः ‘काश ! अगर तुम एक लड़का होती तो मैं तुमसे शादी कर लेती ।’
विम्मी उसे निहार रही है । सिम्मी अपनी जगह से उठ खड़ा होती है । विम्मी कुछ हद तक और भी व्यग्र हो जाती है ।
विम्मी ः मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर हासिल करके रहंूगी ।
मैं तुुुम्हें पाने के लिए किसी भी हद से गुजर जाउंगी !
सिम्मी वहां से आगे की ओर चली जाती है । विम्मी देखती रहती है ।
प्रद्युम्ना ने जब सिम्मी को कमरे के दरवाजे पर देखा तो उसने देखा वह खड़ी तो है मगर कुछ कह नहीं रही, शायद कुछ कहना चाह रही है मगर बोल नहीं पा रही । शायद या यकीनन असमंजस में है ।
विम्मी ः ‘मे आइ कम इन ?’
विम्मी अपने सामने प्रद्युम्ना को देख किसी तरह बोल पाती है । प्रद्युम्ना की नजर सिम्मी के हिचकिचाए हाव-भाव पर है । इस हिचकिचाहट में कुछ हद तक उध्ेाड़बुन का भी मिश्रण है । प्रद्युम्ना की नजरें भांप जाती हैं ।
प्रद्युम्ना ः ‘क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकती हंू !’
सिम्मी अपने आपको सहज करने की कोशिश करती है ।
विम्मी ः ‘अगर आप चाहें तो ...।’
प्रद्युम्ना को अपने घर के अंदर आने का इशारा करता है । दोनो आराम से बैठते हैं । प्रद्युम्ना नौकर को इशारा करती है, नौकर पानी लाकर देता है । विम्मी इशारे से अपने ठीक होने का हाथ से इशारा करता है । नौकर पानी टेबल पर रख चला जाता है । विम्मी की नजर नौकर के जाने के बाद पानी के ग्लास से हो प्रद्युम्ना पर टिक जाती है । प्रद्युम्ना की नजरें उसपर हैं, मानो विम्मी को रीड कर रही हैं । विम्मी बात आरंभ करती है, प्रद्युम्ना ध्यान से सुनती है । प्रद्युम्ना विम्मी की बात पूरी होने पर कुछ देर चुप रहती है ।
प्रद्युम्ना ः ‘इस जिंदगी में मैंने कई तरह के केस देखे हैं । यह अपनी तरह का पहला केस है ।’
प्रद्युम्ना काफी स्थिरता और गंभीरता से अपना फैसला सुनाती है ।
प्रद्युम्ना ः ‘..मैं तुुुम्हारी मदद करूंगी ।’
विम्मी ः ‘मैं चाहंूगी कि आपके हमारे बीच की यह बात सिर्फ आपके मेरे बीच रहे ।’
प्रद्युम्ना चेहरे के भाव से उसे निश्चिंत रहने का पूर्ण आश्वासन देती है । विम्मी के चेहरे से स्पष्ट है कि वह आश्वस्त हो चुकी है ।
कई महीनों बाद
सिम्मी एक खुले कमरे में अकेला बैठी है । सिम्मी बाहर से झांकते बिन्नी को देखती है । सिम्मी उसे सवालिया निगाहों से देखती है ।
सिम्मी ः ‘आप ?’
..‘आपका नाम ..?’
बिन्नी ः ‘बिन्नी ..।’
सिम्मी उसे आश्चर्य से देेखती है ।
बिन्नी ः ‘विम्मी के बारे में आप कुछ बता सकती हैं ..?’
सिम्मी ः ‘आप कौन हैं ? ..और उसके बारे में क्यंु पूछ रहे हैं ?’
बिन्नी ः ‘मैं उसका भाई ..बिन्नी ।’
सिम्मी ः ‘इस वक्त वह कहां है ?’
