अमित कुमार ‘नयनन’
IN YUGPATRA MONTHLY @ 2011 JANUARY PUBLISHED
मैं कहां गलत था ?
‘फादर !’
..लोग फादर को प्रणाम कर आगे बढ़े जा रहे थे । फादर के सामने लंबी लाइन लगी थी, जिसके पीछे एक औरत अपने बच्चे के साथ भीड़ के साथ-साथ उस तक पहंुचने का प्रयास कर रही थी और इस प्रयास में वह फादर को देखने का प्रयास भी कर रही थी । मगर भीड़ की अध्किता के कारण ऐसा हो नहीं पा रहा था । अंततः वह अपने बच्चे के साथ भीड़ के ठेलम-ठेल भरी रौ में होते हुए फादर के पास तक पहंुच गई । भीड़ की गति का ही यह परिणाम था कि उसे फादर तक पहंुचकर भी उसके चेहरे नहीं बल्कि पैरों के दर्शन हुए व वह स्वतः उस ओर झुकती चली गई । उसने जब सिर उठाकर फादर के चेहरे की ओर देखा तो उसकी आंखें चैंक व पथरा-सी गईं । फादर ने भी जो कि भीड़ की रौ में वह भी उसका चेहरा नहीं देख पाया था, जब उसने उस औरत को उठी नजरों के साथ देखा तो फादर की हालत भी कमोबेश उस जैसी ही हो गई । फादर का हाथ जो आशीर्वाद देने के लिए हवा में उठा था, जहां का तहां रह गया ..उसकी आंखें भी क्षण भर को पथरा-सी गईं । उस औरत की आंखों में कोई चमक या आंसू आते इससे पहले वह भीड़ के साथ खींचती हुई आगे की ओर चली गई । फादर की नजरें उससे हटतीं कि तभी इससे पहले उस औरत का बच्चा फादर को अभिवादन करता हुआ उसके आशीर्वाद की प्रतिक्षा किए बिना तेजी के साथ उस औरत के पीछे उसके साथ-साथ आगे की ओर निकल गया । फादर का हाथ हवा के शून्य में अब भी जहां का तहां था ..। ..भीड़ अब भी किसी रेलगाड़ी के डब्बे की तरह ठेलम-ठेल गति से उसकी ओर बढ़ी आ और जा रही थी ।
भीड़ छंट चुकी थी । चर्च में शांत्ति का माहौल था । वही औरत अपने बच्चे के साथ कंफेशन बाॅक्स के सामने खड़ी थी । वह कंफेशन बाॅक्स के पीछे खड़े फादर से कहती है - ..फादर ! मैं आपसे कंफेशन चाहती हंू ..।
फादर बाॅक्स में आ जाते हैं - ..पूछो ।
तुमने ऐसा क्यों किया ? - औरत कंफेशन बाॅक्स के सामने बैठ जाती है । औरत के प्रश्न पर क्षणिक मौन, फर फादर के आवाज मंे गंभीर शांति उभरती है - ..कोई राह नहीं थी ।
मैं तुम्हारे बच्चे की मां बननेवाली थी ।
वह दंगे का दौर था, ..तुम मुसलमान थी ।
तुम हिन्दू ..! ..यह मेरी या हमारे बच्चे की गलती नहीं थी । यह तुम्हारी गलती थी । - उस औरत की बातें फादर को अतीत की ओर ले जा रही थीं - तुमने एक साथ दो-दो लोगो की जिंदगी बर्बाद की ..। ..और अब यहां देवता बने बैठे हो ।
फादर शांत बाॅक्स में वक्त की खामोशी महसूस करता है । उस औरत की आवाज से खामोशी टूट जाती है - मैं चाहंू तो ..।
..तो तुम मेरा देवत्व छीन सकती हो । इस भीड़ का विश्वास इसकी श्र(ा तोड़ सकती हो । तुम चाहो तो ..। - फादर एक प्रश्न एक उत्तर के साथ पैसला उसपर छोड़ता है ।
..बस यही सोचकर । आज भी हमारे बच्चे को पिता के नाम की तलाश है । तुमने ऐसा क्यों किया ?
..तुम्हे लगता है, मैं गलत हंू ?
