Monday, 2 May 2022

Sunday, 1 May 2022

SUNDARI


 Published In A Known Magzine Years Ago

REAL CREDITS

 *REAL CREDITS is Column about Similarity by Co-Incident, Intentionaly, Intentionaly ..All About*

EXAMPLE 1

HAWA HAWA song sung by pakistaanee singer hasan jahangir was originaly sung by A Iranian Singer kouros yougmai & it was A Iranian Song Havar Havar*

https://m.youtube.com/watch?v=-fNW8OrEsn0Havar havar

https://www.youtube.com/watch?v=-fNW8OrEsn0&pp=ygUcaGF2YXIgaGF2YXIga291cm9zaCB5YWdobWFlaQ%3D%3D


https://m.youtube.com/watch?v=psYgmvgTJuwHawa Hawa

https://www.youtube.com/watch?v=psYgmvgTJuw&pp=ygUOaGF3YSBoYXdhIHNvbmc%3D


ONE MORE

https://www.youtube.com/watch?v=NZozbrykYKI&list=RD-fNW8OrEsn0&index=2&pp=8AUB


It column is not compailing, blaming anyone only talking about similar truths happened one same or more other time ..


What is diffrence between inspiration, adoption, thiefing ...?

Inspiration means with transformation effect something in other someone

Adoption means a lumsum copy version or maximum level of something in someone

Stealing or theifing is totally diffrent. It is a copy version of something in someone on any level without first ones permission is called theifing or stealing


Inspiration is good

Adoption is good

Stealing & theifing is not good

It is totaly clear*


In All Examples,

What is inspiration, adoption, stealing or theifing or else ..is to be deciding factor,

At Start

It should be left on audience and readers and public*

Friday, 29 April 2022

CHESS 1 BISAAT 2

CHESS 1 BISAAT 

CHESS 1 BISAAT 1

CHESS 1 BISAAT 2

COMING SOON*

FLAT : A SILENT STORY 3


FLAT : A SILENT STORY 3



TO BE CONTINUED*


एक बार पुनः आत्मा-आह्नान की क्रिया आरंभ हुई और आशा के अनुरूप इस बार कोई मश्क्कत तक न करनी पड़ी । आत्मा वहां पहले से ही मौजूद थी । 
आपने मेरा कार्य कर दिया ?
आपका बदला पूरा हुआ श्रीमान् ।
एक आत्मा की अपनी कुछ सीमाएं हैं अन्यथा यह हत्या मैं करता । आपका यह एहसान मैं जिंदगी भर ..ओह सॉरी, अब जिंदगी है ही कहां कि ..। - आत्मा ने पशोपेश में पड़ते हुए उत्तर रोक दिया । अब बारी जीन के कार्य की थी - एहसान अलग होता है, ये सौदा था । इसके लिए श्ुाक्रिया अदा करने की कोई जरूरत नहीं । अच्छा हो, यदि आप मेरे नेक कार्य को अंजाम तक पहंुचा दें । 
ओह, मैं तो अपनी खुशी मंे आपका कार्य भूल ही गया था । आप बेपिफक्र रहिए । अपने वादे पर मैं अब भी कायम हूं ।
अब आप वादा पूरा करंे ।
एक शर्त है ।
अब भी शर्त ..। - एकबारगी जीन को महसूस हुआ कि उसे ब्लैकमेल किया जानेवाला है, मगर अगले ही क्षण आदि ने उसका तनाव दूर कर दिया - अर्ज ही समझिए ..।
आप हुक्म कर सकते हैं ।
आपके खजाने का एक हिस्सा मेरे उपर खर्च करना होगा ।
आपको खजाने से क्या काम? आपकी तो मृत्यु हो चुकी है । - एक बार पुनः जीन को विस्मित होना पड़ा ।
आपने मेरा मतलब नहीं समझा । अभी तक मेरा दाह-संस्कार नहीं हुआ है । आप यह विध्वित करा दिजीएगा तो मैं सुखपूर्वक प्रेतयोनि का त्याग कर सकूंगा । अबतक मेरी आत्मा जो भटक रही थी, उसे शांति तो मिली मगर इसे मुक्ति की भी तलाश है ।
अरे, मैं तो कुछ और ही समझ बैठा था । अगर ऐसा करने से आपको सुख प्राप्त होगा तो निःसंदेह मैं ये करने को तैयार हंू । आप निश्चित रहें ।
और जीन के उत्तर पर तुरंत प्रत्युतर मिला । 
अब आप खजाने का पता ले ही लिजीए, क्योंकि खुशी के उद्देश्य में मैं भले ही इतनी देर टिक गया मगर सच तो यह है कि मुझे बहुत कष्ट हो रहा है ।
आप अपनी बात जल्द कहिए ।
आपको भी जल्दी है और मुझे भी । अच्छा ही है - दोनो चलें । - आत्मा निर्णायक मोड़ पर आ गई । अब सिपर्फ पता लिखा जाना ही शेष था । 