बिन्नी ः ‘अगर इस बात का ही पता होता तो वह खुद यहां न आ गई होती ..मुझे यहां आने की क्या जरूरत थी ?’ - स्पष्ट रूप से -
..‘इसी बात को जानने तो मैं यहां आया हंू ।’
बिन्नी तनिक स्थिरता भरी शालीनता से जवाब देता है । सिम्मी उसे एकटक देखती है । अंदर ही अंदर एक गहरी सांस लेती उपर से सामान्य रहते हुए भी अंदर से भी स्वयं को सामान्य रखने की कोशिश करते बिन्नी को इशारे से अंदर आने का आमंत्रण देती है ।
सिम्मी ः ‘कुछ बातें ऐसी होती हैें जो घर के दरवाजे के अंदर ही की जा सकती हैं ।’
बिन्नी घर के अंदर आ जाता है । सिम्मी उसे बैठने का इशारा करती है ।
सिम्मी ः ‘..मैं कैसे यकीन कर लंू कि तुम उसके फैमिली पर्सन ..भाई ही हो ।’
बिन्नी ः ‘मैं उसका बवायफेंड, फ्रेंड या कोई और होने का हवाला देकर भी बात कर सकता था । ...बात तो तब भी कर सकता था ..मगर मैंने ऐसा नहीं किया ।’
सिम्मी ः‘..तब शायद तुमहें उसके बारे में पूरी जानकारी लेने में समस्या होती ..।’
बिन्नी ः‘..तो अपनी संतुष्टि के लिए उसकी और उसके परिवार की जो भी निजी बातें पूछनी हैं ..पूछो ..।’
मोंटाज:् सिम्मी उसकी ओर ध्यान से देखती है । सिम्मी कुछ देर के लिए चुप हो उससे कुछ प्रश्न पूछती है , बिन्नी उसका जवाब देता है ।
सिम्मी ः ‘तुुम्हारी बातों से यकीन हो गया । तुम उसके भाई ही हो ।’
सिम्मी सिम्मी कुछ हद तक रिलैक्स हो कंफर्ट पोजिशन में बात करते हैं ।
सिम्मी सिम्मी में वार्ता होती है । आज की खिड़की से अतीत के झरोखे से होकर गुजरती है मानो वह ‘घड़ी’ आ गई जिसका इंतजार था ।
सिम्मी ः ‘अच्छा हुआ तुम आ गए ! यह बात इससे पहले मैं किसी से कह नहीं सकती थी ..अब मैं यह बात किसी से कह सकती हंू ।’
सिम्मी कुछ हद तक अतीत को याद करते अंदाज में ...
सिन्नी ः ..कौन विश्वास करता इस सच पर ? इस सच का सभी अपना-अपना मतलब निकालते । - सीधी तौर पर देखते हुए -
बिन्नी ! यह एक ऐसी सच्चाई है जो मैं सबों से बयां भी नहीं कर सकती थी ..
