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विविधता में एकता तो समस्त सृजन का सौदर्य है,
मगर
हमारी विविधताओं को हमने विभेदकारी मान रखा है,
इसलिए एक विश्व कई टुकड़ों में बंटा नजर आ रहा है !
और
यह सोच अपने अपने स्तर पर सबकी है
सबों की !
व्यक्ति समूह व्यवस्था से लेकर तमाम स्तर पर
चुंकि
हमारी मानसिकता ही विविधकारी की जगह विभेदकारी है !
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