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ऐ दुनिया !
फंस गए ना ब्रेन के माइंड गेम में
फंस गए ना दिमाग की चाल में
जिस दिमाग ने तुम्हें चाल दिया उसके पास भी तो तुम्हारे लिए कोई चाल होगी ।
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दिमाग की सबसे बड़ी चाल होती है,
पहले यह तुमसे वह सबकुछ करवाता है जो तुम चाहते हो,
फिर तुम वो करते हो जो वह चाहता है
..
दिमाग जबतक तुम्हारा गुलाम है तबतक ठीक है,
मगर
जब तुम दिमाग के गुलाम बन जाते हो ठीक नहीं
फिर
सारे फैसले तुम नहीं दिमाग करता है
और
परिणाम पाते हो तुम
..
कर्म
अच्छा-बुरा
सही-गलत
पाप-पुण्य
जो भी !
..
आपका दिमाग आपका ब्रेन-वाश कर देता है !
..
..
आप जब अपने कर्मों की बागडोर अपने हाथ में रखते हैँ, उसके सीधे जिम्मेदार होते हैँ मगर जब किसी और के हाथ में दे देते है। तो जिम्मेदार भले वो हो परिणाम आपके मत्थे मढ़ा जाता है ..
आवश्यक नहीं कि कोई व्यक्ति वगैरह ही आपको रूल करे
आपका दिमाग तक आपका रूलर बन सकता है बन जाता है
फिर
आप आप नहीं रह जाते
हम हम नहीं रह जाते
..
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