इसी बीच अचानक खुले द्वार को खोले जाने के दरम्यान हुई आवाज ने इनकी तन्द्रा भंग कर दी । उस शख्स को जिसे जीन ने मृत मान छोड़ दिया था, बाएं हाथ से पेट तथा दाहिने हाथ में खंजर पकड़े द्वार पर खड़ा था । आन बिना कोई अवसर दिए आसन पर बैठे जीन की ओर लपकता हुआ दौड़ा । अब आसन पर बैठा रहना खतरे से खाली न था । आसन छोड़ उठते-उठते जीन को आन ने कॉलर के पास पकड़ते हुए ध्र दबोचा । उस शख्स की मृत्यु समीप थी और यह जानते हुए कि यह सबसे अहम् मोड़ है, पकड़ उससे भी कहीं ज्यादा दृढ़ । एकबारगी भीड़ चुके जीन को बौखलाए आन के इरादों ने ही इतना डरा दिया था कि जितना वह उसे उसके सही होने सलामत में निर्भय हेकर लड़ा, वहीं अब उस शख्स से जो कि अब-तब मृत्यु के समीप था से भिड़ते हुए डर रहा था । आखिर यह आन का जुनून ही था जिसने उसे डरा दिया । अनहोनी के बीच में क्या होना था , यह अगले पल में छुपा था । और अंततः उठा -पटक के बीच आन की शक्ति ही जबाव दे गई । उसने अंतिम हाथ उसके मंुह पर मारा जिससे जीन नकाब उतरता चला गया और आन जमीन पर गिरता । 
अरे, जैस्मिन तुम - और टाइपराइटर पर आदि ने उसे पहचानते हुए उसके अबतक के नकाबपोश होने के रहस्य को पकड़ लिया । आन ने गिरते वक्त जब उसका नकाब उतरता चेहरा देखा तो फटी आंखों से देखता जमीन पर गिरा और आंखें मंूद लीं ।
अच्छा, तो तुम जिंदा हो जैस्मिन ! आज मानता हंू कि तुमसे ज्यादा मक्कार इस दुनिया में कोई और नहीं । एक बार पिफर तुमने मुझे झूठ में फंसा ही लिया । एक टाइपराइटर ही उनके बीच बातचीत का माध्यम था । अबतक जैस्मिन भी अपने कुटिल अंदाज में आ चुकी थी । उसने लबादा उतर दिया और लटंे बिखरा लीं । उसकी तंत्र सुरक्षा-चक्र के मध्य स्थित होने के कारण उसे डर की कोई बात भी न थी । अतः आन की ओर एक जहरीली, उपहासित व्यंग्य-वाण पफंेकते हुए उसने पुनः पुर्ववत आसन ग्रहण कर लिया । आदि जारी था - अब भी तुम उतनी ही सुंदर और जवान लगती हो ..और उतनी ही कातिल भी । और कितने कत्ल करोगी जहरीली नागिन ..और अब चुडै़ल, डायन भी ।
बकवास बंद भी करो आदि । आज दूसरी बार खजाना पाने का मेरा प्रयास असफल हो गया । आन की कमान तो मैंने खींच ली, अब तुम्हारी बाकि है । - अब टाइप पर जैस्मिन के हाथ पडे़ । 
अरे मूर्ख औरत, मेरी कमान तुम्हे जितनी खींचनी थी सो तुमने खींच ली । आज पफैसले की घड़ी है । 
अब यह अलग बात है कि आवरण के अंदर रहने पर तंत्र-विद्या के बल पर मैंने, खुद को तुम्हारे द्वारा पहचाने जाने से बचा लिया था । इसपर भी दुर्भाग्य ने मेरे साथ करे-कराए पर पानी पफेरते हुए मुझको निवारण कर दिया । अगर ऐसा न होता तो तंत्र-शक्ति के बल पर आवरण के अंदर छुपे चेहरे को तुम न पकड़ पाते ।
आदि ! अक्ल के कम तो तुम सदा से रहे हो । आज भी यदि तुमने अक्ल से काम लिया होता तो कम-से-कम पहला प्रश्न ये जरूर करते कि तुमने अपना चेहरा मुझसे छुपा क्यों रखा है ? और बातें छोड़ो । इस वक्त भी तुमने जिस तरह कम अक्ल का परिचय देते हुए मेरी सारी कहानी पर भरोसा कर लिया, और उसे जांचने की जरूरत तक न समझी । वह मेरी संभावित सफलता का जरूरत तक न समझी । 
अगर मैं कहंू कि मैंने तुम्हारी कहानी के अनुसार जांच की थी तो ..।
और यदि मैं ये कहूं कि वह जांच तुमने मेरे घर में रखे मेरे पफोटो पर पड़े एक पुराने श्र(ाजंलि माले से की होगी तो मैं दिखी तो हूंगी नहीं इसलिए तुमने मुझे मरा मान लिया होगा । 
उस मौत की नकली घटना को अब सच्ची ही मान लो । अब वह माला वहां टंगी ही रहेगी ।
अरे, बेअक्ल । इतना तो दिमाग लगाया होता कि मैंने तुमसे संपर्क स्थापित करने में सात वर्ष क्यों लगा दिए ? इन सात वर्षों में जादू-टोनों में विश्वास करनेवाली तुम्हारी जैस्मिन ने न सिर्फ काला जादू सीखा, वरन् तंत्र-मंत्र के कई क्षेत्रों में सि(स्त भी हो गई । और वह सिर्फ इसलिए कि तुम्हारे द्वारा खजाने को पा सकूं । इस खजाने का सही स्थान सिपर्फ तुम्ही जानते हो और शायद विधता ने भी तुम्हे ही चुना है बताने के लिए । इन जादू-टोनों की काई सीमा नहीं, मगर मैंने जो हासिल किया हे उसकी एक सीमा है । इसी सीमा के तहत मैं अन्य आत्माओं से यह करवानें में समर्थ नहीं हंू और जाने कबतक समर्थ हांेउफ भी । इतने दिनो के इंतजार के बाद मेरे सब्र का बांध् टूट गया है, और इसी कारण मैंने यह खेल रचा । अब बहुत हुआ सब्र का इम्तहान और बदकिस्मती का खेल । 

