https://m.youtube.com/watch?si=AT1BssSaPA27kKXS&v=61dGikDmto8&feature=youtu.be
https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2024/08/2898-published-works-of-amit-kumar.html?m=0
https://m.youtube.com/watch?si=AT1BssSaPA27kKXS&v=61dGikDmto8&feature=youtu.be
https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2024/08/2898-published-works-of-amit-kumar.html?m=0
IN THE INDIAN CINEMA HISTORY, IT IS A OPEN STEALING TRY OF ANY STORY ..
WHEN
STORY CONTENT ARE PUBLISHED 25 YEARS AGO PUBLISHED,
STORY IS SECURED BY INFORMATORY PETITION IN COURT 16 YEARS AGO
STORY IS REGISTERED' TWO TIMES IN WRITER'S ASSOCIATION 16 YEARS AGO AND 11 YEARS AGO
AND PLUS + ONE COPYRIGHT 11 YEARS AGO ALSO REGISTERED'
IT MAY BE SEEN
HOW THE ART FIELD ERASED BY THE ART RULER
EVEN IF ALL THE METHOD ARE PRESENT BUT ART STEALER ARE TRIENG/DOING OPENLY COPIENG
IT HAPPENS ONLY IN INDIA
IN THE CREATION FIELD OF INDIA, NO ONE TAKES SERIOUS ART RELATED MATTER ..
AND/SO/THUS
ART FIELD COLLAPSED
EVERYONE SEEMS TO LIVING FOR SELF, ART IS A LADDER OF NAME AND FAME
THE PRESENT SCENERIO OF INDIA
Remmember The Time ! When I awared very strongly years before. But no one listen/heard it;/Or waited for next move in later days' with same try ..same leak attempt
'THE GREAT GOD' KO 'THE BIGGEST DICIEVE' KI KOSHISH KAR 'THE BIGGEST WINNING OF ALL TIMES : divine' KI KHUSHI MANAANE WALE BHUL GAYE HAIN KI ISHWAR KO DHOKHA KOI NAHI DE SAKTA !
AAPKE KARMON KA HISAAB USKE BAHEE KHATA MEI NOTE HO CHUKA HAI !
MAHABHARAT MEI SHREE KRISHNA NE KAHA THA, KI ISSE BADA PAARIVARIK YUDH NA HUA HAI NA HOGA ..
BILKUL USEE PRAKAAR ..
ITIHAAS MEI'
INDIAN CINEMA KE ITIHAAS MEI'
ISSE BADEE KAHAANEE NA CHOREE HUI HAI NA KABHI HOGEE,
IT IS THE LAST STORY !
ALL BELEIVE HAS BEEN DECIEVED IN THE FACE OF FAITH ..FAKE TRUTH ..FAKE IDEOLOGY ..
WHO ARE RULER/INVOLVED IN THIS EVENT ..ARE NOT LIABLE TO LEAD THE SOCIAL WAY
ONLY CONDITIONS MAY BE IN YOUR FAVOURE ..BUT TILL A LIMIT ..
BECAUSE
TRUTH HAS OWN IDENTITY
AND
YOU ARE NOTHING IN FRONT OF TRUTH
A MIRACULOUS LOVE STORY BELONGS IN FUTURE
PREVIOUS ANNOUNCEMENT ETC LINKS FOLLOWING HERE BY
THE LINK
https://aknayan.blogspot.com/2024/07/the-great-god-holy-art_29.html?m=1
THE LINK
https://aknayan.blogspot.com/2024/07/the-great-god-holy-art_29.html?m=1
THE KALKIDHAAM PEETH' S PRAMOD KRISHNAM SENT LEGAL NOTICE ON 20 JULY 2024 (FOR WRONG PRESENTATION ABOUT KALKI AVATAAR IN FILM kalki 2898 ad) TO vyajyanthi movies
fQYe baMzLVzh esa dszfMV ysus ds fy, lcls vf/kd gksM+ gS dgkfu;ksa esa uke ysus dh A bldk vkjaHk ls gh ,slk gS A baMh;u fQYe baMLVzh ds vkjaHk esa rks ys[kd dk uke iksLVj ij nsuk gh oftZr Fkk A og rks Hkyk ekfu, lyhe&tkosn dk fd mUgksaus tathj fQYe ls bldh Lo;a 'kq:vkr dh A izksM~;wlj Mk;jsDVj us rks iqjkuh ijaijk dk;e j[krs gq, iksLVj ij uke ugha gh Mkyk Fkk] dgus ds ckn Hkh ugha Mkyk] rks vius iSls [kpZ dj iksLVj ij lyhe&tkosn us ys[kd ds rkSj ij vius uke fpidk, A
vki ;dhu ekfu, og ys[kd tks lewph fQYe dh dgkuh dk tUenkrk gksrk gS] mldk uke ugha nsus dk [ksy vkjaHk ls gh pyk vk jgk gS A dkj.k vkSj dqN ugha gS] dkj.k cl ;g gS fd ys[kd dh dgkuhdkj ds rkSij ij iwjh fQYe ij idM+ gksrh gS A ,d fQYe ij iwjh rjg idM+ rhu dh gksrh gS Mk;jsDV] ,DVj] jkbVj A bles jksekapd ckr ;g gS fd esdhax ds izkslsl esa jkbVj] Mk;jsDVj] ,sDVj dk dze vkrk gS A igys jkbVj dgkuh fy[krk gS rc Mk;jsDVj ,d dachus'ku ds lkFk 'kq:vkr djrk gS rc ,sDVj dk dke dk uacj vkrk gS A ;g izfdz;k esa igys ;k ckn gS] bldk eryc ;g ugha fd bles fdlh dks de ;k vf/kd vkadk tk jgk gS A cl ;g izfdz;k ds utfj, ls gS A rks lef>, fd vkfVZfLVd izfdz;k ds ftl utfj, ls ;g lcls vfuok;Z gS ogh lcls ckn esa gks tkrk gS A ;g deky gS fo'ks"kdj fQYe baMLVzh dk A og Hkh ,slk ckgj gks tkrk gS fd iksLVj rd ij uke vkuk nqyZHk gks tkrk gS A vkSj ;g lc vkjaHk ls gS A
INDIAN CINEMA IS GOING THROUGH BLACK ERA
SOME IMPORTANT QOUTES MADE BY SOME FILM RELATED PERSONS/CTITICS SHOWS IT
RAM GOPAL VERMA
https://m.youtube.com/watch?v=OdXLfMN-8KE&pp=ygUZcmFtIGdvcGFsIHZhcm1hIGludGVydmlldw%3D%3D
PRAKASH JHA
https://m.youtube.com/watch?v=Bub3Wq_7NEs&pp=ygUTcHJha2FzaCBqaGEgcG9kY2FzdA%3D%3D
UJJAWAL TRIVEDI
https://m.youtube.com/watch?v=48kJoej8ATg
MANOJ DESAI IS A WELL KNOWN DISTRIBUTER OF INDIAN CINEMA, BOMBAY.