मोंटाज ् सिम्मी उसे सारा वृतांत सुनाती सारे घटनाक्रमों के बारे में बताती है ।
सिम्मी ः ‘मैं अंदर ही अंदर घुट रही थी । ..मेरे अंदर अपराध-बोध समाया था । .. हांलांकि मैंने उसके साथ कुछ भी गलत नहीं किया था मगर ..मुझे अपने दोस्त के साथ कुछ और भी अच्छी तरह पेश आना चाहिए था, ..मतलब मुझे उसे संभालना चाहिए था ..। मगर मैं भी क्या कर सकती थी ..। उसने बात ही ऐसी कही थी ..कि उस समय मैं खुद को ही संभालने में वयस्त हो गई थी । ..इस बीच वह इमोशनल बैकफुट पर चली गई थी ।’
बिन्नी उसके बोलने के अंदाज और हाव-भाव को ध्यान से देख रहा है ।
सिम्मी ः ..उस दिन के बाद से वह मुझे दिखी नहीं । शायद उसे लगा होगा कि .. प्यार प्रस्ताव के बाद हमारी दोस्ती ..पर असर पड़ जाएगा ।
पागल ! ..तू तो मेरी दोस्त है और हमेशा से है ..और हमेशा रहेगी भी ..।’
सिम्मी विम्मी को याद करते हुए चुप हो जाती है ।
बिन्नी ः क्या विम्मी से तुुुुम्हारी दोस्ती इतनी अधिक थी ..इतना प्यार इतना अपनापन ।
सिम्मी ः ‘प्यार का तो नाम मत लो ..इसी ने तो ..। ..वह मेरी सबसे प्यारी दोस्त थी । ..आज भी है ।’
सिम्मी फिर से उन लम्हों की यादों में खो-सा जाती है ।
सिम्मी ः ‘उस दिन के बाद से वह न जाने कहां चली गई लापता हो गई
..हांलाकि उसके बारे में किसी भी प्रकार की अनहोनी सूचना नहीं मिली .. फिर भी लोगो को लगा कि उसके और मेरे बीच कुछ तो हुआ है ..लोगो की शक की सुई बेवजह मेरे उपर भी घूम रही थी ..जबकि ऐसा कुछ नहीं था ।’ ‘मैंने खुद उसे खोजने की ढंूढने की कोशिश की ..मगर कहीं नहीं मिली ..। .. आज इतने साल बाद तुम खोजने आए तो मुझे लगा तुम कुछ पूछने या बताने आए होगे ..। अगर ऐसा था तो पहले क्यंु नहीं आए ?’
बिन्नी ः तुुम्हारा और उसके कुछ दोस्तों का पता उसकी डायरी में मिला । दोस्तो से मालूम हुआ उसकी फाइनल मुलाकात तुमसे ही हुई थी ।
सिम्मी बिन्नी की आंखों में झांकती है ।
सिम्मी ः ‘तुम मुझे क्रॉस इक्जामिन कर रहे हो ।’
बिन्नी ः ‘सच जानना मेरा अधिकार है ।’
सिम्मी ः ‘हां ..है !
सिम्मी सरलता भरी दृढ़ता से फैसले भरे अंदाज में कहती है ।
बिन्नी ः ‘मैं यकीन कर सकता हंू ..।’
सिम्मी ः शक होने के बावजूद !
बिन्नी ः ‘मैं सिर्फ सच जानने आया हंू ।’
..कुछ सच जो मुझे मालूम है और कुछ सच जो जमाने को मालूम है ..दोनो मिलाकर पूरा सच मिल जाएगा ।’
सिम्मी ः तुम अपने सारे सवालों का जवाब जानने आए हो ।’
बिन्नी ः ‘मैं सच जानने आया हंू !’
मोंटाज् : बिन्नी सारी वार्ता हो चुकने के वाद कुछ देर की शांति के बाद स्थिरता भरे अंदाज में सिम्मी की ओर सलीके से देखते हुए ..
बिन्नी ः तुमने अपनी सारी कहानी सुनाई तब ..तुमने उससे कहा था, अगर तुुुुम्हारे पास भाई होता तो उससे तुम अपनी शादी कर देते ..।
बिन्नी तनिक ठहरकर उसकी आंखों में देखते हुए एकटक प्रश्न करता है ।
बिन्नी ः ..वह तो तुुुम्हारे भाई से शादी नहीं कर सका क्योंकि तुुुम्हारे पास भाई था ही नहीं ..लेकिन क्या तुम उसके भाई से शादी कर सकती हो ?
बिन्नी की बात पर सिम्मी मूक अवाक्-सा ठहर-सा जाती है ।
बिन्नी ः उसकी आत्मा की शांति के लिए इतना तो कर ही सकती हो ।
सिम्मी ः ‘क्या तुम वाकई उसकी आत्मा की शांति के लिए ऐसा करना चाहते हो ?’
