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अगर
मन के वृन्दावन में
खुराफातों के नृत्य-संगीत चलते रहते हैँ ..
अगर
केवल मनमर्जी का ही करना है ..
तो फिर
होनी के लिए
किसी और को
सही या गलत क्यूं ठहराना !
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सबकुछ जब स्वयं ही तय करना है
सबकुछ जब मनमर्जी का ही करना है
तो फिर
यह सब प्रोपगंडा क्यूं
यह सब नक़ाब किस काम के !
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इतने वृत्तचित्र और चलचित्र किस काम के !
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आखिर ये वोकल्बरी ये डिक्शनरी किस काम के !
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यह
जो ज्ञान का भण्डार
या
जो ज्ञान का पुलिंदा
.. खज़ाना ..
यह
जो
भानुमति का पिटारा
भानुमति का कुनबा
किस काम के !
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अगर
मन के वृन्दावन में
खुराफातों के नृत्य-संगीत चलते रहते हैँ ..
अगर
केवल मनमर्जी का ही करना है ..
तो फिर
होनी के लिए
किसी और को
सही या गलत क्यूं ठहराना !
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