और यही हुआ होगा क्योंकि जब तुम उसके कत्ल के इरादे से घर के पास पहंुची तबतक वह यहां टाइप के सारे कागजों को पढ़कर यथावत् रख चुका था । इसे मैं इसलिए भी कह सकता हंू क्योंकि जब मैं दोबारा यहां आया तो सबकुछ पहले-सा व्यवस्थित नहीं लगा ।
इसका मतलब वो शुरू से ही मेरे पीछे था ।
और यदि मैं गलत न हूं तो उसके हाथों कत्ल की बारी तुम्हारी थी, जो अब मेरे हाथों होगी ।
अपने ख्वाब को गुलदस्ते में सजाओ । अब बारी यु( की है ।
आन तो मुझसे भी ज्यादा बेवकूफ निकला । अगर तुम्हारा जान लिया तो रिस्क क्यंू लिया? आदि कुछ क्षणों के लिए क्षण भर पहले के तारतम्य में उलझ गया । 
अरे बेवकूपफ, तुम्हारी मौत के समय के बाद मिली असपफलता ने हमारे विश्वास को कभी जमने ही नहीं दिया । अब ये कह सकते हे कि पहले तुम्हारे साथ समूल पिफर तुम्हारे बिना निर्मूज शंका के मध्य  झुलते उसने आज इन पप्पों पर सत्य देख लिया होगा । - अपनी किस्मत को कोसती जैस्मिन ने आगे की ओर रूख किया- ओह ..एक छोटी-सी भूल या बड़ी-सी बदकिस्मती क्या कहंू ने सारा खेल चौपट करके रख दिया । आखिर मैं उसे बेहोश कर यहां क्यंू न आई ।
आन के शरीर से लहू फर्श पर पसर रहा था । आदि ने क्रम जारी रखा - आज की रात यदि खत्म हो गई तो पिफर तुम कब्जे में नहीं आनेवाली । इस दृष्टिकोण से यह रात मेरे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है । 
..और मैं कब्जे में आनेवाली नहीं । 
मैंने एक पाप किया था, उसकी सजा मुझे मिल गई । एक विवाहित स्त्राी से आकर्षण और किसी का घर तोड़ना, उसकी सबसे अच्छी सजा शायद यही थी । अलबत्ता मुझे मारनेवाला भी मारा गया, मगर हम दोनो को तबाह करनवाली सबसे निकृष्ट पात्र जैस्मिन तुम आज जिंदा नहीं लौट सकती ।
आज पाप-पुण्य नहीं पफैसले की घड़ी है । अवसर तलाशने की जगह मेरा कार्य आसान कर दो तो शायद तुम्हारी आत्मा को कष्ट न झेलना पड़े ।
अबतक जैस्मिन खुद को तंत्र-वार के लिए तैयार कर चुकी थी । 
इतने दिन तक ही आत्मा के कष्ट के दिन थे । ..आज तो इसके निवारण का दिन है ।
एक खामोश मगर प्राणघातक यु( टाइपराइटर के माध्यम से चल रहा था । एक अनूठा, अलग और अचंभित कर देनेवाला वह यु( जिसमे खामोशी श्क्ति थी, आत्म-शक्ति अस्त्र और टाइपराइटर उनके शब्द । अगर उनके बीच टाइपराइटर द्वारा बात की क्रिया-प्रतिक्रिया चल रही थी तो सिपर्फ इस कारण कि दोनो अपने-अपने अवसर की तलाश कर रहे थे । एक वैसा अवसर जिसका पूर्ण उपयोग कर एकबारगी ही इस किस्से को खत्म कर देना था, क्योंकि इसे खींचने का दोनो के पास कोई कारण न रह गया था । आदि को मालूूम था कि आज ये बच निकली तो पिफर उसके लिए कभी कोई अवसर नहीं है । इसके साथ ही उसे यह भी मालूम था कि यदि उसने तंत्रा-मंत्रा आरंभ कर दिया तो भले ही वह उसे हरा न पाए, मगर इतना भी लगभग तय है कि इस यु( को वह सुबह तक खींच लेगी । और रात बीतने के साथ ही हार-जीत भले किसी की न हो, मगर उसे भागने का अवसर अवश्य मिल जाएगा । इसलिए जो भी अवसर था तंत्रा-वार से पहले, और इसे उसने तलाश लिया था । 
अगर सुबह हो गई तो तुम निकलोगी, और मेरे पास जो भी अवसर है तुम्हारे तंत्र-वार से पहले । अगर यह वार तुमने कर दिया तो यु( को सुबह तक तो खींच ही लोगी, ..और सुबह यानि तुम्हारा भागना ..। ओह जैस्मिन ..कितनी भाग्यशाली हो तुम, या पिफर दुर्भाग्यशाली कि मेरे पास तुम्हारे तंत्रा-वार से पहले का अवसर मौजूद है । डूबने से पहले ही उसके शरीर पर अध्किार जमाना आसान है । अवचेतन मन में विरोध् की तनिक भी शक्ति नहीं है और यही मेरी शक्ति है । एक सामान्य व्यक्ति के शरीर में प्रवेश जैसे किसी घर में घुसने से पहले से उसके विरोध् से गुजरना पड़ता है । मगर मरणासन्न या अंतोत्गत्वा व्यक्ति के शरीर में चूंकि यही अवचेतन मन जब निष्क्रिय होने लगता है तो इसकी विरोधत्मक शक्ति खत्म होने लगती है, इसका ताला खुल जाता है और यह बिना ताले का - खत्म होने का अभिप्राय होता है ताला टूटना, ताला, खुलना जिससे शरीररूपी आत्मा बगैर विरोध् अंदर जा सकती है । इसे तुम तो समझती ही होगी जैस्मिन !
एक बार मरा हंू ..आज दूसरी बार भी मरूंगा, मगर तुम्हारे साथ । - आदि की इन बातों को जैस्मिन जबतक सझमती आदि ने मरने-मारने का पैफसला कर लिया था, अतः डर कैसा था । इस ओर जैस्मिन लपकते हुए तंत्रा-घेरे की ओर उठी, उध्र आदि ने जकड़ लिया और अब दोनो एक बंध्न में थे । आग बढ़ती जा रही थी, जिसने दुपट्टे को भी अपनी लपट में ले लिया, मगर आदि उसे बाहों में लिए चाह रहा हो । आग बढ़ी और जैस्मिन की तड़प भी, मगर आदि उसे बाहों मंे लिए एकटक देखता हुआ उसे मुस्कुराता रहा । आन की बाहों में आदि की आत्मा को संतुष्ट करती जैस्मिन बढ़ती आग के बीच छटपटाती-तड़पती रही और वहीं आदि इस जलती चिता के मध्य अपने पूर्ण होते बदले को जुनूनी आंखों से भावों से देखता रहा । आग जलती रही जलाती रही, वह देखता रहा देखता रहा, तबतक जबतक कि जिस्म शोला न बना, जिस्म कोयला न बना, जिस्म राख न बना, जबतक कि फैसला न हो गया । उस दिन - उस रात, ..उस फ्रलैट में !




