Sunday, 28 September 2025

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हमारे

रंग-रूप, आकार-प्रकार, नैन-नक्श 

बोल-चाल, चाल-ढाल

वगैरह वगैरह

बदलते गए

इस विविधता को विभेद बना दिया

..

कई विविधताएं प्राकृतिक थी कई कृत्रिम

हमने सबकी विविधता को विभेद बना दिया

..

कुछ प्राकृतिक विविधताओं का भी कृत्रिम रूपन किया

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अच्छा-बुरा, सही-गलत, पाप-पुण्य

इनकी विशुद्ध प्रकृति और प्राकृतिक अवस्था का तो शुरु में अधिक कुछ नहीं परिवर्तन कर पाए

इसपर इन्होने क्रमिक या बाद में मनमाफिक परिवर्तन किया

..

मगर

आरंभिक चरण में

 गोरा-काला, ऊंच-नीच, धर्म- समाज, जात-पात वगैरह

..

प्रकृति और कर्म

आधारित इन प्राकृतिक मानकों

का

कृत्रिम भेद-भाव रूपी निरुपण किया !

इसका परिणाम प्रकृति की परिभाषा कर समानांतर एक कृत्रिम परिभाषा का जन्म हुआ

इस प्रकार प्रकृति की विविधकारी परिभाषा के समानांतर कृत्रिम विभेदकारी परिभाषा का सूत्रपात हुआ

और

फिर प्रकृति और कृत्रिम का टकराव हो गया

..

..

अमीर-गरीब ..वगैरह पूर्ण रूप से कृत्रिम व्यवस्था का समानांतर आविरभाव होता गया

..

व्यवस्था की विविधता में विभेद नहीं था

हमारी सोच और मानसिकता में था

इसलिए

व्यवस्था चाहे प्राकृतिक हो या कृत्रिम

वह विविध थी मगर विभेदकारी नहीं

मगर

हमारी सोच और मानसिकता ने उसे इस रूप में चिन्हित करना शुरु किया, चिन्हीं नामित मनोनीत किया ..

..

..

इसी प्रकार

..

सभ्यता और संस्कृति

की

विविधता को भी

हमने

विभेद में बदल दिया ।

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