तुम कहना चाहते हो, तुम सही हो ।
मैंने वही किया जो उस समय सबसे जरूरी था ।
..इसलिए अपने बच्चे को नाम देने की बजाय ..।
..भाग गया । क्योंकि तुम्हे अपनाने का मतलब था, अपने और तुम्हारे परिवार और समाज के कई लोगो को दंगे की भेंट चढ़ा देना । ..कोई जरूरी नहीं था कि उसके बाद हम, तुम, हमारा बच्चा या तुम्हारा परिवार बच जाते ..या तुम्हारा या मेरा परिवार हमे छोड़ देते - ..दंगे का यही सच है । मैंने अपनी, तुम्हारी, इस बच्चे की, हम दोनो परिवार की, समाज के कई लोगो की जिंदगी बचाई । मैं तुमसे, समाज और परिवार से भागा ..मगर खुद से कहां भागता ? ..बाद में दंगे में तुम्हारा और मेरा परिवार कहां गया न तुम्हे मालूम न मुझे, ..न तुम्हारा पता न मेरा ..।
- दोनो के जेहन में अतीत की परछाइयों ताजा हो गईं । फादर का लहजा एकसमान शांत गंभीर बना रहा - फ्तुमसे वफा न निभाने की खुद को सजा दी, किसी का हो न पाया ..देवता बना आजतक विरह की आग में झुलस रहा हंू ।
उस औरत के चेहरे पर समय के दौर से उपजी हृदय के अंदर की पीड़ा आक्रोश झलकता है - तुम बुजदिल थे, ..जिंदगी से लड़ ही नहीं सके ।
ऐसा तुम समझ सकती हो कि मैं अपनी कायरता को अपने शब्दों में छुपाने की कोशिश कर रहा हंू ..। - फादर के शब्द में शांत छायावाद झलकता है - मैं अपनी महानता के साए में न अपना चरित्र, न व्यक्तित्त्व और न ही सच छुपाने की कोशिश कर रहा हंू ..मगर सच तो यह है कि यह महानता मेरी कायरता और मेरी विवशता दोनो बन चुकी है ।
औरत के चेहरे के भाव उसकी बात से असहमति जताते हैं । वह उसकी बात को नजरअंदाज करने के अंदाज में विगत काल से बात शुरू करती है ।
तुम यहां कैसे पहंुचे ?
इस प्रश्न का उत्तर उसी अतीत में है ..। ..मैं जब दंगे से बचता-बचाता भागता हुआ यहां आया, फादर ने मुझे शरण दी । मैं उस वक्त राम बनता या रहीम दंगे की आग में मारा जाता ..मैं डैविड बन गया । ..उस वक्त देश से ईसाईयत खत्म होने को थी, सो पफादर का इस देश में कोई नहीं रह गया था ..मगर जिस देश और चर्च में उन्होने जिंदगी गुजारी, वहां से जाने का उनका मन नहीं कर रहा था । वे देश छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे, ..मगर उन्हे जाना पड़ा । फादर ने मुझे अपना बेटा बना लिया था, इसलिए इस चर्च की कमान मुझे मिल गई ..और मैं यहां उनका उत्तराध्किारी बन गया । मैं इस चर्च का फादर बन गया । फादर का व्यक्तित्त्व उंचा था, मुझे भी सम्मान मिला ..हिंदू-मुस्लिम दंगे की आग में ईसाईयत के प्रति उपजी कड़वाहट को कम कर दिया और मैं इनका और इस स्थान का प्रिय बन गया । मैं एक व्यक्ति हंू मगर मैं एक व्यक्तित्त्व ढो रहा हंू । मैं एक चरित्र हंू, और कुछ नहीं ..।
औरत की खामोशी व चेहरे का भाव असहमति को इंगित करता है ।
..सच तो यह है कि इंसान को उसके कर्मों से जाना जाता है । ..हिंदू में पुजारी, मुस्लिम में मौलवी, ईसाई में पादरी ..क्या फर्क है ? - फादर स्वयं को एक चरित्र एक प्रश्न एक पहेली के रूप में प्रस्तुत करते हुए स्वतः भाव से स्वयं ही उत्तर देता है - मैं फादर के रूप में कुछ अलग नहीं कर रहा । मैं वही कर रहा हंू, जो पंडित और मौलवी वगैरह करते, ..या उस वक्त उन्हें करना चाहिए था । ..या वे कर भी रहे थे तो भीड़ उनके साथ नहीं थी । भीड़ उसी की सुनती है, जिसके साथ होती है ..