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ईश्वर ने विधाता ने विविधता में एकता का जो एकीकरण किया है वह परम स्थाई है उसे कोई ख़त्म नहीं कर सकता ।
सभी हम सभी एकसूत्र में जुड़े हैँ और कहीं से भी अलग नहीं हैँ ।
भले ही हम कितनी परिभाषाएं बना लें गढ़ लें ।
ईश्वरीय सत्य के गढ़ के सामने अन्य कोई गढ़ कहां टिकनेवाले हैँ । उस सत्य के सामने अन्य सत्य कुछ भी नहीं !
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