FLAT : A SILENT STORY 2


FLAT : A SILENT STORY 2



TO BE CONTINUED*


उसने सर्वप्रथम टाइपराइटर में भर चुके पन्ने को हटाकर नया कागज डाल दिया । इसके पश्चात् अपनी बात उसपर स्पष्ट करनी शुरू कर दी - आज से कुछ वर्ष पहले की बात है । इसी पास के जंगल में कुछ वन्य कर्मचारी जब निरीक्षण हेतू भ्रमण को निकले तो वे एक घूमते-घूमते एक प्राचीन गुफा के निकट पहंुच गए । अन्य के लिए वह गुफा कोई  विशेष महत्व न रखता था, मगर उनमे से एक के लिए वह जिज्ञासा का खास कारण रखता था । उस गुफा के बारे में आस-पास के लोगों में विभिन्न अवधरणाएं पफैली थीं, जैसे कोई इसे पुराने जमाने में लुटेरों की शरणस्थली बताता था तो कोई उसे राजाओं का महल से गुप्त द्वार बताता था तो कोई कुछ और ही बोलता था अर्थात् जितनी मंुह उतनी बातें । इन बातों में रहस्य का साया अध्कि था और जिज्ञासा का कम । अगर इसमे जिज्ञासा की कोई खास व सबसे विशेष बात थी तो वह यह थी कि इस गुपफा के अंदर एक गुप्त खजाने का होना, जिसके बारे में विभिन्न मान्यताओं के अनुसार भागते समय लुटेरे छोड़ गए या पिफर नए राजा के आक्रमण पर जब पुराना राजा यह राज छोड़ गया तो खजाना इसी गुफा में छोड़ गया, जैसी विभिन्न अपफवाहें पफैली थीं । इतने पर भी सभी ओर से यह कॉमन बात थी कि इसमे खजाना है । और साथ में था गुफा के मुख्य द्वार पर स्थापित वह शिलालेख जिसमे खजाने का संकेत मात्रा छुपा था । इस संकेतों के पीछे न जाने कितने लोग पागल हुए और जान तक गंवा बैठे, लेकिन खजाना किसी को हासिल न हुआ । अंततः प्रारंभिक उत्सुकता का जोश ठंडा पड़ने लगा और यह खजाना एक किवदंती बनकर रह गया । उसपर जंगल में हुए सामयिक परिवर्तनों ने उस अप्रयुक्त गुफा के क्षेत्र और भी घना कर दिया । इस प्रकार वह पूर्णतः जंगल का हिस्सा बन गया और इसी कारण क्षेत्राीय लोग वहां न के बराबर ही जाते थे । अब यह सिपर्फ वन्य कर्मचारियों की पहंुच  तक रह गया । इन कर्मचारियों को भी औरों की तरह यह बात पता होती औरों की तरह ये भी इसे कहानियों - घटनाओं की तरह व्यवहार करते । 
इस दल के एक वन कर्मचारी के लिए वह सच जो कहानी व घटना बन चुका था सिपर्फ कहानी या घटना ही नहीं था वरन् अब भी पूर्ण सच ही था कि इसमे खजाना है और इसे पाना है । उसका भूत भी अन्य दीवानों की तरह था, मगर तकदीर उनसे जुदा थी । इस दुनिया में कौन-सा रहस्य कब खुलेगा कोई नहीं जानता और किसके द्वारा खुलेगा यह भी कोई नहीं जानता और जिसके द्वारा खुलेगा जब वह ही इस भावी को नहीं जानता तो दूसरे की क्या कही जाए । इसमें सबसे सच बात तो ये है कि’ भविष्य एक रहस्य है । इनके अर्थात् रहस्योद्घाटन के कर्ता तक के बारे में कोई रूप-रेखा नहीं खींची होती । अगर कोई रहस्य किसी ऐरे-गैरे, नत्थू-खैरे के हाथ से खुलना होगा तो पिफर वैसा ही होगा थी । आखिर कोहिनूर सबसे पहले किसके हाथ लगा था- एक रह चलते के हाथ इसके साथ भी वैसा ही होना था ।
एक वैसा रहस्य जो वर्षों ना सुलझ पाया, जिसे बड़े-बडे़ अंततः ज्ञानी, सूरमा न खोल सके उसने उस दिन खोल दिया । अंततः कई दिनों का परिश्रम रंग ला चुका था । उसके दिमाग में शिलालेख की बात उतर चुकी थी । अब इसे पूर्णतया गुप्त रखने की जरूरत थी, जो कि ज्यादा कठिन न था । 
इसके बावजूद एक अड़चन थी । उसकी अड़चन यह थी कि गुफा की गुह्यता भेदने में रास्ते में एक बड़ा पत्थर रूकावट था, जिसे हटाना अकेले आदमी के बस की बात कहीं से भी नहीं थी । उसने बहुत सोचकर इसके बारे में अपने अतिप्रिय सह-कर्मचारी को बताने का निर्णय लिया । उसने अपनी बात अपने दोस्त के समक्ष रखी तथा साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि खजाने का मात्र दस प्रतिशत किस्सा ही वह उसे देगा । उसके दोस्त की मांग पिफफ्रटी की थी, जो उसे कहीं से भी स्वीकार्य न था । अंततः बात पच्चीस प्रतिशत पर तय हुई ।
इतने बडे़ खजाने का मात्र पच्चीस प्रतिशत, उसके दोस्त के मन में यह अब भी खटक रहा था । उध्र खजाने का रहस्य जान चुका वन कर्मचारी भी आतुरता न दीखलाते हुए उसके मुड को भांपने लगा । इसी क्रम में उसकी निकटता उसकी सुंदर बीवी से बढ़ने लगी । उस औरत का इसमे आकर्षण भी खजाने ने बढ़ा दिया था । उन दोनों की गुफ्रत-गू हद पार कर रही औरत के पति से कबतक छुपी रहती । औरत का पति यानि उसका सह-कर्मचारी जल्द-से-जल्द काम कर अपना हिस्सा ले अलग हो जाना चाहता था । इसलिए उसने उसपर दबाव बनाना शुरू किया । उस वन कर्मचारी ने भी ज्यादा देर करना उचित न समझा । 
एक दिन दोनो ने खजाना निकालने का फैसला कर लिया । अतिरिक्त सहयोग के लिए उस औरत को भी साथ ले लिया । उसके बाद उस वन-कर्मचारी का क्या हुआ, कोई नहीं जानता उसका सह-कर्मचारी और वह औरत दोनो सकुशल मगर खाली हाथ लौट आए । और इस खजाने की कथा का यहीं पटाक्षेप हो गया ।
आत्मा सारी कथा पर नजर रखे हुई थी । इस रात की गुह्यता में विचित्रता और असमंजसता हावी थी । अगल पन्ना टाइपराइटर में लग चुका था । आत्मा ने उसकी बात का इंतजार न किया - ..उस वन कर्मचारी का नाम क्या था ?
आपकी हर बात का जवाब मैं अवश्य ही दंूगा । इसके पहले आप मुझे मेरे कार्य के प्रति आश्वस्त कर दें । - आगंतुक साया अपने कार्य के प्रति पूर्ण सजग था - अबतक तो आप मेरी मंशा समझ ही चुके होंगे ।
इस कथा का आरंभ और अंत खजाना है । इससे ज्यादा कुछ कहने की जरूरत मुझे महसूस नहीं होती । 
कर्मचारी का हाल-पता बताएं ।
आप सही हैं मगर आपको खजाने का रहस्य क्या मालूम, मुझे सिर्फ उस वन-कर्मचारी का पता बताएं ।
आपकी मंशा के बारे में मैं अपना फैसला कुछ क्षण बाद सुनाउंगा । 
अभी तक मैं अपनी प्रगति क्या समझूं ?
इसे सार्थक ही समझिए ।
अब आपके  सारे और संपूर्ण प्रश्नों का उतर एक साथ दे रहा हंू । - अंगुलियां टाइपराइटर पर अनवरत भागी जा रही थीं । - उस वन कर्मचारी का नाम आदि था और वह सह-कर्मचारी आन था जबकि उसकी बीबी जैस्मिन थी । इनमे तीनो इस वन-क्षेत्रा के इन्हीं क्वार्टरों में रहते थे ।
अगर आपको इतना कुछ पता है तो यह भी पता ही होगा कि आदि इन्हीं नहीं इसी क्वार्टर में रहता था ।
आप सही हैं ।
इतना कुछ तोे मैं समझ गया । अब समझने की बात सिर्फ यह रह गई है कि आपको इन सब बातों की जानकारी कैसे हुई ? आत्मा का सवाल-जवाब भी उसकी भांति तो हर चुका है और खजाना यहां से मात्र बीस-पच्चीस फीट की दूरी पर है । इसलिए तुम सभी यहीं रहो, मैं खजाना देखकर आता हंू । उसके बाद ही उनकी बदली नीयत बदलने लगी । उन्हंे लगा कि बस दस-बीस फीट ..इसे तो हम भी पार कर लेंगे । अगर बात सचमुच दस-बीस फीट की होती तब तो खजाना मिलता । 
इसके बावजूद भी उन । टाइपिंग के द्वारा ही जारी थी । 
अमूमन यह तो बिल्कुल सत्य है कि इस खजाने का तो दूर मेरे लिए यह पता लगना तक असंभव था कि इसका रहस्य भी किसी ने जान लिया है । आज यदि इस सत्य तक पहंुचा भी हंू तो सिर्फ इस कारण कि आदि का मित्रा आन इस रहस्य की गुत्थी न सुलझा पाया तो उसने अपने बचपन के परम मित्र या लंगोटिया यार जो भी कह लिजीए जीन यानि मुझसे संपर्क किया । आदि और वो सह-कर्मचारी होने के नाते मित्रा बने जबकि मैं बचपन से ही इसका मित्र था । अंततः इस गुत्थी को सुलझाने के लिए उसने मुझसे मदद मांगी ।
आपका जब इतना लंगोटिया यार है तो उसने अवश्य ही आगे की कथा भी बताई होगी ।
आश्चर्य तो इसी बात का है कि उसने उसके आगे की घटना को बिल्कुल अविश्वसनीय तरीके से खत्म किया । इसी कारण आगे की बात कहना भी मैं व्यर्थ ही समझता हंू ।’
उसने क्या कहा ?
आदि हमारे साथ ही निकला था मगर बीच रास्ते में ही न जाने कहां गायब हो गया ।
आपका काम असंभव है । - अचानक आत्मा ने फैसला सुना दिया । आगंतुक को ऐसी उम्मीद कहीं से भी न थी । इसके बावजूद भी उसने संयमित तरीके से प्रश्न किया -आप कारण बता सकते हैं ?
आदि की हत्या हो चुकी है । - आत्मा ने स्पष्ट उत्तर दिया - ..और वह मैं हंू !
एकाएक टंकण रूक गया और आगंतुक साये के लिए यह स्थिति क्षण भर के लिए समय थम जाने ऐसी हो गई । 