IN THIS PURPOSE HIS STATEMENT HAS ALSO OWN RECOGNISATION
STAR KO IS BAAT PAR DHYAAN DENA CHAHIE KI SATYA KYA HAI ASATYA KYA ..
REALITY & FAKE MEI KYA ANTER HAI ..
THE FAKE REALITY PAR ITNA VISHWAS NAHI KARNA CHAHIE KI SACH HI JHOOTH LAGNE LAGE !
*TG/THE GOD/THE GREAT GOD BEING EFFECTED BY ART AND STORY DECIEVERS
*INDIAN CINEMA IS GOING THROUGH BLACK ERA : ART STEALING CHEATING DIVERTING ETC IS NOT THE CRIME ..IT IS A ART NOWADAYS
THE DIRTY GAME OF DECIEVER' S CHOICE
*LEAK THE CONTENTS IN SO MANY WAYS
*PRESENT PARRELEL STORIES/ART TO STAR
VIA MANY sources/name ...etc
"STAR NEEDS STARDOM : DOES NOT MEAN HOW COMES : MORAL & SPEECH ARE MADE FOR BEAUTIFY AURA OF STAR BEING' CREAT BY THEIR NEARLY/AUTHORISED BY PERSON MAY BE FAMILY, FREIND, PR TEAM ...OTHERS ANYONE .."
"IF THEY TELL SOMETHING THEN HIS NEARBY ARTCHEATERS THAT ARE HIS/THEIR FAVOURITE WILL FEEL BAD : SO NO COMMENTS IS THE BEST COMMENT FOR THEM !"
"WHEN MATTER COMES ABOUT OTHER ARTIST ..PARAMETERS BECOME CHANGE ..AS AN ARTIST BEING FAVOUR WRONG PEOPLE INDIRECT WAY' IT IS NOT A GREAT EXAMPLE !! IT IS A GREAT EXAMPLE FOR ALL !!
"THE STARS WHO NEEDS THAT PUBLIC RECOGNISE HIS ART & ARTIST ..BUT ..WHEN MATTER COMES ABOUT OTHER ARTIST AND ART STEALING THEY BECOME SILENT ..! BY BEING INDIRECTLY IN FAVOUR OF ART CHEATERS DECIEVERS ..AS AN ARTIST ..WHAT MORAL HAVE BEEN PRESENTING ..FOR ALL !"
"AS AN ARTIST IT DOES NOT A GREAT EXAMPLE !! IT IS A GREAT EXAMPLE FOR ALL !!"
"EVERY ARTIST NEEDS SAME THING AS A ARTIST/STAR WANT @ ART AS HONOUR AND ALL THE THINGS RELATED !"
"WHAT IS HAPPENING IS UNDERRATED GENERATED SUPPORTED DIRECTLY INDIRECTLY BY STARS OR BY THEIR UNIONS OR BY BOTH !"
"MORAL DIALOGUEBAAJEE IS A FAKE IDEOLOGY AS ON SCREEN A FICTIONAL DRAMA ! IT IS A ARTIFICIAL TO BE DRESS OF CHARACTERISATION TO CREAT A ARTIFICIAL AURA ...AND ITS DOES NOT MEANING OTHER THINGS !"
AMIT KUMAR NAYNAN
'PAARSEE @ 1001 FREE STORIES'
पारसी !
उस मुहल्ले में वह एकमात्र पारसी था । इसलिए सब उसे नाम से कम और पारसी से अधिक बुलाते थे । हांलाकि यह मित्रवत् था । इसलिए उसे मित्र या परिचित ही उसे इस संबोधन से बुलाते थे ।
मुहल्ले में पहले कुछ रहते थे मगर धीमे-धीमे कुछेक रह गए फिर एक । इसके पीछे कोई बाहरी कारण नहीं थे या किसी से कोई समस्या नहीं थी । उनके अपने कारण थे । उनके विस्थापन भी नहीं हुए थे, बस कम होती संख्या के कारण ऐसा हुआ था । कम होती संख्या का कारण वह बहुत हद तक खुद थे ।
पारसी समुदाय संपूर्ण दुनिया का सबसे सुसंस्कृत समुदाय में से एक है । आज इनकी तादाद नाममात्र रह गई है ।
पारसी !
पारसी ने आवेस्ता को नमन किया, अहुरमज्दा पर शीश नवाया और अपनी पूजा पूर्ण की, साथ ही आवाज देनेवाले को आवाज दी - आ रहा हूं मैं ..!
पारसी और वो दोनो दोस्त आपस में पहले घर के प्रांगण फिर बरामदे में बात करते हैं । --फिर बात करते गली में आगे की ओर बढ़ते हैं ।
सुना है कि आप कहीं और जाने के बारे में सोच रहे हैं । ..आप कहीं भी जाइए मगर जड़ों से जुड़े रहिए । काम-ध्ंध करने कौन नहीं बाहर जाता । मगर चिड़िया अपने घोंसले को तो नहीं भूलती ।
आए थे तो तब भी हम बाहर से ही आए थे ।
अब आप बाहर के नहीं हैं ।
सो तो है । आप सबो का प्यार है । इतना कि भूल नहीं सकता ।
क्या पता था कि जरथु्रस्ट के वंशज को अपनी जन्मभूमि और मातृभूमि से तड़ीपार होना पड़ेगा । और एक ऐसे समाज और देश में जगह मिलेगी’ जिसे हम जानते तक नहीं थे ..। - पारसी अपने अतीत वर्तमान की मिमांषा करने लगे । अतीत से वर्तमान तक की परछाइयां उनके मस्तिष्क और दिलो-दिमाग पर तैरने लगीं । इस क्रम में वह सामयिक व्याख्या और निष्कर्ष पर भी पहुंचने लगे - अगर हम तड़ीपार हुए तो इसके लिए अपने और परायों दोनो को दोष नहीं दे सकते । उस वक्त की दुनिया ही ऐसी थी । सभ्यता प्रगति कर रही थी, दुनिया छोटी पड़ रही थी ..सभी अपने इलाकों से निकलकर दूसरे इलाकों पर अतिक्रमण कर रहे थे । इसी सब में साम्राज्यवाद का विस्तारवाद का खेल भी जो कभी क्षेत्राीय स्तर पर था वृहद स्तर पर शुरू हो गया ।
आंखों के सामने अतीत के पन्ने खुल रहे थे - सीमाएं छोटी पड़ने लगी थीं, इसलिए सीमाएं बढ़ने लगी थीं ।
उनके परिचित मित्र महोदय उनकी मिमांषा में शामिल हुए, साथ ही तार्किक अन्वेषण के भाव से पूछ भी लिया -
--मगर और समाज की भांति पारसी समुदाय पर ही सीमित होने की स्थिति क्युं आई !