बिन्नी की बातें उसकी कानों में जा तो रही थीं मगर सुन दिमाग रहा था ।
सिम्मी ः क्या जिस दोस्त के कारण उसके साथ ऐसा हुआ ..उसे तुम अपना सकोगे ?
सिम्मी उसकी बात का अपना एक अलग निष्कर्ष निकालते हुए ..
सिम्मी ः अगर तुम्हें लगता है कि इन सबकी जिम्मेवार मैं हंू, अगर तुम बदला लेना चाहते हो तो तुम मुझे अभी मार डालो ..।’
इस तरह का खेल खेलने की कोई जरूरत नहीं है ...।
बिन्नी ः ..तुम कातिल नहीं हो !
सिम्मी उसके संदेह का निवारण करते हुए उसे आश्वस्त करता है ।
बिन्नी ः ‘तुम गलत सोच रही हो ।’
सिम्मी ः ‘मैं सही सोच रही हंू ।’
सिम्मी को अपने तय किए निष्कर्ष पर मानो यकीन है ,, संवाद करती है ।
सिम्मी ः आखिर जिस इंसान के चलते किसी की भाई की जिंदगी बर्बाद हो जाए और उसका भाई उसी इंसान से शादी करना चाहे ..‘कोई ऐसा कैसे कर सकता है ?
बिन्नी उसके मन में उमड़ रहे उथ-पुथल को समझ जाता है ।
बिन्नी ः उसकी आत्मा की शांति के लिए इतना तो कर ही सकती हो ।
सिम्मी ः अपनी आत्मा की शांति के लिए भी इतना तो कर ही सकती हंू ।
..शायद हम दोनो की आत्मा की शांति इसी में है ..।
सिम्मी सहमतिसूचक मुद्रा में ... । बिन्नी सीधा प्रणय-प्रस्ताव देता है ।
बिन्नी ः क्या मैं तुुुम्हें पसंद हंू ?
सिम्मी ः ‘तुुुम्हारे रूप में मैंने अपने दोस्त को फिर से पा लिया है ।’
सिम्मी इस बार मना नहीं कर पाती । बिन्नी-सिम्मी शादी कर लेते हैं ।
ब्न्ज् ज्व् ..
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स्व्ब्।ज्प्व्छ रू टप्डडल्ध्ठप्छछप्श् ै भ्व्न्ैम् म्थ्थ्म्ब्ज् रू क्।ल्
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कुछ दिनों के बाद
बिन्नी-सिम्मी शादी-सुदा हैं । सिम्मी घर की कुछ चीजें तलाश रही है, उसे एक डॉक्टरी रिपोर्ट हाथ लगता है ! रिपोर्ट डॉक्टर प्रद्युम्ना के मरीज
विम्मी के नाम है - रिपोर्ट से मालूम होता है कि विम्मी ने ही सेक्स चेंज कर बिन्नी का रूप लिया है । विम्मी ने उसे पाने के लिए सेक्स चेंज कराया ! सिम्मी का दिमाग और दिल दोनो एकाएक श्ूान्य में चले गए, दिमाग हवा मे ं घूमने लगा, दिल धक्क्-सा कर गया । सिम्मी अपने आपको संभाल नहीं पा रही । तो वह जिस लड़के को अपना पति बनाकर लाई जिसके साथ पत्नी रूप में रह रही थी वह पहले लड़की थी अब लड़का ..वह विम्मी का भाई नहीं स्वयं विम्मी थी जो बिन्नी बन आई थी । जबतक सिम्मी खुद को संभालती सामने विम्मी-बिन्नी खड़ा-खड़ी था-थी !
विम्मी बनाम बिन्नी और सिम्मी काफी देर तक चुप रहते हैं । कमरे में एक गंूजनेवाली खामोशी छाई है ! उन दोनो के मन में एक खामोशी भरा शोर है। सिम्मी ः मुझे पाने के लिए तुमने सेक्स चेंज से लेकर प्लास्टिक सर्जरी तक का सहारा लिया ..- मुझे पाने के लिए तुम चेहरा बदलकर आई ..?