वह सही हो या गलत, यह भीड़ का सच है ! ...इसलिए भीड़ कभी-कभी खुद को गुमराह भी कर सकती है । दंगा उसका एक वैसा ही सच है ! - फादर और औरत की आंखों में दंगों की विगत छाया का स्मृत्ति-भाव झलकता है - ..यह दंगे की कड़वाहट का फल ही था कि इनसे टूटी आस्था और भीड़ इस ओर चली आई । मैं जो खुद दंगे की त्रास्दी का शिकार हंू, इनके विश्वास को ठेस नहीं पहंुचा सकता था । मुझे अन्य ध्र्म के ध्र्म-पुजारियों या लोगो की तरह किसी ध्र्म से भेद नहीं था न है, मगर यह वक्त का खेल ही है कि एक भीड़ अपने लिए एक सुकूनदायक चरित्र तलाशती एक पत्थर को देवता बना बैठी ..और वह पत्थर का देवता आजतक इसलिए भी चुप है कि भीड़ किसी और चरित्र की तलाश में गुमराह न हो जाए ।
..समय बदला और दंगे की कड़वाहट कम हुई तो दासता की टीस भी ..। ..मगर तबतक मैं इनके लिए एक चरित्र एक देवता बन चुका था, ..एक पत्थर का देवता । - फादर स्वयं को अतीत और वर्तन के प्रश्न की तरह महसूस करते हुए अतीत से वर्त न की ओर आता है -
मैं इनसे दूर भागना चाहता था मगर मैंने इनसे जितना दूर भागने की कोशिश की ..ये उतना ही मेरे पास चले आए । ..मैं इनके श्र(ा और विश्वास को कैसे ठुकरा सकता था ? ..मैं अपने आपसे भाग सकता था, इनसे नहीं ..। ..और सच तो यह भी है कि इनके सिवा उन दंगों के बाद मेरा अपना था ही कौन ? ..फादर तो छोड़कर जा ही चुके थे ।
मैं भीड़ के साथ खड़ा नहीं होना चाहता था, मगर भीड़ मेरे साथ खड़ा होना चाहती थी । अगर आज मैं भाग जाउं, इस भीड़ का विश्वास टूट जाएगा ..। ..अगर आज मैं मर जाउं, भीड़ मर जाएगी ..। - फादर के सांसों में गहराई आती है, जिससे उसका कंधा उंचा हो जाता है । मानो वह अपने कंध्े पर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी का बोझ उठा रहा हो - फ्मैं इनके विश्वास से जिंदा हंू, और मैं इससे विश्वासघात नहीं कर सकता ..। ..और अब मुझे मुक्ति तब ही मिलेगी, जब यह मुझे मुक्त करेगी ..इनका विश्वास मुझे मुक्त करेगा ।
औरत के चेहरे पर एक उपहासित छाया उभरती है ।
तुम एक झूठ ढो रहे हो ।
मैं एक सच ढो रहा हंू !
औरत स्थिर भाव से शांत दृढ़ स्वर में आत्म-निर्णय सुनाने के अंदाज में कहती है ।
तुम्हारा फैसला कितना भी सही हो, ..तुम गलत थे !
..तुमने सही कहा । मैं गलत था, ..मगर मेरा फैसला गलत नहीं था ।
फादर क्षणिक शांति के बाद शांत लहजे में जवाब देता है ।
मैं तुम्हारा, अपने बच्चे का, अपने और तुम्हारे परिवार का, अपने समाज और देश का गुनहगार हंू - ..मगर सबसे पहले मैं अपना गुनहगार हंू ! ..मुझे सजा मिलनी ही चाहिए ।
फादर के शब्दों में एक छायावादी दृढ़ता झलकती है ।
मैं चाहता तो अपनी दुनिया बना सकता था, अपनी जिंदगी बसा सकता था, अपनी खुशियां पा सकता था ..मगर जिस तरह का माहौल था, और जिस तरह हमारे-तुम्हारे परिवार ने कीमत चुकाई उसी तरह हमारे-तुम्हारे समाज और देश को इसकी कीमत चुकानी पड़ती ! ..क्या यह सही होता ? - फादर के शब्दों में एक अर्थपूर्ण अव्यक्त पीड़ा झलकती है - तब मैं सही था, तुम सही थी ..वक्त गलत था आज वक्त सही है ..मगर आज हम और तुम गलत हैं । अगर इस गलती को सही करते हैं तो शायद उससे भी ज्यादा गलत ..।
फादर ने एक क्षण की खामोशी के बाद बात पूर्ण की ।
मैं मानता हंू, मैं गलत था ..मगर मैं कहां गलत था ?
