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FROM
TG/THE GOD/THE GREAT GOD
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कर्तव्य के मामले में हम इतने स्वार्थी हो गए हैँ कि इसका भी पृथकवाद कर दिया है ..परिवार' समाज' नागरिक ..फलाँ-फलाँ कर्तव्य ! एक् ही कर्तव्य के कितने रूप कर दिये' और इसके रूप-जाल में फंसकर रह गए !
क्या अच्छाई और सच्चाई से बड़ा कर्तव्य और धर्म है क्या ?
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