आपकी हत्या हो चुकी है ! - उसने विस्मय से पूछा । उसका सवाल टाइप होते ही उतर भर पहले की तरह क्रमब( आने लगे - अगर मैं सतर्क न होता तो मेरी हत्या जो तय थी, वह तो होती ही सथ ही वह खजाना थी उन्हें हासिल हो जाता जिसके लिए मेरा कत्ल हुआ । उस रोज गुफा में प्रवेश के बारद आध्ी राह पर करने के पश्चात् मैंने उनसे कहा कि रास्ते का पत्थर उन दोनो ने मिलीभगत कर मेरी हत्या कर दी थी । उस जैस्मिन ने भी ..जिससे मेरा आकर्षण झूठा न था । उसने खजाने के लिए मेरा व्यवहार किया । उस फरेबी औरत ने न सिपर्फ अपने पति को घोखा दिया बल्कि मेरे साथ भी विश्वासघात किया ।
इसका मतलब......।
आपके गुम ..मतलब हत्या के सालभर बाद उसकी भर जहर देकर हत्या कर दी गई । - आत्मा को अपनी बात का संतोषजनक उत्तर मिला । 
आपका मतलब है कि हम दोनो की हत्या ही हुई ।
बिल्कुल !
उसकी हत्या किसने की ?
मुझे नहीं लगता कि ये प्रश्न आपको करना भी चाहिए । उस औरत ने संपूर्ण खजाने के लिए दो व्यक्तियों को घोखा दिया । एक उसमें से जिंदा था -
उसका पति अर्थात् आदि का यानि आपका मित्र ।
इस समय वह कहां है ?
इसी वन-विभाग में कार्यरत् है । - उत्तर मिला, मगर एक प्रश्न के साथ- आप मेरे कार्य के संबंध् में अपनी दुविध बताएं । आप मुझे इंकार क्यों कर रहे हैं ?
आप उसके मित्रा ही नहीं बल्कि परम मित्रा हैं । उसने भी तो मुझे तब ही याद किया जब वह असपफल हो गया । इसलिए वह मेरे लिए उतना ही परम है जितना मैं उसके लिए हंू ।
इन सब बातों को छोड़िये । आप सिर्फ इतना बताइए कि रास्ता क्या है ? - उसने आत्मा को अपने कार्य के प्रति झुकाने की चेष्टा की । इस बार तीर मारने की बारी आत्मा की थी - आपको मेरी हत्या का बदला लेना होगा । आन की हत्या करनी होगी, अभी और इसी वक्त ।
आप मुझसे हत्या करवाएंगे ?
इस खजाने को पाने का यह एकमात्रा रास्ता है ।
और अगर उसपर भी खजाना हासिल न हुआ तो .......।
अगर मृत्यु हो जाए तो ध्न का क्या मोल रहता है ? ..इसे आप बताइए ।
इसके बावजूद भी विश्वास करना कठिन है, क्योंकि यह खजाना न जाने कितने वर्षों का रहस्य है । उसे आप उसके बाद भी यह सोचकर नहीं दे सकते हैं कि इतना बड़ा रहस्य जिसे बड़े-बड़े लोग न सुलझा सके, उसे दे दंू ।
अब इस रहस्य का भी मेरे लिए कोई मोल नहीं है । अगर किसी चीज का मोल है तो वह है बदले का । इसे पूरा करने पर ही मेरी आत्मा तृप्त हो सकती है । उस खजाने को पाकर भोगना मेरे जीवन में ही संभव था । उस समय यानि जिंदा में इसे पाना मेरी सबसे बड़ी आकांक्षा थी और मरने के बाद इन दोनों से बदला लेना मेरी सबसे बड़ी चाहत बन गई । उस आकांक्षा को तो पूरा न कर पाया, मगर इसे ..शायद आपकी मदद से ही पूरा होना है । - आत्मा पफैसले के रूप में ही सबकुछ टंकित कर रही थीऋ आप उस खजाने के बारे में शंका छोड़ दिजीए, वह मेरे लिए मिट्टी बन चुका है । आपके लिए जो मोल खजाने को है उससे भी बड़ा मोल मेरे लिए इस बदले का है ।
आपका काम आज ही होगा । - आत्मा की बात से वह संतुष्ट हो गया । आत्मा ने आक्षेप किया - अभी ही ..।
उसके पश्चात् ही मेरा आपसे संपर्क होगा -इसी के साथ में संबंध्-विच्छेद हो गया । 