पारसी की आंखें जो अतीत वर्तमान के बीच गलबहियां कर रही थीं, अचानक परिचित मित्र महोदय की ओर मुड़ गईं । वह सारगर्भित मुस्कान के साथ बोले, मानो इसमे सारा सार छिपा हो ।
--क्योंकि दुनिया में शक्ति का बोलबाला है ज्ञान का नहीं । - उन्होंने एक बार में सारी बात कह दी - अगर अपने अंदर के ज्ञान को जीवित रखना है तो शक्ति का साथ लेना ही होगा ।
इस बीच कुछ अन्य परिचित भी मिल गए । स्वाभाविक रूप से परिचर्चा में वह भी जुड़ गए । बात सहज वार्ता के रूप में बढ़ने लगी ।
ऐसा नहीं है कि एक अहिंसावादी समाज नहीं जी सकता । ..और भी तो जी रहे हैं ।
एक अहिंसावादी समाज तभी तक कायम रह सकता है जबतक कि वह आत्मरक्षा करना जानता है नहीं तो उसका लुप्त होना तय है । - पारसी महोदय ने एक ऐसी बात कही जिसका उतर देना सही मंें थोड़ा या अधिक मुश्किल था, क्योंकि इसका उतर लोगो के नजरिए पर अलग हो सकता था मगर पारसी का कहा एक-एक शब्द शायद अक्षरशः सही था - आप देखिए । आज और कल की दुनिया में जो शक्तिशाली हैं वह सही हों या गलत सुरक्षित हैं और जो शक्तिहीन हैं वह असुरक्षित ।
इसका मतलब यह नहीं कि इस दुनिया में सिर्फ हिंसावादी ही जी रहे हैं । इसका मतलब यह है कि हिंसावादी ही नहीं जी रहे अहिंसावादी भी जी रहे हैं मगर अगर अहिंसावादी आत्मरक्षा में शक्तिशाली नहीं हैं तो फर उनका अस्तित्व धीमे-धीमे विलुप्त होने लगता है ।
यह तो हुई अतिक्रमण या आक्रमण से बचने का नियम । मगर आंतरिक कारण तो रहे होंगे ।
वह अधिक हैं ।
हम आध्ुनिक दुनिया से तालमेल बिठाने में काफी हद तक नाकाम हैं । दुनिया बदल रही है । मगर हम अपनी परंपराओं को जड़ों से पसंद करते हैं । हम उनकी कीमत पर आध्ुनिक दुनिया से जुड़ना पसंद नहीं करते ।
सभी परंपराएं अपने देश और काल के अनुसार बनी होती हैं । आज के दौर में उस समय के नायक होते तो आज के अनुसार नियम बनाते । परंपराएं बनतीं ।
आनेवाले समय में यह परंपराएं भी आवश्यकता के अनुसार अपग्रेडेशन मांगती ।
क्या इंसान ने जब झोंपड़ी में रहना शुरू किया तो उसने जब महल बनाए तो क्या महल में रहना शुरू नहीं किया । यह सब चलता है । हमे नए-पुराने सबको स्वीकारना होता है ।
हां । इसमे मुख्य मसला यह होता है कि हम जो भी करें, वह सबके हित और किसी के अहित में न हो । बस । परंपरा का बेसिक यही है बाकि सब तो कृत्रिम है ।
पारसी ने शायद किसी बात पर पहली बात सहमति जताते हुए पूर्ण-समर्थन दिया था । इसमे वह अपने और अपने समाज की अवस्था से कुछ हद तक चिंतित भी मालूम पड़ता था' अनकही पीड़ा और अनकहा सच .. - हां । सही कहा आपने । हमे सोचना होगा ।।
आपको क्या लगता है, संख्यात्मक स्तर पर सीमित होने में आपके क्या कारण रहे होंगे ।
बाहरी कारण तो अतिक्रमण और आक्रमण ।
पारसी ने उन दोनो की बात का जवाब देते हुए कहा - आंतरिक कारण में हमारा समाज एकाकी समाज है मगर सहदय और सुसंस्कृत । इस समाज को अपनी सुसंस्कृति को बचाए रखने में आनंद आता है । और यह विलय से इसलिए डरता है कि इसकी सुसंस्कृति प्रभावित न हो ।
..और ..।
हमारे जेनेटिक रूल्स् ने हमे काफी हद तक सीमित किया है । संख्यात्मक स्तर पर सीमित होने में एक कारण यह तो है । हम अपनी नस्लों में किसी और का विलय आम तौर पर नहीं कर पाते । अगर होता है तो वह दूसरी नस्ल का हो जाता है ।
HIGHLIGHTS
आप कहते हैं आप जाना चाहते हैं । हम आपको कभी नहीं जाने देंगे ।
मेरे हालात ऐसे हैं ..।
..हालात कैसे भी हों । हम आपको जाने नहीं देंगे ।
--
अगर इस देश में अतिथिदेवो भवः की परंपरा और संस्कृति नहीं होती तो हम पता नहीं कहां गुम हो गए होते ..।
इस देश की संस्कृति बहुत ही महान है !
आपकी भी संस्कृति बहुत महान है पारसी साहब ।
आपका अपना कोई देश नहीं ..मगर जिस समाज और देश में आप गए हैं उस समाज और देश से आपने जितना लिया है उससे अधिक दिया ही है --आप जिस समाज और देश का हिस्सा रहे हैं, आपने वहां लेने से अधिक दिया ही है । आपके समाज ने जो सादगी, अच्छाईयां और सच्चाइयां ..देश-दुनिया को दी हैं ..वह अपने आप में एक महान संस्कृति की मिसाल हैं ।
पारसी किसी भी समाज और देश के लिए पारस हैं !
किसी भी देश-समाज-संस्कृति के लिए
पारसी का पारस हैं --पारसी समाज का पारस हैं !
--
INHONE SABKUCH TO SEEKHA MAGAR SHAAYAD YUDH KALA NA SEEKHA ..NAHI TO APNE HI DESH SE NA BHAAGNA PADA HOTA, KISEE AUR DESH MEI PANAAH NA LENI PADTEE ..
BAAKI KISEE DESH MEI JAATE TO SAMRAAJYAWAAD KE YUG MEI KHAASKAR ..SHAAYAD HAMAAREE PAHCHAAN LUT HO JAATEE ..
WO TO BHALA HO IS DESH KA JISKEE SABHYATA SE UNCHI SANSKRITI HAI ..
