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FROM
TG/THE GOD/THE GREAT GOD
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कई बार एक ही बात के कई मतलब होते हैँ
तो
कई बार कई बातों का एक ही मतलब होता है !
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अलबत्ता'
आमतौर पर तो यह प्रस्तुति और वार्त्ता की शैली है,
मगर
कई बार इसका उपयोग लोग अपने अनुसार अपने मंतव्य के लिए करते हैँ !
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समस्त विश्व ना सिर्फ इससे प्रभावित है
बल्कि
समस्त इतिहास इन्हीं शाब्दिक तानों-बानो से भरा और पटा हुआ है !
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भाषाई जुमलों की यह कहानी यहीं नहीं रुकती है,
अपने कई मतलब निकालते कोसों-मीलों नहीं बल्कि सदियों- सहस्त्राब्दियो से भी अधिक तक यात्रा करती है,
और करती ही आ रही है !
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ऐसे भाषायी चतुरता ने समाधान कम और समस्या अधिक जन्म दिये हैँ, बल्कि पैदा किये हैँ ..
क्योंकि
इनके एक बात के कई मतलब और कई बात के एक ही मतलब तो होते ही हैँ,
जिससे यह अपना मतलब सिद्ध करते ही रहे हैँ'
मतलब तो साधते ही रहते हैँ ..
साथ ही
इनके अनुसरण करनेवालों अनुचरों में भी उनका यह भाषायी वंशागत गुण आ जाता है,
जिसपर वो भी इन मतलबों का भी अपना-अपना मतलब निकालते रहते हैँ !
..
इस प्रकार एक मतलब का कई मतलब निकालते मतलबों का वटवृक्ष तैयार हो जाता है'
और
इसमें मूल मतलब कहीं खो-सा जाता है !
..
भाषायी दुनिया का यह सौंदर्य काबिल-ए-तारीफ़ है,
भाषायी सौंदर्य का यह बहुरूपया चरित्र काबिल-ए-तारीफ है !
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क्या हमने कभी सोचा है कि इतने सारे मतलबों में मतलब कहीं खो-सा जाता है'
क्या परिणाम देता है !
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हम परिभाषा खो देते हैँ !
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हम जब परिभाषा खोते हैँ तो फिर उपसंहार से भी भटक जाते हैँ !
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अगर हमें परिणाम चाहिए तो परिभाषा कायम रखनी होगी !
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मूल बात सही हो या गलत वो अपनी जगह पर है,
मगर उसके लिए जब कई बात का एक बात और एक बात के कई बात बनाएंगे
तो
वो उनके लिए आवरण का काम करेगा और वो इसके छदम में छुपने की कोशिश छुपने का काम करेंगे'
जो कि वो करते आए हैँ
कर रहे हैँ
..
उनकी भाषायी चतुरता के छदम में छिपी भाषायी रणनीति को रोकना होगा
और
फिर बात करनी होगी
'साफ-साफ'
..
..जहां एक बात का एक ही मतलब होता हो ..!
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शब्द के संस्करण जितने सरल और सतही लग रहे हैँ, यह उतने ही प्रबल और सार्थक हैँ ..
इनकी जडें जमीन से जुड़ी हुई हैँ ..
और इस कदर जुड़ी हुई हैँ कि वो आम जीवन का हिस्सा बन गई हैँ' दिनचर्या बन गई हैँ ..
इसलिए
पहले हमारी आदत फिर संस्कार बन गई हैँ !
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हमारे अस्तित्व से इस कदर घुल मिल गई हैँ चिपक गई हैँ कि हम अपने मुलभूत अस्तित्व और इसमें अंतर नहीं कर पाते ..
अंतर
अंतर का अर्थ विवेध नहीं प्रकार होता है ..
मतलब
स्वयं का और इनका प्रकारन्तर नहीं समझ पाते !
..
ऐसी समझ मारी जाती है कि समझ नहीं पाते ..
मूल और मिश्रण
सत्य और असत्य
सही और गलत
का
फ़र्क़ !
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हमारे कर्म का गणित हमारे दिमाग के बीजगणित से अधिक मजबूत होता है,
..