अब सिर से पैर तक ढंका आगंतुक जीन उठ खड़ा हुआ और फ्रलैट के दरवाजे पर आ गया । उसने दूर स्थित र्क्वाटरों को निहारा जो कि अमावस के अंध्ेरे में नहीं ही दीख रहा था, मगर इसपर भी वह उसमें अपने लक्ष्य को महसूस कर रहा था । उसकी नजर एक ओर जाकर थम गई और कुछ क्षणों की सोच व अंतराल के बाद लक्ष्य की ओर कदम बढ़ा दिए । 
आदि से प्रभावित जीन के लिए आन अब उसका परम मित्र नहीं रह गया था । आन के क्वार्टर के पास वह जल्द ही पहंुच गया और साथ ही साथ ठिठक भी । अरे यह क्या, दरवाजा खुला हुआ था । इतनी रात गए दो पहर में दरवाजा खुला होना इस बात का संकेत था कि आन जागा हुआ था । अब बारी सचेत होकर अपने कार्य को अंजाम देखने की थी । एक समय के अंतराल के बाद मजबूत और वही हुआ जिसका डर था । प्रहार पीछे से हुआ । अगर जीन की छठी इन्द्री ने सेकेण्ड के सौवें हिस्से में सत्तर्कता का आभास न दिया होता तो वह मजबूत लट्ठ उसके सिर को तरबूजे की तरह पफाड़ चुकी होती । इतने पर भी दाहिने कंध्े पर चोट आ ही गई । एक चीख जो निकलती जरूर मगर घुटकर रह गई, क्योंकि इसके लिए भी जीन के पास वक्त नहीं था । उसे तुरंत उत्तर देना था और उसने दिया भी । एक खंजर जो कबसे प्रतिक्षा में था, हवा में लहराया और हमलावर पर झपटा । उसकी अंतड़ियों को पेसते हुए वह आर-पार हो गया । और जिस फुर्ती से पार हुआ था, उसी फुर्ती से लौटते हुए पुनः पेट में समा गया । इतनी तेज क्रिया-प्रतिक्रिया में चीख के लिए कोई समय तक नहीं था । अतः एकबारगी परिणम ही सामने आया । उस हमलावर का शरीर आंखें पफाड़े कटे वृक्ष की भांति गिर पड़ा । 
इसके बाद जीन ने रूकना उचित न समझा व वह वहां से लौट पड़ा, जो इस बात का परिचालक था कि जिस शिकार की उसे जरूरत थी, उसने उसी को मार गिराया है । आन का समाधन हो चुका था । अब खजाने का शेष रह गया था । एक दर एक डग भरते कदम पुनः फ्रलैट तक पहंुच गए । 









Monday, 25 April 2022

FLAT : 1 : A SILENT STORY*

*AMIT KUMAR NAYNAN*



Flat : ए साइलेंट स्टोरी 1


एक सरकारी फ्रलैट - अब यहां कोई नहीं रहता । इसमे कभी आदि नाम के वन्य-कर्मचारी का वास हुआ करता था, मगर सात वर्ष पहले अचानक ही वह इसे छोड़कर न जाने कहां चलता बना । चूंकि यह फ्रलैट पहले से ही जीर्ण-शीर्ण था और सरकार ने वहां से कुछ दूरी पर नए फ्रलैटों के लिए भूमि आवंटित कर दी थी, अतः इसे उपेक्षित कर दिया गया था । और अब यह सिपर्फ कभी-कभार आ गए अतिरिक्त अतिथियों के लिए ही प्रयुक्त होता था । मगर इसे विडंबना ही कहिए कि इस फ्रलैट में सात वर्षों में सात अतिथि भी न आए थे, इसलिए यह खुद में जंगल का एक हिस्सा ही लगता था । पिछले दो वर्षों से तो इसे कोई देखने भी न आया था, इसलिए इसके रख-रखाव की तो कल्पना ही की जा सकती है - उपेेक्षित या पूर्णउपेक्षित ।


आज बहुत दिनों बाद कोई मेहमान, वो भी आध्ी रात को इस ‘फ्रलैट’ की ओर बढ़ रहा था । तकरीबन दो वर्ष बाद किसी अतिथि का इस तरह आगमन हुआ था । इससे पहले फ्रलैट को इस तरह के विचित्रा अतिथि से कभी मुलाकात न हुई थी । 

इस पूर्ण अंध्कार अर्थात अमावस की रात में उस अतिथि को काले लबादे से सिर से पैर तक ढंका जिस्म अंध्कार को और गहन बना रहा था । अंध्ेरे को जिस्म का लबादा बढ़ा रहा था या जिस्म समेत लबादे को अंध्कार अपनी आगोश में ले रहा था, कहना मुश्किल था ।

उपेक्षित मकान का खुला होना न होना बराबर होता है । इस साये के हाथ के हल्के दबाव से दरवाजा खुलता चला गया, अंदर अंध्कार गहन अंध्कार । उसकी आंखें चमक रही थीं, शायद किसी चीज की प्राप्ति की मंशा लिए - मगर क्या ? उसे किस चीज की आश थी या तलाश, कहना मुश्किल था । 

अमावस की रात तो यंू ही काली होती है, उफपर सरलता तो दूर किसी भी तरह के अनुमान के सहारे भर घुसना मुश्किल था, जिसका वो साया अबतक उपयोग करता आया था । अनुमान के सहारे परिचित रास्ते पर बिना रौशनी के आने के पीछे उसकी ये मंशा निश्चित रूप से ही होगी कि कोई गलती से भी इस ओर आता न देख लें । अबतक की उसकी योजना के अनुरूप सबकुछ सही था ।  

अंदर कदम रखते ही उसने हाथ में मोमबती जला ली । अब कमरे में सबकुछ स्पष्ट दिख रहा था । जो अध्कितर जगह था मगर कमरे के बीचोंबीच इसके उलट दीख रहा था । उस कमरे का वही भाग वहां यानि एक निश्चित दूरी तक साफ था और इससे भी बड़ा आश्चर्य था बीच फर्श पर एक टाइपराइटर का होना । एक पतले चादर पर रखा वह टाइपराटर स्थिति को और भी रहस्यमय बना रहा था । उस चादर का एक भाग बैठने भर घूटा भर था, जहां जाकर साए ने जगह ली । 