ISKE ATITHIDEVO BHAVAH KI SANSKRITI NE HAME BACHA LIYA ..NAHI TO SHAAYAD HUM KAB KA KHATM HO GAE HOTE ..AUR NA SIRF BACHA LIYA BALKI APNA BHI BANA LIYA ..
HUMARA SAMAAJ AUR DHARM TO BACH GAYA ..MAGAR ..SAMASYA KUCH HAMARE DHARM KE REETI RIWAAJON MEI RAHI JISME SAMAY KE ANUSAAR SUDHAAR KI JAROORAT THI ..JO HUM KAR NA SAKE ..AUR AAJ YAH HAALAT/HALAAT HAIN KI HUM SANRAKSHIT JEEWON KI TARAH MANO SANRAKSHIT SAMAAJ KI SHRENI MEI AA GAE HAIN ..!
--
इतनी उन्नत सुसंस्कृत सभ्यता का यंू हो जाना अच्छी बात नहीं । इसके लिए हमे ही प्रयास करने होंगे ।
..जमाने के अनुसार बदलना होगा, हमे नहीं हमारे तौर-तरीकोें को ..।
--
आप जब आए थे तब अतिथि थे, अब आप परिवार हैं !
पहले आप अतिथि थे अब आप परिवार हैं !
**
TO BE CONTINUED
*MAHAKAVI TULSIDAS NE BHI 'AVADHI RAMAYAN' @ 'RAMCHARITMAANAS' KI RACHNA SHUBH MUHURT MEI SARYU NADEE KE TAT PAR AARAMBH KI THI !
*AS A PERSON & AS A ASTROREADER SHUBH MUHURT MEI SHUBH KAARYA KARNE KI MERI BHI KOSHISH RAHTEE HAI*
THE AURA REALISATION FACT
A NATURAL AURA
A ARTIFICIAL AURA
ARUA & FACE VALUE
AURA BANAAM FACE VALUE
CO-ORDINATOR PERSON & TEAM & SYSTEM
*IT IS TOO GOOD TO SAY ANYTHING VIA MEDIA SOURCES BY INDICATIONS; ..BUT IT SHOULD BE IN POSITIVE MANNER
*ANY THING ANY TERM SHOULD BE IN POSITIVE TERM & MANNER
*ISME KOI SANDEH NAHI KI MEDIA SOURCE MEI KAI KAI PRAKAAR KE TATHYA SANKET KE RUP MEI CONFIRM RUP SE AATE HAIN, WO RELATED SHEERASHAK, PROGRAMME, ADVERTISEMENT ..SE ITAR KUCHH KAHNE KI KOSHISH KARTE HAIN ..ARPRATYAKSH YAA PRATYAKSH SANKET DETE HAIN, SAMVAAD KARTE HAIN ..!
*AGAR NAHI TO AAJ ABHII SE DHYAAN DIJIE KAI AISE INPUTS KO JO ADVERTISEMENT ..WAGAIRAH KAM AUR SANKET YA SANDESH ADHIK LAGENGE ..! ..CODING MEI BAAT KARNA KOI AAJ KA NAYA BAAT NAHI HAI, BAS ANDAAJ NAYA HAI ..!
HAIN TAIYYAAR HUM
ADHUREE KAHAANI KISE HAI PASAND
DO YOUR OWN THING
YOUR JOURNEY OUR PASSION
DO WHAT REALY MATTERS, LET THE WORLD WAIT
FLIP THE SCRIPT
HUM KAAGAJ NAHI NEEYAT DEKHTE HAIN
HUM KARKE DIKHATE HAIN
SO ON ---
*FLIP THE SCRIPT ..YAH WAHI SANDESH THA JISNE MERE SHAQ KO YAKEEN MEI BADAL DIYA KI KAHIN NA KAHIN GADBAD HAI, ..WO BHI BADE STAR PAR ..!
*FLIP THE SCRIPT TABHI SAMBHAV HOTA HAI JAB BAN RAHI RACHNA KA KISEE BHI RUP MEI ANYATRA UPAYOG NA HO
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https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2020/05/avatar-purush.html?m=0
[ HINDI ]
MYTH SCIENCE
https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2020/04/coronavirus.html?m=0
[ HINDI ]
MYTH SCIENCE
https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2020/04/coronavirus-episode-2.html?m=0
[ HINDI ]
MYTH SCIENCE
[ ENGLISH ]
TITLE : CORONA THOUGHT
MYTH SCIENCE
https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2020/05/coronavirus-thought-1.html?m=0
[ ENGLISH ]
TITLE : CORONA THOUGHT 2
MYTH SCIENCE
https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2020/05/coronavirus-thought-2.html?m=0
अमित कुमार ‘नयनन’
IN YUGPATRA MONTHLY @ 2011 JANUARY PUBLISHED
मैं कहां गलत था ?
‘फादर !’
..लोग फादर को प्रणाम कर आगे बढ़े जा रहे थे । फादर के सामने लंबी लाइन लगी थी, जिसके पीछे एक औरत अपने बच्चे के साथ भीड़ के साथ-साथ उस तक पहंुचने का प्रयास कर रही थी और इस प्रयास में वह फादर को देखने का प्रयास भी कर रही थी । मगर भीड़ की अध्किता के कारण ऐसा हो नहीं पा रहा था । अंततः वह अपने बच्चे के साथ भीड़ के ठेलम-ठेल भरी रौ में होते हुए फादर के पास तक पहंुच गई । भीड़ की गति का ही यह परिणाम था कि उसे फादर तक पहंुचकर भी उसके चेहरे नहीं बल्कि पैरों के दर्शन हुए व वह स्वतः उस ओर झुकती चली गई । उसने जब सिर उठाकर फादर के चेहरे की ओर देखा तो उसकी आंखें चैंक व पथरा-सी गईं । फादर ने भी जो कि भीड़ की रौ में वह भी उसका चेहरा नहीं देख पाया था, जब उसने उस औरत को उठी नजरों के साथ देखा तो फादर की हालत भी कमोबेश उस जैसी ही हो गई । फादर का हाथ जो आशीर्वाद देने के लिए हवा में उठा था, जहां का तहां रह गया ..उसकी आंखें भी क्षण भर को पथरा-सी गईं । उस औरत की आंखों में कोई चमक या आंसू आते इससे पहले वह भीड़ के साथ खींचती हुई आगे की ओर चली गई । फादर की नजरें उससे हटतीं कि तभी इससे पहले उस औरत का बच्चा फादर को अभिवादन करता हुआ उसके आशीर्वाद की प्रतिक्षा किए बिना तेजी के साथ उस औरत के पीछे उसके साथ-साथ आगे की ओर निकल गया । फादर का हाथ हवा के शून्य में अब भी जहां का तहां था ..। ..भीड़ अब भी किसी रेलगाड़ी के डब्बे की तरह ठेलम-ठेल गति से उसकी ओर बढ़ी आ और जा रही थी ।
भीड़ छंट चुकी थी । चर्च में शांत्ति का माहौल था । वही औरत अपने बच्चे के साथ कंफेशन बाॅक्स के सामने खड़ी थी । वह कंफेशन बाॅक्स के पीछे खड़े फादर से कहती है - ..फादर ! मैं आपसे कंफेशन चाहती हंू ..।
फादर बाॅक्स में आ जाते हैं - ..पूछो ।
तुमने ऐसा क्यों किया ? - औरत कंफेशन बाॅक्स के सामने बैठ जाती है । औरत के प्रश्न पर क्षणिक मौन, फर फादर के आवाज मंे गंभीर शांति उभरती है - ..कोई राह नहीं थी ।
मैं तुम्हारे बच्चे की मां बननेवाली थी ।
वह दंगे का दौर था, ..तुम मुसलमान थी ।
तुम हिन्दू ..! ..यह मेरी या हमारे बच्चे की गलती नहीं थी । यह तुम्हारी गलती थी । - उस औरत की बातें फादर को अतीत की ओर ले जा रही थीं - तुमने एक साथ दो-दो लोगो की जिंदगी बर्बाद की ..। ..और अब यहां देवता बने बैठे हो ।
फादर शांत बाॅक्स में वक्त की खामोशी महसूस करता है । उस औरत की आवाज से खामोशी टूट जाती है - मैं चाहंू तो ..।
..तो तुम मेरा देवत्व छीन सकती हो । इस भीड़ का विश्वास इसकी श्र(ा तोड़ सकती हो । तुम चाहो तो ..। - फादर एक प्रश्न एक उत्तर के साथ पैसला उसपर छोड़ता है ।
..बस यही सोचकर । आज भी हमारे बच्चे को पिता के नाम की तलाश है । तुमने ऐसा क्यों किया ?
