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इंसान डेंजरजोन में खड़ा है फिर भी खुद को विजेता ही समझ रहा है !
इंसान स्वयं को सबसे चतुर, होशियार, तीसमार खां समझता है
उसको लगता है
उसके ऐसा काबिल' गुणी वगैरह वगैरह
पुरी पृथ्वी पर कहीं नहीं है ।
इस कारण उसे सबकुछ करने का बल्कि कुछ भी करने का अधिकार मिल गया है ।
ऐसा करना उसने
अधिकार समझ लिया है ।
सच कहा जाए तो बपौती समझ लिया है !
इंसान को पता नहीं है'
बल्कि'
सब पता है,
कि
ईश्वर और प्रकृति के नियमों के आगे किसी की नहीं चलती;
मगर
किसी की नहीं सुन रहा ।
इंसान
स्वघोषित सफलता के नशे में चूर और मगरूर है !
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