अब उसने पूरे कमरे पर एक सरसरी निगाह डालते हुए अंततः टाइपराइटर पर अपनी आंखें स्थिति की और फर क्रमिक रूप से एक पर एक कई मोमबतियों को बडे़ सलीके से उसके सामने सजाना शुरू किया । इस दृश्य को देखकर तंत्र-मंत्र जैसी ही क्रिया का आरंभ है । 

आज की रात सचमुच काफी रहस्यमय थी और इसी के साथ रहस्यमय बनता जा रहा था वह फ्रलैट  । एक सुनसान फ्रलैट, जहां न किसी का आना न जाना साथ ही पूर्ण् उपेक्षित भी, इस तंत्र-क्रिया के लिए इससे बेहतर और क्या जगह हो सकती हो सकती थी ? अर्थात् आनेवाला व्यक्ति इस फ्रलैट के बारे में पूर्ण जानकारी लेकर आया था या पिफर रखता था ।

आनेवाले शख्स ने जंगल तो नहीं मगर जंगल के एक भाग - इस फ्रलैट में कदम रखते ही यह जरूर सि( कर दिया कि वह यहां पहली बार नहीं आया है अन्यथा टाइपराटर यहां नहीं होता । आते के साथ उसके पास लगे आसन पर उसका बिल्कुल परिचित ढंग से बैठना यह निःशंक स्पष्ट करता था कि एक बार पहले तो वह इसे पहले तो वह इसे यहां पहुंचाने अवश्य ही आया होगा, और जहां तक संगी-साथी या परिचित-विश्वासी आदि से पहुंचवाने की बात है तो उसकी अति सत्तर्कता व गोपनियता इस बात का पूर्ण विखंडन कर रही थी । इन्हीं विखंडनों केे चलते तो वह साया अपने साथ अपनी क्रियाओं के आरंभ से ही जंगल के इस हिस्से को रहस्यमय बनाता चला गया ।

उसने मोमबत्तियों को जलाने का क्रम बंद किया और बीचवाली मोमबती लौ पर अपनी आंखें केंद्रित कर दी । इसी तरह कुछ क्षण एकटक देखने के पश्चात उसने आंखों को बंद कर लिया और ध्यान की मुद्रा में चला गया, जिसमे लौ पर एकटक देखने में लिए समय से ज्यादा समय लगा । उसके पश्चात् उसने आंखें तो उसमें स्पष्ट विवशता नजर आ रही थी । आंखों को मींचने के बाद जो कि इसका सूचक था कि वह अपने प्रयास की विपफलता स्वीकार कर रहा है, उस शख्स ने एक बार पुनः अपनी क्रिया आरंभ की । इस बार फर असफलता मिली और प्रतिक्रिया के भाव पुनः आंखों में ही दृष्टिगोचर हुए जिसमे एक अनचाही निराशा छाई हुई थी । 

इस बार उसने मोमबतियों का क्रम दाएं-बाएं किया तथा मध्यवाली मोमबती को टाइपराइटर के उफपर बीच में रखते हुए उसके टाइप’ पर अपनी अंगुलियां रख दी और एक दृढ़ निश्चय के साथ एक बार फर क्रिया का आरंभ हुआ, जिसमें सफलता की गुंजाइश पिछली बार की अपेक्षा अध्कि नजर आ रही थी । 

आखिर सफलता मिल गई । उसे जिसका इंतजार था, वह आ चुका था । अंगुलियां स्थिर थीं, मगर टाइपिंग आरंभ हो चुकी थी । इसे स्वचालित लेखन कहा जाता है यानि आत्मा आवाहन की एक विशिष्ट प्रक्रिया । उस टाईपराइटर में लगे पन्ने पर शब्द आने शुरू हुए । 

आप मेरा अभिवादन स्वीकार करें ।

अंगुलियों प्रत्युतर के लिए टाइपराइटर पर भागनी शुरू हुईं । 

‘आप मेरे प्रश्न का उतर दें । ’

अभिवादन स्वीकार करें ।

इसका तात्पर्य मैं क्या समझूं ?

आपका यथोचित आदर श्रीमान् ।

अगर स्वीकार न हो तो ..।

आदर तो आदर है श्री मान् ।

अगर स्वीकार कर लंू तो ..।

आपसे मैत्राी की मंशा है ।

एक इहलोकवासी की परलोकवासी से मित्रता का क्या अर्थ है ।

एक कुशल मंशा ।

अव्यक्त टाइपिंग के माध्यम से व्यक्त हो रहा था । आनेवाली आत्मा ज्यादा खुश नहीं थी । उसके अंतिम प्रश्न का उत्तर देने के बजाय उस रहस्यमय साए ने उसे सीध्े उपनी ओर मोड़ने की चेष्टा की । 

आप अपनी बात कहें ।

आप सर्वप्रथम अपना परिचय दें ।

आप अपने कार्य से मतलब रखें ।

अमूमन मैत्राी के लिए यह जरूरी है ।

इसे आप करना चाहते हैं, मैं नहीं ।

इसके बिना शायद मेरा कार्य संभव नहीं ।

आप जितनी ज्यादा देर मुझे रोकेंगे, मुझे कष्ट होगा ।

अपनी ऐसी कोई मंशा नहीं ।

आप अपना कार्य कहिए ।

अगर मित्रता हो जाती तो ..।

अगर आपकी मंशा मुझे कष्ट न देने की है तो अपनी बात कहिए ।

आखिर आप अपनी मनवाकर रहेंगे । - उसने हार मानते हुए भी हार न मानी - ..आपकी इच्छा, मगर मित्राता न होने की स्थिति में मैं अपने कार्य के प्रति कितन आश्वस्त रहूं ?

आपकी बातें मुझे संदेह के घेेरे में डाल रही हैं । अगर कार्य गलत न होगा तो बिल्कुल आसान है । - एकदम खरा-खरी बात करने में वह आत्मा भी कम न थी । 

और गलत होते हुए भी गलत न हो तो ..।

आप स्पष्ट खुलासा करें ।

आपको समय देना होगा ।

आखिर कितना ..?

आप विवेक  काम लें और मुझे अपनी बात समझाने का मौका दें । - उसके लिए आत्मा से पर्याप्त समय मांगने का यही सबसे अच्छा मौका था । आत्मा कुछ क्षण सोच में पड़ गयी । अंततः फैसला सुनाया - ..एक बार में सारी बात कह डालिए । उसके पश्चात् मैं निर्णय लूंगा ।

इसके लिए आपका बहुत-बहुत ध्न्यवाद ..! - उसे अवसर मिल चुका था ।


@ TO BE CONTINUED @ STORY CONTINUES*


Sunday, 17 April 2022

CHESS 1 BISAAT TRAILOR


CHESS 1 BISAAT TEASOR


CHESS Story BISAAT

*AMIT KUMAR NAYNAN*

CHESS : CHESS is the Most Interesting Mind Game in The World till Date. CHESS Story Series First Story Bisaat has been presented here Right now. We Wish All of You will Enjoy CHESS & BISAAT*

CHESS 1 : BISAAT -- The Ultimate Game

Ajit apne ghar mein baitha TV dekh raha hai. Tabhi Call bell bajti hai. Uske ek haath mein coffee aur dusre haath mein TV ka remote hai. Wo use rakhkar darwaaza kholta hai.