..तुम्हे लगता है, मैं गलत हंू ?
तुम कहना चाहते हो, तुम सही हो ।
मैंने वही किया जो उस समय सबसे जरूरी था ।
..इसलिए अपने बच्चे को नाम देने की बजाय ..।
..भाग गया । क्योंकि तुम्हे अपनाने का मतलब था, अपने और तुम्हारे परिवार और समाज के कई लोगो को दंगे की भेंट चढ़ा देना । ..कोई जरूरी नहीं था कि उसके बाद हम, तुम, हमारा बच्चा या तुम्हारा परिवार बच जाते ..या तुम्हारा या मेरा परिवार हमे छोड़ देते - ..दंगे का यही सच है । मैंने अपनी, तुम्हारी, इस बच्चे की, हम दोनो परिवार की, समाज के कई लोगो की जिंदगी बचाई । मैं तुमसे, समाज और परिवार से भागा ..मगर खुद से कहां भागता ? ..बाद में दंगे में तुम्हारा और मेरा परिवार कहां गया न तुम्हे मालूम न मुझे, ..न तुम्हारा पता न मेरा ..।
- दोनो के जेहन में अतीत की परछाइयों ताजा हो गईं । फादर का लहजा एकसमान शांत गंभीर बना रहा - फ्तुमसे वफा न निभाने की खुद को सजा दी, किसी का हो न पाया ..देवता बना आजतक विरह की आग में झुलस रहा हंू ।
उस औरत के चेहरे पर समय के दौर से उपजी हृदय के अंदर की पीड़ा आक्रोश झलकता है - तुम बुजदिल थे, ..जिंदगी से लड़ ही नहीं सके ।
ऐसा तुम समझ सकती हो कि मैं अपनी कायरता को अपने शब्दों में छुपाने की कोशिश कर रहा हंू ..। - फादर के शब्द में शांत छायावाद झलकता है - मैं अपनी महानता के साए में न अपना चरित्र, न व्यक्तित्त्व और न ही सच छुपाने की कोशिश कर रहा हंू ..मगर सच तो यह है कि यह महानता मेरी कायरता और मेरी विवशता दोनो बन चुकी है ।
औरत के चेहरे के भाव उसकी बात से असहमति जताते हैं । वह उसकी बात को नजरअंदाज करने के अंदाज में विगत काल से बात शुरू करती है ।
तुम यहां कैसे पहंुचे ?
इस प्रश्न का उत्तर उसी अतीत में है ..। ..मैं जब दंगे से बचता-बचाता भागता हुआ यहां आया, फादर ने मुझे शरण दी । मैं उस वक्त राम बनता या रहीम दंगे की आग में मारा जाता ..मैं डैविड बन गया । ..उस वक्त देश से ईसाईयत खत्म होने को थी, सो पफादर का इस देश में कोई नहीं रह गया था ..मगर जिस देश और चर्च में उन्होने जिंदगी गुजारी, वहां से जाने का उनका मन नहीं कर रहा था । वे देश छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे, ..मगर उन्हे जाना पड़ा । फादर ने मुझे अपना बेटा बना लिया था, इसलिए इस चर्च की कमान मुझे मिल गई ..और मैं यहां उनका उत्तराध्किारी बन गया । मैं इस चर्च का फादर बन गया । फादर का व्यक्तित्त्व उंचा था, मुझे भी सम्मान मिला ..हिंदू-मुस्लिम दंगे की आग में ईसाईयत के प्रति उपजी कड़वाहट को कम कर दिया और मैं इनका और इस स्थान का प्रिय बन गया । मैं एक व्यक्ति हंू मगर मैं एक व्यक्तित्त्व ढो रहा हंू । मैं एक चरित्र हंू, और कुछ नहीं ..।
औरत की खामोशी व चेहरे का भाव असहमति को इंगित करता है ।
..सच तो यह है कि इंसान को उसके कर्मों से जाना जाता है । ..हिंदू में पुजारी, मुस्लिम में मौलवी, ईसाई में पादरी ..क्या फर्क है ? - फादर स्वयं को एक चरित्र एक प्रश्न एक पहेली के रूप में प्रस्तुत करते हुए स्वतः भाव से स्वयं ही उत्तर देता है - मैं फादर के रूप में कुछ अलग नहीं कर रहा । मैं वही कर रहा हंू, जो पंडित और मौलवी वगैरह करते, ..या उस वक्त उन्हें करना चाहिए था । ..या वे कर भी रहे थे तो भीड़ उनके साथ नहीं थी । भीड़ उसी की सुनती है, जिसके साथ होती है ..वह सही हो या गलत, यह भीड़ का सच है ! ...इसलिए भीड़ कभी-कभी खुद को गुमराह भी कर सकती है । दंगा उसका एक वैसा ही सच है ! - फादर और औरत की आंखों में दंगों की विगत छाया का स्मृत्ति-भाव झलकता है - ..यह दंगे की कड़वाहट का फल ही था कि इनसे टूटी आस्था और भीड़ इस ओर चली आई । मैं जो खुद दंगे की त्रास्दी का शिकार हंू, इनके विश्वास को ठेस नहीं पहंुचा सकता था । मुझे अन्य ध्र्म के ध्र्म-पुजारियों या लोगो की तरह किसी ध्र्म से भेद नहीं था न है, मगर यह वक्त का खेल ही है कि एक भीड़ अपने लिए एक सुकूनदायक चरित्र तलाशती एक पत्थर को देवता बना बैठी ..और वह पत्थर का देवता आजतक इसलिए भी चुप है कि भीड़ किसी और चरित्र की तलाश में गुमराह न हो जाए ।
..समय बदला और दंगे की कड़वाहट कम हुई तो दासता की टीस भी ..। ..मगर तबतक मैं इनके लिए एक चरित्र एक देवता बन चुका था, ..एक पत्थर का देवता । - फादर स्वयं को अतीत और वर्तन के प्रश्न की तरह महसूस करते हुए अतीत से वर्त न की ओर आता है -