विम्मी-बिन्नी उसकी ओर देख रही है ।
सिम्मी ः मुझसे यह सच तुम कह सकती थी । - बिफरते मगर नियंत्रित स्वर में -
तुम सच कह सकती थी !
सिम्मी स्थिति को स्वीकार नहीं कर पा रही कि वास्तव में ऐसा हुआ है ।
अप्रत्याशित घटना से अंदर तक हिली हुई है ।
सिम्मी ः तुमने सच छुपाया ..क्या यह धोखा नहीं है ? - तीव्रता से सीधे अंदाज में -
क्या तुम प्यार और जंग में सब जायज है के सिधांत पर चल रही थी ?
विम्मी ः मैंने कोई धोखा नहीं किया ..और न ही ऐसे किसी सिधांत पर चल रही थी ।
सिम्मी के स्वर में अतीत में हुई वार्ता का क्रमबध पुट झलकता है ।
सिम्मी ः मैं संस्कारवादी हंू ..तुम जानती थी ।
विम्मी-बिन्नी ः तुमने ही कहा था ..- मैं संस्कारवादी हंू रूढ़िवादी नहीं ..मगर मैं आधुनिकता के नाम पर समाज और कानून के मूल्यों के बाहर नहंीं जा सकती ।
विम्मी-बिन्नी ः पहली बार मैं तुुुम्हारी दोस्ती देखकर समझी थी मैं तुुुम्हें समझा लंूगी ..मगर तुम अपने नियम पर अड़ी थे और मैं अपने ..।
इंसानी दिमाग बड़ा अजीब होता है । किसी का मन, दिल, दिमाग कब किस प्रकार कैसे सोचने लगे, कौन जानता है ?
इसलिए मैं रिस्क नहीं लेना चाहती थी, इसे तुम मेरी सावधानी कह सकते हो ।
मुझे डर था’ अगर मैं सच बताउंगी तो कहीं तुम नाराज न हो जाओ फिर से .. मैं बस तुुम्हें खोना नहीं चाहता थी । मैं तुुम्हें खोना नहीं चाहती था ..मैं तुुुम्हें किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी !
विम्मी-बिन्नी के हाथों की मुट्ठियां कुछ हद तक भींच जाती हैं । बिन्नी अग्नि-परीक्षा से गुजरकर यहां तक कैसे पार किया कहता है ...
विम्मी-बिन्नी ः उस दिन तुुम्हारे-मेरे बीच कई बातें हुई थीं ..
उनमे एक बात यह थी कि ..जब मैंने अपनी प्रेम कहानी तुुुुुम्हें सुनाई तब तुमने कहा था, अगर तुुुुम्हारा भाई होता तो उससे तुम मेरी शादी कर देती ..।
उस दिन तुमने एक और बात कही थी ..और वह यह कि अगर तुम लड़का होती तो मैं तुमसे शादी कर लेती ।
सिम्मी ः ..इसलिए पहली बात को तुमने प्रणय का और दूसरी बात को विवाह का
आधार बनाया ।
विम्मी-बिन्नी ः मैंनेे तुुम्हारी हर बात मानी ।
तुमने कहा था ..मैं अपने समाज के बने-बनाए मूल्यों से बाहर नहीं जा सकती ..इसलिए मै तुुुम्हारे समाज के मूल्यों के अंदर आ गई ।
मैंने वही किया जो तुम चाहती थी ..वही किया जो समाज और कानून कहता है ..किसी के नियम किसी के उसूल नहीं तोड़े । ..