Ajit : Aman ! Tu .......!!

Aman : Kyun ! khushi nai hui ..?

Ajit : Beshaq yaar ! ..chal ander aa.

Ajit Aman ko ghar ke ander aane ka raasta deta welcome karta hai.

AJIT : Mujhe laga ki tu ..

AMAN : Nahi lautega ..videsh chala gaya hoga.

AJIT : Sure

Ajit aur Aman darwaaje se ander sofe par aaraam se baithte hain. Ajit welcome serve karne ke andaaz mein puchhta hai.

AJIT : coffee piega ..banaun !

AMAN : Mujhe jaldi bhagaana chaahta hai.

AJIT : Teri aadat nai gai ..ulta jawaab dene ki.

AMAN : Are ! Ulta jawaab kam se kam jawaab to hota hai ..teri tarah sawaal to nai hota.

Aman sofe par dono ore baahein pasaarta itmeenaan se kahta hai.

AMAN : Aaj fursat mein hun.

AJIT : Aaj chutti hai ..

AMAN : Hamesha ke lie ..

AJIT : Teri naukri ..

AMAN : Ek kaam pakda hai, pura karke hi rahunga

AJIT : Iska matlab teri naukri ..

AMAN : Tu sawaal band karega to main ulta jawaab dena band karunga.

AJIT : le ! maine munh par taala laga liya. apne hi ghar mein gungaa ..

AMAN : kuchh aur baat karein.

Ajit Aman ke baat ka andaaz badalne ke andaaz se usee andaaj mein arthpurn lahje mein puchhta hai.

AJIT : Kuchh khaas ..kisi special kaam se aaya hai. to abhi kah de.

AMAN : Aaj fursat mein tha to chala aaya.

Aman idhar-udhar najrein ghumaata romanchak shailee mein achaanak mano faisla sunaata hai.

AMAN : Aa ! Aaj Chess khelte hain.

AJIT : Game

Ajit uske apratyaashit mood par muskura deta hai. Use lagta hai jaise fursat ke kshanon mein isse achcha doston ke beech do-do haath ka isse behtar samay aur tareeka kam se kam is samay koi aur nahin 

AMAN : Ek-ek haath ho jaaye

AJIT : ok

Ajit chessboard le aata hai. Phir dono chessboard lekar aamne-saamne baithte hain.


 TO B CONTINUED*

Wednesday, 6 April 2022

CHESS Story SERIES

By Amit Kumar Naynan*


THE ULTIMATE GAME
Amit Kumar Naynan Active again with A New Story, Story Series @ CHESS*
Presenting CHESS Series First Story CHESS : 1 :  THE ULTIMATE GAME*


CHESS
(A New Series)
1
BISAAT

The Ultimate Game

Ajit apne Flat ke mukhya dwaar ke pass baitha coffee pee raha hai. Tabhi call bell ki awaaz sunai deti hai. Wo uthkar darwaaza kholta hai. Saamne Aman khada hai. Uska dost.

Keep reading*
In April 2022 Full Story will release*
To B Continued*

*AMIT KUMAR NAYNAN*

CHESS : CHESS is the Most Interesting Mind Game in The World till Date. CHESS Story Series First Story Bisaat has been presented here Right now. We Wish All of You will Enjoy CHESS & BISAAT*

CHESS 1 : BISAAT -- The Ultimate Game

Ajit apne ghar mein baitha TV dekh raha hai. Tabhi Call bell bajti hai. Uske ek haath mein coffee aur dusre haath mein TV ka remote hai. Wo use rakhkar darwaaza kholta hai.

Ajit : Aman ! Tu .......!!

Aman : Kyun ! khushi nai hui ..?

Ajit : Beshaq yaar ! ..chal ander aa.

Ajit Aman ko ghar ke ander aane ka raasta deta welcome karta hai.

AJIT : Mujhe laga ki tu ..

AMAN : Nahi lautega ..videsh chala gaya hoga.

AJIT : Sure

Ajit aur Aman darwaaje se ander sofe par aaraam se baithte hain. Ajit welcome serve karne ke andaaz mein puchhta hai.

AJIT : coffee piega ..banaun !

AMAN : Mujhe jaldi bhagaana chaahta hai.

AJIT : Teri aadat nai gai ..ulta jawaab dene ki.

AMAN : Are ! Ulta jawaab kam se kam jawaab to hota hai ..teri tarah sawaal to nai hota.

Aman sofe par dono ore baahein pasaarta itmeenaan se kahta hai.

AMAN : Aaj fursat mein hun.

AJIT : Aaj chutti hai ..

AMAN : Hamesha ke lie ..

AJIT : Teri naukri ..

AMAN : Ek kaam pakda hai, pura karke hi rahunga

AJIT : Iska matlab teri naukri ..

AMAN : Tu sawaal band karega to main ulta jawaab dena band karunga.

AJIT : le ! maine munh par taala laga liya. apne hi ghar mein gungaa ..

AMAN : kuchh aur baat karein.

Ajit Aman ke baat ka andaaz badalne ke andaaz se usee andaaj mein arthpurn lahje mein puchhta hai.

AJIT : Kuchh khaas ..kisi special kaam se aaya hai. to abhi kah de.

AMAN : Aaj fursat mein tha to chala aaya.

Aman idhar-udhar najrein ghumaata romanchak shailee mein achaanak mano faisla sunaata hai.

AMAN : Aa ! Aaj Chess khelte hain.

AJIT : Game

Ajit uske apratyaashit mood par muskura deta hai. Use lagta hai jaise fursat ke kshanon mein isse achcha doston ke beech do-do haath ka isse behtar samay aur tareeka kam se kam is samay koi aur nahin 

AMAN : Ek-ek haath ho jaaye

AJIT : ok

Ajit chessboard le aata hai. Phir dono chessboard lekar aamne-saamne baithte hain.

 TO BE CONTINUED*

Tuesday, 29 March 2022

FLAT Story Listing

 A Beautiful Series* By Amit Kumar Naynan*


Coming Soon*

FLAT

FLAT : 1 : A SILENT STORY

FLAT : 2 : *******

FLAT : 3 : *******

FLAT : 4 : *******

FLAT : 5 : *******

FLAT : 6 : *******

FLAT : 7 : *******

YOGA