हम चाहे जितना भी दिमाग लगा लें
हम चाहे जितना भी दिमाग लड़ा लें
हम चाहे कितने भी समीकरण कैसे भी फिट कर लें, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता ..
फाइनली
दिमाग के गणित पर कर्म का गणित भारी पड़ता ही है !
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.. कर्म के कीर्तिमान के आगे अच्छे-अच्छे कीर्तिमान ..
तुच्छ पड़ जाते हैँ !
ध्वस्त हो जाते हैँ !
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कर्म का कीर्तिमान जब योग्यता के माइलस्टोन से जब मिलता है, तब सबसे सुखद शाश्वत परिणाम को जन्म देता है !
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🌟'A SPECIES IS A SELFMADE VERSION OF NATURE AND HUMAN IS PART OF IT !'🌟
ONLY
'PART !'
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अपने ही बनाये मूल्यों के लिए सबकुछ कर गुजरना ..फिर एक दिन अपने ही बनाये मूल्यों का विरोध करना ..
कितना मुश्किल होता है, समझा जा सकता है !
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इंसान
अपने कारनामो, करतूतों, कारिस्तानियों का सेल्फमेड वर्सन है !
..
किसी भी कीमत पर स्वयं को सही ठहराने की जिद और किसी भी कीमत पर जीत ने उसे इस हाल में पहुँचाया है
..
इंसान अपने कारनामो के लिए स्वयं को सही और गलतियों के लिए दूसरों को गलत ठहराता है !
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🌟 इस दुनिया में .. 'कई' .. 'पहुंचे हुए फ़कीर' हैँ, इन्होने इस दुनिया में आग-सी लगाई हुई है ..
भिखारी का भेष धरे ये अपनी चाल में माहिर हैँ ..शातिर हैँ !
..
'भिखारी' का भेष धरे ये 'लुटेरे' अपने फन में माहिर हैँ,
इनके फन साँप के फन से अधिक विषैले और नागफनी के पौधों से अधिक कंटकमय हैँ !
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🌟 हमने तो बिसात बिछाई थी' तुमने तो मैदान-ए-जंग ही सजा दिया !
.. खेल के मैदान से मैदान-ए-जंग का अंदाज भी खूब रहा ..
प्ले-ग्राउंड से बैटल-फील्ड का अंदाज भी खूब रहा ! 🌟
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🌟हमने जो बिसात बिछाई है, उससे दुनिया जल तो जाएगी ना !
'हां !'
हम जो कर रहे हैँ उसका खामियाजा सारे विश्व को भुगतना तो पड़ेगा ना !
'हां !'
हमने जो किसी भी कीमत पर जीतने की कसम खाई है, उसका फल सबको खाना तो पड़ेगा ना !
'हां !'
..
तो फिर देर किस बात की है ..जला दो दुनिया, मिटा दो दुनिया ..
किस बात का धर्म संकट है !
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..सोच रहे हो, गलत कर भी स्वयं को सही कैसे सिद्ध किया जाए ..
बुद्धिमान हो ।
कुछ भी कर' किसी भी' कीमत पर खुद को सही कैसे सिद्ध किया जाए
बुद्धिजीवियों की सबसे बड़ी चाल
जिसका कोई जवाब नहीं
क्योंकि जवाब तो बुद्धिजीवियों के पास ही होते हैँ'
इसलिए तो
बुद्धिजीवी कहलाते हैँ
इंटेलेक्चुअल गेम इंटेलेक्चुअल क्राइम
मास्टर प्लान मास्टर माइंड मास्टर गेम
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🌟 *एक-एक कर सबको देख लिया जाएगा !
विश्व सबकी विरासत है, इसे केवल कुछ लोगो के भरोसे नहीं छोड़ सकते !
हमे जिम्मेदारी उठानी होगी ।।
अगर हमारे पूर्वजों ने जिम्मेदारी नही उठाई होती, आज यह दुनिया हम जी नही रहे होते !
हमारी जिम्मेदारिया हमारी सोच से कहीं अधिक बड़ी हैँ ।।* 🌟
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