तुम मेरी ओर नहीं आ सकती थी ..मगर ..मैं तो तुुुुुम्हारी ओर आ सकती थी ।
विम्मी बनाम बिन्नी के शबद सिम्मी के कानों में गंूज रहे हैं । विम्मी-बिन्नी सिम्मी की ओर देखकर कहता है ।
विम्मी-बिन्नी ः मैंने कहा था न’ मैं तुुुुुम्हें पाने के लिए किसी भी हद से गुजर जाउंगी !
विम्मी-बिन्नी की प्यार भरी नजरें सिम्मी को निहार रही हैं ।
विम्मी-बिन्नी ः कई बार तुमसे सच कहने की हिम्मत की ..मगर हिम्मत नहीं हुई । इसलिए ..डॉक्टरी रिपोर्ट यहां रख दिया । वरना इतना बड़ा राज मैं यहां रख देती ...?
..जिस राज से मेरी जिंदगी मेरा प्यार सबकुछ खतरे में पड़ सकता था ..जिस प्यार के लिए मैंने सारी हदें पार कर दीं ..उस प्यार को दांव पर लगाकर ..
..सच बताने का ही तो यह भी एक तरीका है ।
‘वह जो मैं बोलकर नहीं कह पाई करकर बोल दिया ।’
सिम्मी ः एक सच्चा दोस्त एक सच्चा प्यार ही ऐसा कर सकता है ।
विम्मी-बिन्नी ः मेरे दोस्त मेरे प्यार ।
सिम्मी ः मेरी राधा मेरे किशन ।
विम्मी-बिन्नी की प्यार भरी नजरें सिम्मी को निहार रही हैं ।
विम्मी ः ..मैंने सही किया न ।
सिम्मी बिन्नी की ओर देख रही है, वह विम्मी भी है बिन्नी भी । उसे उसकी आंखों में असीम प्यार दीख रहा है ।
सिम्मी ः ‘हां !’
विम्मी-बिन्नी ः मुझे डर था’ अगर मैं सच बताउंगी तो कहीं तुम फिर से नाराज न हो जाओ ।
सिम्मी ः ‘डर प्यार का ही एक रूप है ।’
विम्मी-बिन्नी ः तुमने सही कहा । मुझे भी पता नहीं ..मेरी प्रतिक्रिया क्या होती । ..पिछली बार भी तो तुमने कहा था ..मैंने क्या किया ..मैंने तुुुुुम्हें क्या कहा वह अपनी जगह सही या गलत हो सकता है ..मगर मैंने जो तुुुम्हारे साथ किया वह पूरी तरह सही नहीं था ..मैं तुमसे बेहतर तरीके से पेश आ सकती थी ।’
‘तुमने जो भी किया अच्छा किया । क्योंकि तुमने जो भी किया ..समाज और कानून के दायरे में रहकर ..किया ।
सिम्मी ः तुम दोस्त और प्यार दोनो रूप में मुझे स्वीकार हो । ..मगर मैं तुुुम्हें विम्मी के रूप में दोस्त और बिन्नी के रूप में प्यार के रूप में स्वीकार करती हंू ।
सिम्मी विम्मी के हाथो पर अपने हाथ रखती विम्मी-बिन्नी के होठो को होठो से चूम लेती है ।
सिम्मी ः ‘मैं तुुुम्हें विम्मी नहीं बिन्नी के रूप में स्वीकार करती हंू !’
इस कहानी को वाक्या के रूप में देखेें । एक घटना के रूप में । इसके सही-गलत होने की मिमांषा नहीं की जा सकती । सबके अपने तर्क हैं । इस कहानी का कोई पक्ष-विपक्ष नहीं है । मगर हां प्यार के बारे में एक सत्य जरूर है, प्यार वर्जनाएं तोड़ देता है ..हर काल में ..जिस समय जिस काल में इसपर जो भी वर्जनाएं होती हैं ..समय-समय पर यह उसे पार कर जात है !..समय के अनुसार इसके नए-नए उदाहरण आते रहते हैं ..उसके बाद इसकी कालातीत मिमांषा होती रहती है ..इश्क पर जोर नहीं !
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