मैं इनसे दूर भागना चाहता था मगर मैंने इनसे जितना दूर भागने की कोशिश की ..ये उतना ही मेरे पास चले आए । ..मैं इनके श्र(ा और विश्वास को कैसे ठुकरा सकता था ? ..मैं अपने आपसे भाग सकता था, इनसे नहीं ..। ..और सच तो यह भी है कि इनके सिवा उन दंगों के बाद मेरा अपना था ही कौन ? ..फादर तो छोड़कर जा ही चुके थे ।
मैं भीड़ के साथ खड़ा नहीं होना चाहता था, मगर भीड़ मेरे साथ खड़ा होना चाहती थी । अगर आज मैं भाग जाउं, इस भीड़ का विश्वास टूट जाएगा ..। ..अगर आज मैं मर जाउं, भीड़ मर जाएगी ..। - फादर के सांसों में गहराई आती है, जिससे उसका कंधा उंचा हो जाता है । मानो वह अपने कंध्े पर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी का बोझ उठा रहा हो - फ्मैं इनके विश्वास से जिंदा हंू, और मैं इससे विश्वासघात नहीं कर सकता ..। ..और अब मुझे मुक्ति तब ही मिलेगी, जब यह मुझे मुक्त करेगी ..इनका विश्वास मुझे मुक्त करेगा ।
औरत के चेहरे पर एक उपहासित छाया उभरती है ।
तुम एक झूठ ढो रहे हो ।
मैं एक सच ढो रहा हंू !
औरत स्थिर भाव से शांत दृढ़ स्वर में आत्म-निर्णय सुनाने के अंदाज में कहती है ।
तुम्हारा फैसला कितना भी सही हो, ..तुम गलत थे !
..तुमने सही कहा । मैं गलत था, ..मगर मेरा फैसला गलत नहीं था ।
फादर क्षणिक शांति के बाद शांत लहजे में जवाब देता है ।
मैं तुम्हारा, अपने बच्चे का, अपने और तुम्हारे परिवार का, अपने समाज और देश का गुनहगार हंू - ..मगर सबसे पहले मैं अपना गुनहगार हंू ! ..मुझे सजा मिलनी ही चाहिए ।
फादर के शब्दों में एक छायावादी दृढ़ता झलकती है ।
मैं चाहता तो अपनी दुनिया बना सकता था, अपनी जिंदगी बसा सकता था, अपनी खुशियां पा सकता था ..मगर जिस तरह का माहौल था, और जिस तरह हमारे-तुम्हारे परिवार ने कीमत चुकाई उसी तरह हमारे-तुम्हारे समाज और देश को इसकी कीमत चुकानी पड़ती ! ..क्या यह सही होता ? - फादर के शब्दों में एक अर्थपूर्ण अव्यक्त पीड़ा झलकती है - तब मैं सही था, तुम सही थी ..वक्त गलत था आज वक्त सही है ..मगर आज हम और तुम गलत हैं । अगर इस गलती को सही करते हैं तो शायद उससे भी ज्यादा गलत ..।
फादर ने एक क्षण की खामोशी के बाद बात पूर्ण की ।
मैं मानता हंू, मैं गलत था ..मगर मैं कहां गलत था ?
औरत किसी बुत की तरह उसकी बात सुनती रहती है ।
तुम अपनी जिंदगी को अपनी जिंदगी कह सकती हो, अपने बच्चे को अपना बच्चा कह सकती हो, मुझे भी अपना कह सकती हो ..मगर’ मैं तो वह भी नहीं कर सकता । .......तुम्हारे पास तो जीने का सहारा बच्चा भी है, मेरे पास तो वह भी नहीं है अगर आज है भी तो उसे अपना नहीं कह सकता .., ..तुम पास हो तो तुम्हे अपना नहीं कह सकता ..। ..क्या किसी इंसान को एक गलती की इतनी सजा कम है ?
फादर के शब्द उस औरत की कानों में यंू पड़ रहे थे, जैसे किसी स्थिर मूरत के कानों में कोई जाकर कुछ कहता है ।
अगर इससे भी बड़ी सजा कोई इसके लिए है तो आज इस देवता को दे ही दो । ताकि इस देवता को आज अपने प्यार, अपनी जिंदगी, अपने देवत्व से मुक्ति मिल ही जाए ..!
औरत के चेहरे पर समय का शून्य छा जाता है, मानो वह अपने साथ हुए जुल्मों के लिए किसे गुनहगार ठहराए ?
मैं दंगे में पत्थर बन चुका था । इस पत्थर को लोगो ने देवता बना दिया । तुम चाहो तो इसे फर से लोगो की नजर में पत्थर बना सकती हो ।
औरत किसी प्रश्न की तरह उसी खामोश अंदाज में पूर्ववत रहती है ।
मैं जानता हंू, मैं कुछ नहीं हंू । एक विपरीत स्थिति में इस सभी धर्मों की भीड़ की एक आश् हंू । मेरे पास हर जात् और धर्म के लोग आते हैं, क्योंकि मुझे उनसे भेद नहीं है । मैं नहीं कहता, किसी पंडित-मौलवी वगैरह में यह भेद होगा । ..मगर दंगे की कड़वाहट अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है । ऐसे लोग विभिन्न चरित्रों में अपनी प्यास बुझा रहे हैं । मैं उनके लिए एक पत्थर, एक चरित्र, एक देवता हंू ..। ..तुम मुझे फिर से पत्थर बना सकती हो ..!
औरत खामोश बुत की तरह उसी तरह मौन रहती है । उसके खामोश प्रश्न, उत्तर व भाव को महसूर करते हुए फादर की नजर बाॅक्स के झरोखे से होकर उसके पीछे कुछ दूर खड़े बच्चे पर ठहरती है । वह पूछता है ।
..यह बच्चा ?