औरत किसी बुत की तरह उसकी बात सुनती रहती है ।
तुम अपनी जिंदगी को अपनी जिंदगी कह सकती हो, अपने बच्चे को अपना बच्चा कह सकती हो, मुझे भी अपना कह सकती हो ..मगर’ मैं तो वह भी नहीं कर सकता । .......तुम्हारे पास तो जीने का सहारा बच्चा भी है, मेरे पास तो वह भी नहीं है अगर आज है भी तो उसे अपना नहीं कह सकता .., ..तुम पास हो तो तुम्हे अपना नहीं कह सकता ..। ..क्या किसी इंसान को एक गलती की इतनी सजा कम है ?
फादर के शब्द उस औरत की कानों में यंू पड़ रहे थे, जैसे किसी स्थिर मूरत के कानों में कोई जाकर कुछ कहता है ।
अगर इससे भी बड़ी सजा कोई इसके लिए है तो आज इस देवता को दे ही दो । ताकि इस देवता को आज अपने प्यार, अपनी जिंदगी, अपने देवत्व से मुक्ति मिल ही जाए ..!
औरत के चेहरे पर समय का शून्य छा जाता है, मानो वह अपने साथ हुए जुल्मों के लिए किसे गुनहगार ठहराए ?
मैं दंगे में पत्थर बन चुका था । इस पत्थर को लोगो ने देवता बना दिया । तुम चाहो तो इसे फर से लोगो की नजर में पत्थर बना सकती हो ।
औरत किसी प्रश्न की तरह उसी खामोश अंदाज में पूर्ववत रहती है ।
मैं जानता हंू, मैं कुछ नहीं हंू । एक विपरीत स्थिति में इस सभी धर्मों की भीड़ की एक आश् हंू । मेरे पास हर जात् और धर्म के लोग आते हैं, क्योंकि मुझे उनसे भेद नहीं है । मैं नहीं कहता, किसी पंडित-मौलवी वगैरह में यह भेद होगा । ..मगर दंगे की कड़वाहट अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है । ऐसे लोग विभिन्न चरित्रों में अपनी प्यास बुझा रहे हैं । मैं उनके लिए एक पत्थर, एक चरित्र, एक देवता हंू ..। ..तुम मुझे फिर से पत्थर बना सकती हो ..!
औरत खामोश बुत की तरह उसी तरह मौन रहती है । उसके खामोश प्रश्न, उत्तर व भाव को महसूर करते हुए फादर की नजर बाॅक्स के झरोखे से होकर उसके पीछे कुछ दूर खड़े बच्चे पर ठहरती है । वह पूछता है ।
..यह बच्चा ?
..तुम्हारा नहीं है ।
इस बच्चे का पिता ..।
सभी जानते हैं, ..एक दंगे में मारा जा चुका है !
सभी जानते हैं ..! - फादर के होठो व चेहरे पर एक निःश्वास छाया उभरती है । फादर के होंठ कुछ पूछने को खुलते हैं, औरत अवसर नहीं देती ।
मुझे जो जानना था, मैंने जान लिया है । - औरत शांत स्थिर भाव से उसी पूर्ववत् अंदाज में रहते हुए अतीत और वर्तमान की किसी अघोषित प्रश्नोत्तरी में अपने जीवन को महसूस करते हुए आत्म-निर्णय सुनाने के अंदाज में जवाब देती है, मानो कोई फैसला सुना रही हो ।
मुझे आपसे मिलने से पहले महसूस होता था फादर, इस बच्चे को एक पिता की जरूरत है ..मगर अब महसूस होता है कि इसे किसी पिता की जरूरत नहीं । इसे पिता की नहीं फादर की जरूरत है । ..मैं एक बच्चे के पिता के लिए किसी भीड़ का फादर नहीं छीन सकती !
..औरत कंफेशन बाॅक्स के सामने अपनी जगह से उठकर खड़ी हो जाती है, और अपने बच्चे को लेकर चर्च से बाहर जाने को वापस मुड़ जाती है । बाॅक्स के पीछे बैठे फादर के चेहरे पर एक अजीब-सी शांति और खामोशी छा जाती है । वह बाॅक्स के एक होल से बाहर की ओर झांकता है देखता क्या है कि वह औरत अपने बच्चे के साथ चर्च से बाहर की ओर जा रही है ..।
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