..तुम्हारा नहीं है ।
इस बच्चे का पिता ..।
सभी जानते हैं, ..एक दंगे में मारा जा चुका है !
सभी जानते हैं ..! - फादर के होठो व चेहरे पर एक निःश्वास छाया उभरती है । फादर के होंठ कुछ पूछने को खुलते हैं, औरत अवसर नहीं देती ।
मुझे जो जानना था, मैंने जान लिया है । - औरत शांत स्थिर भाव से उसी पूर्ववत् अंदाज में रहते हुए अतीत और वर्तमान की किसी अघोषित प्रश्नोत्तरी में अपने जीवन को महसूस करते हुए आत्म-निर्णय सुनाने के अंदाज में जवाब देती है, मानो कोई फैसला सुना रही हो ।
मुझे आपसे मिलने से पहले महसूस होता था फादर, इस बच्चे को एक पिता की जरूरत है ..मगर अब महसूस होता है कि इसे किसी पिता की जरूरत नहीं । इसे पिता की नहीं फादर की जरूरत है । ..मैं एक बच्चे के पिता के लिए किसी भीड़ का फादर नहीं छीन सकती !
..औरत कंफेशन बाॅक्स के सामने अपनी जगह से उठकर खड़ी हो जाती है, और अपने बच्चे को लेकर चर्च से बाहर जाने को वापस मुड़ जाती है । बाॅक्स के पीछे बैठे फादर के चेहरे पर एक अजीब-सी शांति और खामोशी छा जाती है । वह बाॅक्स के एक होल से बाहर की ओर झांकता है देखता क्या है कि वह औरत अपने बच्चे के साथ चर्च से बाहर की ओर जा रही है ..।
अमित कुमार नयनन
रास-लीला 2500
2500 ई0 ! इस वक्त तक हम बहुत आगे जा चुके हैं । बदलते समय व दौर के साथ कृष्ण और राधा भी माॅडीपफाई हो गए हैं ।
कृष्ण अपनी राधा के साथ होली मनाने के लिए टाइम मशीन का बटन दबा मैसेज पास कर रहे हैं । राधा है कि उनसे काल के कभी इस हिस्से तो कभी उस हिस्से में लुकती-छिपती भागती पिफर रही है ।
‘हरे रामा हरे कृष्णा’ का चतुर्दिक स्वर गंुजायमान है । इस स्वर में ‘राधे-राधे..बरसानेवाले आ गए’ का स्वर शामिल हो जाता है ।
राधा कृष्ण से भागते हुए बीसवीं सदी में पहंुच जाती है तो कृष्ण अपनी आवाज में उसे भ्वायस कमांड मैसेज पास करते हैं ।
‘राध्े ! आवारा, अनाड़ी, छलिया श्री 420 ..बीसवीं सदी में मुझे न जाने किन-किन उपाध्यिों से नवाजा गया इसलिए आज भी शो मैन राजकपूर की होली सबको याद है । वो इंडस्टी का शो मैन और मैं टाइम का ..।’
कृष्ण जोश में कुछ हद तक अपना ही महिमामंडन करने लगते हैं । और अपनी टाइमपास साॅरी टाइम मशीन बटन से बीसवीं-इक्कीसवीं सदी का डिस्प्ले दिखाने लगते हैं ।
‘बीसवीं सदी मे मेरे शिष्यगण जब ..।’
‘शिष्यगण !’ - राधा कुछ हद तक अकचका जाती है ।
‘हां ! मेरे शिष्यगण जब आंखों में गोगलस् लगाकर, शरीर पर टी-शर्ट चढ़ाकर और जींस पैंट पहनकर सीटी बजाते जब अपनी राधा की खोज में निकलते थे तो सारी गोपिकाएं मारे शर्म के घर में छिप जाती थीं ..।’ - कृष्ण उत्साह से बखान करने क ेस्टाइल में अंदाज-ए-ब्यां करते हैं - ‘..मगर अब जमाना बदल गया है । आज के आध्ुनिक दौर में जब महिलाएं पुरूषों से कंधे में कंधा मिलाकर चल रही हैं और किसी भी बात में खुद को पुरूषों से कम नहीं समझती हैं, वह भी यानि आज की राधा गोगलस्् लगाकर, टी-शर्ट चढ़ाकर, जींस पैंट पहनकर सीटी बजाते अपने कृष्ण की खोज में मिल जाएंगी ।’
राधा सकपका जाती है - ‘हाए कृष्ण ! ये क्या कह रहे हो ? तुम्हारा दिमाग तो सही है ? क्या आज की राधा ऐसी है ?’
कृष्ण माॅडीफाई स्टाइल व पोज में अचानक स्टाइलिश अंदाज में जोर देकर कहते हैं - ‘राधा ! तुम किस दुनिया में जी रही हो ? अब कृष्ण वो कृष्ण नहीं राधा वो राधा नहीं है । हमने होली में होली खेली है, इन्होंने बिन होली होली खेली है ..मानो बिन मौसम बरसात । इनकी हर दिन होली हर रात दीवाली है ।’ - कृष्ण राधा को समझाते हैं - ‘आज के राधा-कृष्ण के प्रेम के मायने अलग हैं !’
‘हाए राम !’ - राधा दांतों तले अंगुली दबा लेती है ।
‘हाए कृष्ण कहो राधा ! ..कम-से-कम आज के दिन तो हाए राम कहने का काम सीताजी पर छोड़ दो ।’ - कृष्ण की शैली व अंदाज अब भी वही है - ‘आज की राधा व गोपियां एडवांस हो गई हैं । वह भी माॅडीलाइजेशन अंदाज मंे पुरूषोें से कंध्े में कंध मिलाकर, बांहों में बांहें डाल, कमर में हाथ डाल खुले आम कत्ल का फरमान ..मतलब खुले आम इश्क फरमा रही हैं - इश्क पर जोर नहीं ।’ - कृष्ण कुछ उंचे जोश भरे अंदाज मंे सुरमयी हो जाते हैं, तो राधा के मुख से एक ही शब्द निकलता है - ‘नहीं ...।’
‘आज के दौर में मेरे शिष्य कृष्ण मुरारी और उनकी गणिकाएं राधा-रूक्मिणी वगैरह सभी स्टाइलों में पारंगत हैं ।’
राधा कृष्ण की आध्ुनिक शैली देख घबरा जाती हैं - ‘हाए ! मेरे कृष्ण को क्या हो गया है ?’
‘कृष्ण को कुछ नहीं हुआ । ..समय बदल गया है राध्े !’ - कृष्ण अपने सुर में हैं, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता - ‘..बदलते दौर के साथ गोपियां भी माॅडीफाई हो गई हैं । अब कृष्ण भी उन्हीं से रास रचाते हैं ।’
‘हाए-हाए ! मेरे कृष्ण को क्या हो गया है ?’ - राधा हक्का-बक्का भौंचक्का-सा हो कृष्ण का चेहरा देखती है - ‘कृष्ण ! तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ?’
कृष्ण राधा के साथ डांडिया खेलने की कोशिश करते हैं तो वर्तमान समय का हिप-हाॅप स्टाइल उनपर हावी हो जाता है । कृष्ण के कदमताल डांडिया स्टाइल से भटककर उछल-कूद करने लगते हैं मानो पाॅप म्युजिक पर बे्रक डांस कर रहे हों । राधा का डांडिया स्टेप गड़बड़ा जाता है।
‘कृष्ण ! तुम डांडिया की जगह तांडव क्यों कर रहे हो ?’
‘शास्त्रीय और पाॅप में यही फर्क है राध्े । ..पाॅप से भी उपर है ब्रेक डांस ..जिसमे इतने सारे ब्रेक होते हैं कि दिमाग का ब्रेक फल हो जाता है । सुर टूटे ना टूटे, राग जुटे न जुटेे ..मंच ब्रेक कर जाता है और इसी में ब्रेक टाइम हो जाता है ।’
‘कृष्ण ! ..लगता है तुम्हे चढ गई है ।’
‘..कौन किसपर चढ गई है ?’
‘हे भगवान ! मेरे कृष्ण को क्या हो गया है ?’
‘राधे ..मेरी आधे ! ..क्या तुम जानती हो, मैं आधुनिक लवगुरू और तुम आधुनिक लवगुरूआइन हो । मैं हूं लवगुरू, बोलो कहां से करूं शुरू ..?’
‘कृष्ण ! ..तुम द्वापर से लेकर आजतक नहीं सुधरे ।’
‘राधे ! ..भला सुधरना कौन चाहता है ? ..'Constituation of Love' में राधा-कृष्ण नाम अमर है - हमारा प्रेम अमर प्रेम है !’
राधा कृष्ण का डायलागबाजी भरा अंदाज देखती रहती हैं ।
‘मैं तुम्हें अपना प्यार टाइम मशीन के जरिए फलाइंग किस् कर रहा हंू, क्योंकि मैं तुम्हें मिस् कर रहा हूं ..।’ - कृष्ण टाइम मशीन का उल्टा-सीधा बटन दबाते हैं - ‘..इसलिए 2500 ई0 के कृष्ण से द्वापर की राधा को ..।’
‘बस करो कृष्ण ! ..बस । अब सहा नहीं जाता ।’
तभी ‘कृष्ण मध्ुवन में गोपियों संग नाचे, राधा कैसे न जले’ का संगीत कहीं से चलता है, व सुनाई देता है ।
‘तुम घबराओ मत राधा । विज्ञान ने आज बहुत तरक्की कर ली है । तुम्हें डिवाइडेशन पंसद नहीं ..कोई बात नहीं, ..डाॅन्ट वरी ..।’ - कृष्ण फिकर नाॅट स्टाइल मे कहते हैं - ‘मैैं कृष्ण हंू ! एक ही समय में कई जगहों पर संपूर्ण रह सकता हंू, ..तुम्हारे पास भी संपूर्ण ही हंू । यू मे चेक इट ।’
‘कृष्ण ! ये तुम क्या बहकी-बहकी बातें कर रहे हो ?’
राधा की बात का कृष्ण पर कोई असर नहीं पड़ता । वह अपने ही सुर व अंदाज में बकते जाते हैं ‘राधे ! क्या तुम जानती हो कि हमारे लव वर्ड सुन कितने लव बर्ड तैयार हो चुके हैं और दुनिया के हर भाग में आशिकों की फौज का प्रतिनिध्त्वि कर रहे हैं ।’ - कृष्ण कृष्ण-लीला शैली में सुर अलापते हैं - ‘किसी का प्यार फोटोजेनिक होता है, किसी का हाइजेनिक ..हमारा प्यार सार्वजनिक है - आॅल टाइम सार्वजनिक ।’
‘हाए ! ये मैं क्या सुन रही हंू ?’
‘राधे ..मेरी आधे । याद करो द्वापर में प्रेम की वो रास-लीला, पिफर समय बदला और प्रेम गली-नुक्कड़-चैराहों से लेकर पार्क-स्कूल-काॅलेजों से होकर बस, रेल और वायुयान में होने लगा ..ओर अब यह टाइम मशीन के जरिए भी होने लगा है । आप एक समय काल में बैठ दूसरे समय काल के लोगो से प्यार कर सकते हैं ।’ - कृष्ण बंपरवाद शैली व जोशीले अंदाज में कहते हैं - ‘बोलो राध्े ! ..किस स्टाइल का प्यार चाहती हो, किस स्टाइल में तुमसे होली खेलूं ? टाइम मशीन का कौन-सा बटन दबाउं ? तुम जैसा चाहोगी, कृष्ण तुमसे उसी समय की उसी स्टाइल की होली खेलेगा । कृष्ण हाजिर है !’
राधा कृष्ण की सारी बात सुन स्थिर होकर कहती है ।
‘कृष्ण ! मैं नहीं जानती कि समय और परिस्थिति के अनुसार कृष्ण और राधा की कितनी परिभाषाएं बदल गई हैं । मैं बस इतना जानती हंू कि न मैं बदली हंू न तुम ..कृष्ण और राधा आज भी वही हैं । ..तुम आज भी मुझसे द्वापर की वही होली खेलो जो तुमने कभी मुझसे वृन्दावन मे खेली थी उसी पोज उसी स्टाइल में ..। ..जिसकी ध्ुन और ताल पर आज भी दुनिया थिरकती है । जिसकी बांसुरी की ध्ुन पर आज भी गोपियां और रूक्मिणियां मदमस्त हैं । कृष्ण ! मेरे कृष्ण । तुम मुझसे वही होली खेलो ।’ - राधा पुनः कहती है - ‘कृष्ण ! तुम भी वही हो, आज राधा भी वही है ..इसलिए हमारा प्रेम अमर है - राधाकृष्ण !’
कृष्ण राधा की बात सुन मुस्कुरा देते हैं ।
‘मैं तो तुम्हे छेड़ रहा था राधे !’
कृष्ण टाइम मशीन, लैपटाॅप, मोबाइल वगैरह को साइड कर पिचकारी में रंग भर राधा पर रंग उड़ेल देते हैं और बार-बार रंग उड़ेलते हुए रंग से बचने की कोशिश करती राधा को भीगोते ही जाते हैं । पार्श्व से ‘होली आई रे कन्हाई ..’ का मध्ुर संगीत चल रहा है ।। होली आई रे कन्हाई ---